नई टैक्स व्यवस्थाओं में लुट गई सर्राफा व्यापार की चमक - Vibes Of India

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नई टैक्स व्यवस्थाओं में लुट गई सर्राफा व्यापार की चमक

| Updated: November 21, 2021 14:24

अहमदाबाद के सीजी रोड के एक सर्राफा व्यापारी रोहित वावडिया कहते हैं, 'अमारा हाथ मा काई नथी आवतु (अब हमें शायद ही कोई रिटर्न मिलता है)।' वह 2018 से कारोबार में है, लेकिन जब से सोने के बुलियन पर स्रोत पर एकत्रित टैक्स (TCS) लागू हुआ है, उसके कारोबार की चमक खत्म हो गई है।
पिछले साल 1 अक्टूबर को केंद्र सरकार ने 50 लाख रुपये से अधिक की प्राप्तियों पर 0.1% टीसीएस लगाया था। अगर खरीदार द्वारा पैन/आधार नहीं दिया गया है, तो 5% टीसीएस एकत्र किया जाता है।

चूंकि सर्राफा व्यापारी शुद्ध सोने और चांदी की छड़ें (24 कैरेट) थोक में कहीं भी 10 किलो से लेकर 100 किलो या उससे अधिक तक खरीदते हैं, इसलिए इस व्यवसाय में मौद्रिक निवेश बहुत अधिक है।

लगभग 150 स्वर्ण सर्राफा व्यापारी इस धंधे में हैं, लेकिन उनकी संख्या तेजी से घट रही है। वावडिया बताते हैं, “टीसीएस के कारण हमारे मार्जिन में भारी कमी आई है। 100 रुपये की बिक्री पर हमारा लाभ मार्जिन 0.10 पैसे है, और अब तो वह टीसीएस का भुगतान करने में ही चला जाता है। 2014 में मैं 1,400 करोड़ रुपये का कारोबार कर रहा था। अब यह मुश्किल से 1,000 करोड़ रुपये है। पहले हमारी विकास दर 25% थी, अब काम चलाऊ रह गया है। लाभ को भूल जाइए, हम मुश्किल से ब्रेकइवन प्वांइट तक पहुंच पाते हैं।”

एक अनौपचारिक सर्वे से पता चलता है कि गुजरात में लगभग आधे सर्राफा व्यापारियों ने कारोबार छोड़ दिया है या अन्य विकल्पों को अपना लिया है। टीसीएस के अलावा सोने के गहनों पर भी 3% जीएसटी लगता है। इतना ही नहीं, खरीदे गए सोने के कुल मूल्य के साथ-साथ मेकिंग चार्ज पर जीएसटी लगाया जाता है।

प्रतीक सोनी 20 साल से अधिक समय से आश्रम रोड और मानेक चौक पर आरव बुलियन चला रहे हैं, लेकिन कर व्यवस्था उन्हें चिंतित करती है। वह कहते हैं, “एक साल से अधिक समय से हमारा एक करोड़ रुपये टैक्स के कारण सरकार के पास फंसा हुआ है। हालांकि टैक्स रिटर्न के दौरान हमें वह वापस मिल जाता है। फिर भी यदि इतनी राशि ब्लॉक हो जाती है तो हमारे लिए अपना व्यवसाय चलाना मुश्किल हो जाता है। अमारा जेवा सोनी ने बीजू शु आवड़े? (हम जौहरी और कुछ नहीं जानते)। हम न तो इस व्यवसाय को बंद कर सकते हैं और न ही कुछ नया शुरू कर सकते हैं। हम असहाय हैं।”

यहां वावडिया कहते हैं, “जीवित रहने के लिए हमें अपनी रणनीति बदलनी पड़ी। पहले हम सिर्फ सर्राफा में थे, लेकिन अब छोटे ज्वैलर्स – हमारे प्राथमिक ग्राहक – ने कारोबार खो दिया है। इसलिए अब हम निर्माताओं के साथ बी2बी करते हैं। हमारे व्यापार की मात्रा नहीं बदली है, लेकिन लाभ मार्जिन में बदलाव आया है। आगे हमारा विचार आभूषण निर्माण में आने का है। हमें बेहतर रिटर्न के लिए डायवर्सिफाई करना होगा।’

अहमदाबाद के सर्राफा व्यापारी अंबिका जेम्स एंड ज्वेल्स के मालिक निशांत ढोलकिया ने कहा, “सोने के जौहरियों के विपरीत सर्राफा व्यापारी होना जोखिम भरा व्यवसाय है, क्योंकि इसमें भारी निवेश की आवश्यकता होती है। पिछले दो वर्षों में हम लाभ मार्जिन के नुकसान से बचने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में उद्यम कर रहे हैं। कुछ व्यापारी आभूषण निर्माण में विविधता लाते हैं, कुछ व्यवसाय पूरी तरह से छोड़ देते हैं जबकि अन्य अपने व्यवसाय की मात्रा को कम कर देते हैं।” ढोलकिया दूसरी पीढ़ी के व्यवसायी हैं। उनके परिवार ने 1973 में इस ब्रांड को लॉन्च किया था।

रणनीतियों के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, “हमारे पास आभूषण निर्माण की अपनी घरेलू इकाई है। यही कारण है कि हम जीवित रह सकते हैं। हमारा प्रॉफिट मार्जिन सोने के गहनों से आता है, सर्राफा से नहीं। हमारा कारोबार दूसरी पीढ़ी का है और यह एक और कारण है कि हम कम मार्जिन के साथ भी सर्राफा बाजार में बने रहना चाहते हैं।

ढोलकिया ने कहा, “निर्मला सीतारमण से लेकर गुजरात चैंबर ऑफ कॉमर्स तक हमने अपने मुद्दे को हर संभव प्राधिकरण के सामने पेश किया है। हमारा अनुरोध सर्राफा पर से टीसीएस को हटाने का है, लेकिन सारे प्रयास व्यर्थ हैं। ”

गिर रहा है सोने का आयात?

सुरेंद्रनगर के तीसरी पीढ़ी के सर्राफा व्यापारी मयूर मंडलिया बताते हैं, “एक और दुष्प्रभाव यह है कि कम समय वाले  जौहरी और बिचौलिए व्यवसाय छोड़ने के लिए मजबूर हो गए हैं। सोने का आयात भी काफी कम हुआ है। पहले भारतीय सोने का आयात लगभग 900 टन था, जो अब मुश्किल से 600 टन है।

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