शनिवार को खबरिया चैनल TV9 का एक कार्यक्रम था। उसमें भाजपा के गुजरात प्रमुख सीआर पाटिल ने कहा कि अगर पार्टी गुजरात में सत्ता में फिर आती है, तो भूपेंद्र पटेल ही मुख्यमंत्री होंगे। उन्होंने यह भी कहा कि राज्य में आगामी विधानसभा चुनाव के लिए सभी सीटों पर टिकट का फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह करेंगे।
भाजपा सूत्रों ने कहा है कि पाटिल का बयान अप्रत्याशित (unexpected) नहीं था। बता दें कि पिछले साल पूरे विजय रूपाणी मंत्रिमंडल को बदल कर पटेल को उनकी जगह मुख्यमंत्री बनाया गया था। पिछले साल 13 सितंबर को पदभार संभालने के बाद से पटेल सुर्खियों (spotlight) और विवादों (controversy) से दूर रहने और बड़े पैमाने पर काम पूरा करने में कामयाब रहे हैं। दूसरे शब्दों में, वह पार्टी की उम्मीदों पर खरे उतरे हैं और अब उन्हें चुनाव में भी इसे साबित करना है।
गुजरात में 24 वर्षों से लगातार भाजपा सरकारों (BJP governments) के बाद, जिनमें से 12 वर्षों में मोदी मुख्यमंत्री थे, पार्टी के नेताओं का कहना है कि राज्य में मुख्यमंत्री की नियुक्ति और सरकारें चलाने के लिए “एक सिस्टम है।” वे यह भी कहते हैं कि पटेल को किसी भी हाल में गलतियां नहीं करनी है। हाल ही में राज्यों में भाजपा के अभियान का विषय (theme of the BJP campaign) “डबल इंजन की सरकार” है। इसके तहत मतदाताओं से वादा किया जाता है कि केंद्र और राज्य में भाजपा सरकरा रहने से ही सबका विकास होगा। इसलिए भाजपा को चुनें।
यह पूछने पर कि “उन्हें (पटेल को) यथास्थिति बनाए रखने के अलावा क्या करना था?” भाजपा के एक नेता ने कहा कि अहमदाबाद के घाटलोदिया से पहली बार विधायक और मुख्यमंत्री बनने के बावजूद उन्होंने काफी सराहनीय काम किया है।
पटेल की तरह कदवा पाटीदार नेता ने कहा कि रूपाणी को आनंदीबेन पटेल के विकल्प के रूप में बीच में लाया गया था। फिर 2017 में भाजपा के सत्ता में वापस आने पर भी रूपाणी को सीएम के रूप में बरकरार रखा गया था।
वैसे तथ्य यह भी है कि चुनाव नजदीक होने के कारण भाजपा चीजों को ज्यादा हिलाना-डुलाना नहीं चाहती है। पार्टी के नेता मानते हैं कि रूपाणी का परिवर्तन सहज था, लेकिन कई उलझे हुए मसले भी थे। एक नेता ने कहा कि पटेल को दोहराकर भाजपा आलाकमान “स्थिरता (stability) का आभास देना चाहेगा।”
संयोग से, पाटिल के पटेल में विश्वास वाले बयान से पहले रास्ते से हटाए गए रूपाणी को एक साल के इंतजार के बाद एक असाइनमेंट मिला है। उन्हें गुजरात से दूर पंजाब और चंडीगढ़ का प्रभारी बनाया गया है। पाटिल के टीवी चैनल से बातचीत से कुछ दिन पहले रूपाणी ने एक अंग्रेजी अखबार को दिए इंटरव्यू में बताया था कि उन्हें उस रात तक अपनी कुर्सी जाने के बारे में पता नहीं था।
पटेल का साल भर का कार्यकाल (tenure) बाढ़ सहित संकटों से रहित नहीं रहा है, सौराष्ट्र के कुछ हिस्सों में पानी भर गया है। विरोध के बाद सरकार को एक विवादास्पद आवारा पशु नियंत्रण विधेयक (stray cattle control Bill) को वापस लेना पड़ा है, सूखे राज्य में शराब से 24 लोगों की मौत को लेकर सवाल उठाए गए हैं। फिर मुंद्रा बंदरगाह पर 3,000 किलोग्राम हेरोइन का मिलना भी विवादों में घिर गया था। साथ ही सरकारी कर्मचारियों के आंदोलन का सामना करना पड़ा। इतना ही नहीं, 2002 के बिलकिस बानो गैंगरेप मामले में 11 दोषियों की उम्रकैद की सजा को माफ करने पर विवाद खड़ा हुआ।
हाल ही में, पटेल के दो कैबिनेट मंत्रियों- राजेंद्र त्रिवेदी और पूर्णेश मोदी को “अक्षमता” (inefficiency) की शिकायतों के बाद उनके प्रमुख विभागों से हटा दिया गया था। पटेल के पास अब ये विभाग हैं- राजस्व (Revenue), सड़क और भवन। हालांकि पाटिल ने कहा कि विभागों को हटाने का फैसला आने वाले चुनावों को देखते हुए लिया गया है।
पटेल के कार्यकाल की बड़ी कामयाबी में शामिल हैं- नर्मदा का पानी कच्छ के सबसे दूर के छोर तक पहुंचना, एक सेमीकंडक्टर बनाने के लिए वेदांता-फॉक्सकॉन के साथ करार करना, गुजरात को पहली बार राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी करना, और डिफेंस एक्सपो की मेजबानी (Defence Expo) करना। यकीनन इन सबके लिए केंद्र की मोदी सरकार का उन्हें आशीर्वाद मिला।
पटेल के नेतृत्व में भाजपा ने दो चुनावों में भी सराहनीय प्रदर्शन किया है: गांधीनगर नगर निगम और करीब 9,000 ग्राम पंचायतों में चुनाव। गांधीनगर निगम की 44 में से 41 सीटों पर बीजेपी ने जीत हासिल की। इसी तरह अनुमान है कि पार्टी ने 70 फीसदी से ज्यादा ग्राम पंचायत सीटें जीती हैं, जो पार्टी के चुनाव चिह्न पर नहीं लड़ी जाती हैं।
जहां आने वाले गुजरात चुनाव में आम आदमी पार्टी के रूप में एक चुनौती होगी, वहीं पटेल के पास मोदी-शाह की ताकतवर जोड़ी होगी, जो उन्हें चुनावों में रास्ता दिखा सकेंगे।
पहली बार विधायक चुने जाने के बावजूद 24 मंत्रियों का मंत्रालय चलाने वाले पटेल की निपुणता पर किसी का ध्यान नहीं गया। पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने सीएम को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में वर्णित किया जो अपनी “सीमाओं” को ध्यान में रखते हुए धीरे-धीरे, लेकिन लगातार निर्णय लेता है। उन्होंने कहा, “मुझे नहीं लगता कि भूपेंद्र पटेल सरकार को इस उम्मीद के साथ नियुक्त किया गया था कि वह चमत्कार करेगी। महज इतनी उम्मीद की गई थी कि कोई बड़ी गलती न करें। और सरकार उस पर चल रही है। यह सच है कि पटेल को कोई बड़ा फैसला नहीं लेना पड़ा है, लेकिन इसकी भी उम्मीद नहीं थी। शीर्ष पद पर उनके अनुभव की कमी और मौजूदा कठिन समय को देखते हुए उन्हें कोई भी गलत निर्णय न लेने का श्रेय देना चाहिए। और जब भी कुछ गलतियां की गईं (जैसे कि अदालत की शर्त को पूरा करने के लिए समय पर ओबीसी आयोग की नियुक्ति न करना, या पशु विधेयक), नुकसान की भरपाई (damage control) बहुत तेजी से की गई।
सौराष्ट्र के एक लेउवा पाटीदार भाजपा नेता ने कहा: “कोई नहीं जानता कि चुनाव के बाद क्या होगा। लेकिन आम तौर पर पाटीदार रिजर्वेशन जैसा कोई बड़ा आंदोलन नहीं हुआ है, अनारक्षित (सामान्य) वर्ग भी खुश है… लेउवा और कदवा पाटीदार अब कमोबेश एकजुट हैं, हर कोई सामाजिक समरसता चाहता है।”
गुजरात के अपने अधिकांश समकक्षों (counterparts) के विपरीत शर्ट और पतलून पहनने वाले पटेल ने भी बयानों से अपनी सरकार को बेवजह के विवादों में फंसने नहीं दिया है।+
Also Read: राहुल की यात्रा में सोनिया भी शामिल होंगी