छह साल और छह महीने की कैद के बाद, आज 9 जनवरी को मुंबई हाई कोर्ट ने मानवाधिकार रक्षकों रोनाविल्सन और सुधीर धावले को जमानत दी।
विल्सन और धावले, दोनों ही उन पहले मानवाधिकार कार्यकर्ताओं में शामिल थे जिन्हें विवादास्पद एल्गार परिषद मामले में गिरफ्तार किया गया था, जिसमें कानून प्रवर्तन एजेंसियों ने उनके माओवादी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया था।
जमानत की मंजूरी जस्टिस ए.एस. गडकरी और जस्टिस कमल खाटा की पीठ ने उनकी वकीलों की याचिका पर दी, पहले ट्रायल कोर्ट द्वारा जमानत की याचिका खारिज किए जाने के बाद।
घटना
6 जून, 2018 को पुणे पुलिस ने देश भर में समन्वित कार्रवाई की, जिसमें कई कार्यकर्ताओं के घरों पर छापेमारी की गई। केरल के मूल निवासी और कैदियों के अधिकारों के लिए कार्य करने वाले विल्सन को दिल्ली से गिरफ्तार किया गया, जबकि विद्रोही पत्रिका के संपादक धावले को मुंबई में उनके घर से गिरफ्तार किया गया।
प्रारंभ में पुणे पुलिस द्वारा जांच की गई, यह मामला 2020 की शुरुआत में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंप दिया गया, जब महाराष्ट्र में राजनीतिक बदलाव हुआ और भाजपा सरकार की जगह महा विकास आघाडी गठबंधन की सरकार बनी।
पुणे पुलिस और NIA दोनों ने लगातार आरोप लगाया कि विल्सन ‘शहरी नक्सल’ आंदोलन का एक प्रमुख चेहरा था और उन्होंने विश्वविद्यालय के छात्रों को आंदोलन में शामिल करने के लिए भर्ती किया था।
वकीलों के तर्क और NIA की स्थिति
विल्सन और धावले के वकीलों सुदीप पसबोला और मिहिर देसाई ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल लगभग सात साल से बिना आरोप तय किए जेल में थे। हालांकि NIA ने चार्जशीट दाखिल की थी और 300 से अधिक गवाहों का नाम लिया था, फिर भी मामला कोर्ट में नहीं पहुंचा। रक्षा पक्ष ने आरोप लगाया कि यह प्री-ट्रायल डिटेंशन अत्यधिक है, खासकर ऐसे मामले में जो सालों तक चलेगा।
NIA ने हालांकि कहा कि वह “मुकदमे की प्रक्रिया को तेज़ करेगा,” लेकिन इसने जमानत आवेदन पर कोई विरोध नहीं किया। दिलचस्प बात यह है कि जब कोर्ट ने जमानत दी, NIA ने आदेश पर स्थगन या अपील का समय नहीं मांगा, जबकि उसने महेश राउत जैसे मामलों में जमानत आदेश पर स्थगन की अपील की थी।
जमानत की शर्तें
विल्सन और धावले को हर सोमवार को NIA दफ्तर में रिपोर्ट करने के लिए कहा गया है। जमानत 1 लाख रुपये की जमानत पर दी गई है। विस्तृत जमानत आदेश का इंतजार है।
NIA ने 16 व्यक्तियों पर आरोप लगाए हैं, जिनमें मानवाधिकार कार्यकर्ता, वकील और शिक्षाविद शामिल हैं, जिन्हें प्रतिबंधित CPI (माओवादी) संगठन का सदस्य बताया गया है। पुणे पुलिस ने आरोप लगाया कि इन आरोपियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की “राजीव गांधी-शैली हत्या” की योजना बनाई थी। हालांकि, सात वर्षों में यह मामला लंबित रहा और कई मामलों में लंबी हिरासत रही, जिसे कई लोग राजनीतिक प्रेरित मानते हैं।
दुखद परिणाम और लंबित मामले
गिरफ्तार किए गए लोगों में 84 वर्षीय जेस्विट पादरी और कार्यकर्ता स्टेन स्वामी जुलाई 2021 में हिरासत में निधन हो गए। अन्य आरोपियों ने तालोजा केंद्रीय जेल अधिकारियों पर लापरवाही का आरोप लगाया, यह दावा करते हुए कि उन्हें उचित चिकित्सा देखभाल नहीं दी गई।
अब तक कई आरोपियों को जमानत मिल चुकी है, जिनमें कवि वरवरा राव, वकील सुधा भारद्वाज, शिक्षाविद शोमा सेन, कार्यकर्ता वर्नन गोंसल्वेस, वकील अरुण फेरेरा और लेखक आनंद तेलतुंबड़े शामिल हैं। हालांकि, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हनी बाबू, कार्यकर्ता महेश राउत, वकील सुरेंद्र गाडलिंग और सांस्कृतिक कार्यकर्ता सागर गोर्खे, रमेश गाइचोर और ज्योति जगतप जैसे कई लोग जेल में बंद हैं, और उनके जमानत आवेदन विभिन्न अदालतों में लंबित हैं।
आज के आदेश का प्रभाव
मुंबई हाई कोर्ट का यह आदेश विल्सन और धावले को दी गई जमानत के रूप में उनके लंबे समय तक जेल में रहने के कारण काफी महत्वपूर्ण है। इस आदेश से अन्य आरोपियों के लंबित जमानत आवेदन को बल मिल सकता है। यह मामला राजनीतिक दृष्टिकोण से संवेदनशील बना हुआ है, और आज का आदेश एल्गार परिषद मामले में न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।
उक्त लेख मूल रूप से द वायर वेबसाइट द्वारा प्रकाशित की जा चुकी है.
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