मुलायम की विरासत: 5 तरीके, जिनसे उन्होंने बदल दी यूपी की राजनीति -

Gujarat News, Gujarati News, Latest Gujarati News, Gujarat Breaking News, Gujarat Samachar.

Latest Gujarati News, Breaking News in Gujarati, Gujarat Samachar, ગુજરાતી સમાચાર, Gujarati News Live, Gujarati News Channel, Gujarati News Today, National Gujarati News, International Gujarati News, Sports Gujarati News, Exclusive Gujarati News, Coronavirus Gujarati News, Entertainment Gujarati News, Business Gujarati News, Technology Gujarati News, Automobile Gujarati News, Elections 2022 Gujarati News, Viral Social News in Gujarati, Indian Politics News in Gujarati, Gujarati News Headlines, World News In Gujarati, Cricket News In Gujarati

मुलायम की विरासत: 5 तरीके, जिनसे उन्होंने बदल दी यूपी की राजनीति

| Updated: October 11, 2022 13:02

उत्तर प्रदेश की राजनीति को बदलने का काफी हद तक श्रेय पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को जाता है। मुलायम सिंह यादव अपनी पीढ़ी के सबसे बड़े और प्रमुख नेता थे। वह ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने उत्तर प्रदेश और उत्तर भारत के अन्य हिस्सों में भी पॉलिटिकल एक्शन के लिए नए नियम और मानक (norms and standards) स्थापित किए। उनका जाना यकीनन एक युग का अंत है। आइये, जानते हैं कि उत्तर प्रदेश की राजनीति को उन्होंने कैसे बदला।

किसानों को एकजुट कियाः

राम मनोहर लोहिया ने पहली बार किसानों को लामबंद किया था। सोशलिस्ट पार्टी भी इनके साथ आ गई। उन्होंने फिर ओबीसी के लिए 60% रिजर्वेशन की मांग की। वीपी सिंह के कांग्रेस छोड़ने के बाद इनमें से अधिकांश समूह उनके साथ हो लिए। फिर भी अपनी मांग नहीं छोड़ी।

5 दिसंबर 1989 को मुलायम सिंह यादव के सत्ता में आने के साथ यूपी की राजनीति में एक लंबा दौर शुरू हुआ। इस दौरान सवर्णों को सत्ता से बाहर रखा गया। यह चरण 1999-2000 और 2000-2002 में थोड़े समय के अलावा, जब रामप्रकाश गुप्ता और राजनाथ सिंह मुख्यमंत्री बने- केवल 2017 में योगी आदित्यनाथ यानी एक ठाकुर के सत्ता में आने के साथ समाप्त हुआ।

वह मुलायम का कार्यकाल .था, जिसमें मंडल आयोग की सिफारिश के मुताबिक ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत रिजर्वेशन लागू हुआ – जिसने सामाजिक आंदोलन को जन्म दिया। इसके कारण ही भाजपा ने 1991 में ओबीसी नेता कल्याण सिंह को मुख्यमंत्री के रूप में मैदान में उतारा। गौरतलब है कि कई ओबीसी समुदाय, जिन्होंने पिछले दशकों में अपने उपनामों का इस्तेमाल नहीं किया था, अब ऐसा करने के लिए पर्याप्त आत्मविश्वास महसूस कर रहे हैं।

दलितों को जगह दीः

1977 में जब राम नरेश यादव यूपी के पहले गैर-उच्च जाति (non-upper caste) के सीएम बने, तो इस पद के लिए एक प्रमुख दावेदार दलित नेता रामधन भी थे। लेकिन यह मुलायम और उनकी सामाजिक न्याय की राजनीति का उदय था, जिसने पहली बार दलितों को मौका दिया। एक महत्वपूर्ण तथ्य जो अक्सर सपा और कांशीराम की बसपा के बीच प्रतिद्वंद्विता (rivalry) की कहानी में छिपा होता है।

बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद हुए 1993 के विधानसभा चुनावों में हिंदू ताकत को भुनाने की भाजपा की उम्मीदों को मुलायम ने धराशायी कर दिया था। तब मुलायम ने बसपा के साथ गठबंधन किया था, एक ऐसी पार्टी जो तब कोई खास ताकत नहीं मानी जाती थी। हालांकि, सपा-बसपा सरकार नहीं चली। जहां मुलायम की अपनी राजनीतिक शैली थी, वहीं बसपा सत्ता के लिए बेताब थी। मायावती जून 1995 में गठबंधन में मतभेदों के कारण भाजपा के समर्थन से यूपी की पहली दलित मुख्यमंत्री बनीं।

बसपा ने इसके बाद तब सत्ता हासिल की, जब 2007 में मायावती अपनी सरकार बनाने में कामयाब रहीं। उनकी सरकार पूरे पांच साल तक चली। वह तब तक यूपी में मुलायम सिंह यादव के बाद मुख्यमंत्री पद पर रहने वाली दूसरी नेता थीं। 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा ने एक साथ वापसी की, जिसमें बसपा ने 10 सीटें जीतीं। दोनों की दलीय राजनीति अब एक चौराहे पर आ गई हैं। भाजपा ने सोशल इंजीनियरिंग के एक फार्मूले का इस्तेमाल किया है, जिसकी तुलना “एम + वाई” जैसे फॉर्मूले से नहीं की जा सकती है, जो पहले के युगों में लाभ देता था। मुलायम सिंह यादव को धरतीपुत्र भी कहा जाता था।

बीजेपी से पहले मुलायम ने यूपी को कांग्रेस मुक्त किया

मुलायम ने जिस दिन पहली बार 1989 में शपथ ली थी, वह यूपी की सत्ता में कांग्रेस का आखिरी दिन था। 1989 से पहले अधिकांश उच्च जातियों के अलावा मुसलमानों और दलितों को कांग्रेस के आधार के रूप में देखा जाता था। मुलायम ने सामाजिक न्याय की अपनी राजनीति के साथ इस सामाजिक गठबंधन को तोड़ दिया। इससे कांग्रेस कभी उबर नहीं पाई। 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी और अमित शाह द्वारा दिया गया “कांग्रेस मुक्त भारत” का नारा एक तरह से तीन दशक पहले यूपी में मुलायम ने दिया था।

मुस्लिमों के लिए सबसे बड़े नेता

मुस्लिम वोट का एक बड़ा हिस्सा तब चरण सिंह के पास चला गया था, जब वह कांग्रेस से अलग हो गए थे। वह दो बार मुख्यमंत्री बने और थोड़े समय के लिए देश के प्रधानमंत्री भी बने। मुसलमान बाद में वीपी सिंह के जनता दल के साथ हो गए और बाद के वर्षों में किसी भी ऐसी पार्टी की ओर रुख करते दिखाई दिए, जो भाजपा को हराने में सक्षम मानी जाती थी।

उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटों के मामले में मुलायम सबसे बड़े लाभार्थी थे। वह मुस्लिम-यादव गठबंधन पर यकीन करते थे। हाल ही में खत्म हुए विधानसभा चुनावों में भी मुस्लिमों ने सपा को एकतरफा वोट दिया। हालांकि अब देखना होगा कि मुस्लिम वोट कितना प्रतिशत मुलायम द्वारा स्थापित पार्टी के प्रति वफादार रहता है।

वंशवाद की राजनीति

यूपी में राजनीति का तेजी से अपराधीकरण इमरजेंसी के दौरान एचएन बहुगुणा और एनडी तिवारी जैसे नेताओं के नेतृत्व में शुरू हुआ। उन्हें संजय गांधी का आशीर्वाद हासिल था। यह सिलसिला 1977-80 के जनता शासन के दौरान भी जारी रहा। जून 1980 में सत्ता में आई मुख्यमंत्री वीपी सिंह की सरकार ने अपराधियों और डकैतों के एनकाउंटर कराए। मारे गए लोगों में अधिकतर एक खास जाति के थे। अपराधी और गुंडों को बचाने और बढ़ावा देने के आरोपों का बार-बार सामना करने वाले मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में राजनीति में शरण लेने वाले इन तत्वों की प्रवृत्ति मजबूत हुई। हालांकि वह अकेले राजनेता नहीं थे, जिन पर इस तरह आरोप लगाया गया था। लेकिन इसने सपा पर एक दाग हमेशा लगा रहा कि यह गुंडों की पार्टी है।

एक और आरोप मुलायम पर लगता रहा कि वह अपनी पार्टी और उत्तर प्रदेश की राजनीति में परिवार को बढ़ावा देते रहे। वास्तव में एक समय ऐसा भी, जब उनके परिवार के 10 सदस्यों ने महत्वपूर्ण राजनीतिक पदों पर कब्जा कर लिया था। अखिलेश भी एसपी को इससे मुक्त दिलाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।

COVID-19 के कारण 2020 में वैश्विक रूप से गरीब होने वालों में से 80% भारतीय: विश्व बैंक

Your email address will not be published. Required fields are marked *

%d