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जजों की नियुक्ति पर कानून मंत्री के बयान से सुप्रीम कोर्ट खफा, कहा- ऐसा नहीं कहना चाहिए था

| Updated: November 29, 2022 12:00 pm

केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिरिजू की ओर से कॉलेजियम सिस्टम पर सवाल उठाने से सुप्रीम कोर्ट नाराज हो गया है। जजों की नियुक्ति मामले में कानून मंत्री किरेन रिरिजू के बयान पर शीर्ष अदालत ने कहा कि एक बड़े पद पर बैठे व्यक्ति को ऐसा बयान नहीं देना चाहिए। सोमवार को मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा लगता है कि सरकार राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) के रद्द किए जाने से नाखुश है। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा दोहराए गए 11 नामों को केंद्र से मंजूरी नहीं मिलने के खिलाफ 2021 में बेंगलुरु के एडवोकेट्स एसोसिएशन की एक अवमानना याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने यहां जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम की ओर से भेजे गए नामों को मंजूरी देने में केंद्र की ओर से देरी पर गहरी नाराजगी जताई है। कहा कि यह नियुक्ति के तरीके को ‘‘प्रभावी रूप से विफल” करता है। न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति एएस ओका की बेंच ने सोमवार को कहा कि सुप्रीम कोर्ट की तीन न्यायाधीशों की बेंच ने नियुक्ति प्रक्रिया पूरी करने के लिए समय सीमा तय कर दी थी। इसका पालन करना ही होगा। न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि ऐसा लगता है कि सरकार इस बात से नाखुश है कि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) को मंजूरी नहीं मिली। लेकिन यह देश के कानून का पालन नहीं करने की वजह नहीं हो सकती है।

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 2015  में एनजेएसी अधिनियम और इस सिलसिले में संविधान के 99वें संशोधन अधिनियम, 2014 को रद्द कर दिया था। इससे सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति करने वाले मौजूदा न्यायाधीशों की कॉलेजियम प्रणाली बहाल हो गई थी। बेंच ने कहा, ‘‘ सिस्टम कैसे काम करता है? हम अपनी नाराजगी पहले ही बता चुके हैं।” न्यायमूर्ति कौल ने कहा, ‘‘मुझे ऐसा लगता है कि एनजेएसी को मंजूरी नहीं मिलने से सरकार नाखुश है।”

जस्टिस कौल ने कहा, ‘जजों की नियुक्ति मामले में कई नाम डेढ़ साल से भी अधिक वक्त से सरकार के पास हैं। इस तरह सिस्टम कैसे चल सकता है? अच्छे वकीलों को जज बनने के लिए सहमत करना आसान नहीं है। लेकिन सरकार ने नियुक्ति को इतना कठिन बना रखा है कि देरी से परेशान होकर लोग बाद में खुद ही अपना नाम वापस ले रहे हैं?’
जस्टिस कौल ने कहा, ‘समस्या यही है कि शीर्ष अदालत की तरफ से निर्धारित कानूनी प्रक्रिया (Legal Process) का पालन करने को सरकार तैयार नहीं है। ऐसी बातों का दूरगामी असर पड़ता है।’ याचिकाकर्ता के वकील विकास सिंह ने कानून मंत्री रिजिजू के बयान की अदालत को जानकारी दी। इस पर मौजूद जजों ने नाखुशी जाहिर की। उन्होंने कहा, ‘हमने अब तक कई बयानों की उपेक्षा की है, लेकिन यह एक बड़े पद पर बैठे व्यक्ति का बयान नहीं देना चाहिए था।’ सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमनी ने कहा, ‘वह लंबित फाइलों पर सरकार से बात कर जवाब देंगे।’ इस पर अदालत ने सुनवाई के लिए 8 दिसंबर का दिन मुकर्रर किया है।

क्या कहा था रिजीजू नेः

दरअसल एक कार्यक्रम में केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने कहा था कि सरकार से ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती है कि वह उस कॉलेजियम द्वारा सुझाए नामों पर सिर्फ दस्तखत कर दे, जिसे जजों की नियुक्ति के लिए सुप्रीम कोर्ट ने स्वयं अपने ही आदेश से बनाया है। रिजिजू ने कहा, ‘अगर आप ऐसी उम्मीद करते हैं कि सरकार सिर्फ इसलिए जज के रूप में सुझाए गए नामों को मान लेगी कि उनकी सिफारिश कॉलेजियम ने की है, तो फिर सरकार की भूमिका क्या है?’ वैसे उन्होंने यह भी कहा कि सरकार कॉलेजियम प्रणाली का सम्मान करती है और यह तब तक करती रहेगी, जब तक कि कोई बेहतर व्यवस्था इसका स्थान नहीं ले लेती है। कॉलेजियम की सिफारिशों पर सरकार के ‘बैठे रहने’ संबंधी आरोपों पर रिजिजू ने कहा कि ऐसा कभी नहीं कहा जाना चाहिए कि सरकार फाइलों पर बैठी हुई है।

इस बात पर जोर देते हुए कि कॉलेजियम प्रणाली भारतीय संविधान के लिए एलियन है और इसमें ‘खामियां’ हैं, कानून मंत्री ने सवाल उठाया कि जो कुछ भी संविधान के लिए एलियन है, वे सिर्फ अदालतों और कुछ जजों द्वारा लिए गए फैसले के कारण है। आप कैसे उम्मीद करते हैं कि फैसले का देश समर्थन करेगा? वह यहां सुप्रीम कोर्ट के ‘सेकंड जज मामले (1993)’ का हवाला दे रहे थे, जिसने कॉलेजियम प्रणाली को लागू किया था।

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