जैसा कि वे कहते हैं, वे शाही हो सकते हैं लेकिन उनका जीवन अक्सर शाही दंतकथाओं जैसा नहीं होता है। गुजरात में 400 साल पुरानी राजकोट रियासत में ठीक ऐसा ही हो रहा है।
(Photo courtesy: indianrajputs.in)
परिवार करीब 20,000 करोड़ की संपत्ति के लिए संघर्ष कर रहा है। दरअसल राजकोट पैलेस विवाद पेचीदा है। एक राजकुमारी अपने बिछड़े भाई से बेटी होने का हक मांग रही है। उधर भाई को दूसरी पीढ़ी के भतीजे का भी सामना करना पड़ रहा है, जो संपत्ति में अपनी हिस्सेदारी मांग रहा है। भाई के वकीलों का दावा है कि बहन सिर्फ हंगामा कर रही है। उसे दिवंगत पिता की इच्छा के अनुसार पहले ही 1.5 करोड़ रुपये दिए जा चुके हैं। बहन का कहना है कि वसीयत से छेड़छाड़ की गई।
मुश्किल से एक पखवाड़े पहले की बात है, जब ठाकोर साहब मंधातासिंह जडेजा की बहन अंबालिका देवी ने राजकोट की तत्कालीन रियासत के 17वें राजा के खिलाफ मामला दर्ज कराया था। उसने अदालत में आरोप लगाया कि राजा ने उसके हस्ताक्षर से एक रिलीज डीड बनाया, जिसके अनुसार राजकुमारी अंबालिका देवी ने अपनी विरासत में मिली संपत्ति को त्याग दिया था।
शुक्रवार, 3 सितंबर को राजा के भतीजे रणशूरवीर सिंह से विवाद एक पायदान ऊपर चला गया। उन्होंने भी संपत्ति विवाद को लेकर अदालत का दरवाजा खटखटाया। आरोप लगाया कि राजा और कुछ सरकारी अधिकारी मिलकर परिवार से करोड़ों की संपत्ति छीन रहे हैं।
रणशूरवीर ने गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी को भी पत्र लिखकर जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।
400 साल पुरानी पूर्व रियासत राजकोट स्टेट एक कटु संपत्ति विवाद में उलझा हुआ है। राजकोट सौराष्ट्र में सबसे समृद्ध राज्य में से एक था। मंधातासिंह के बागडोर संभालने से पहले तक यहां सब ठीक चल रहा था। लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ उनके विद्वान और सज्जन पिता मनोहरसिंहजी जडेजा ने परिवार को अच्छी तरह से पाला। गुजरात की राजनीति में उन्हें प्यार से दादा के रूप में जाना जाता था।
मनोहरसिंहजी जडेजा कौन थे?
प्रद्युम्नसिंहजी लाखाजीराजसिंहजी के सबसे बड़े पुत्र थे मनोहरसिंहजी। उनका जन्म राजकोट के रंजीत विला पैलेस में हुआ था। उनके भाई प्रह्लादसिंह जडेजा थे। संपत्ति विवाद में नए किरदार राणा शूरवीरसिंह दरअसल प्रह्लादसिंह के पोते हैं। इसलिए मंधातासिंह के चचेरे भाई हैं।
मनोहरसिंह जडेजा की पढाई-लिखाई राजकुमार कॉलेज, राजकोट और एलफिंस्टन कॉलेज, मुंबई में हुई। मनोहरसिंहजी के पास कला स्नातक में ऑनर्स की डिग्री थी। वह विधि स्नातक भी थे। उन्हें लंदन विश्वविद्यालय से मास्टर ऑफ लॉ की डिग्री से सम्मानित किया गया था और अन्य स्थानों के अलावा ब्रीच कैंडी, मुंबई, गांधीनगर और राजकोट में विशाल संपत्तियों के साथ गुजरात के सबसे परिष्कृत व्यक्तित्वों में से एक थे। वह साठ के दशक से गुजरात की राजनीति में सक्रिय थे और उन्होंने गुजरात के वित्त मंत्री के रूप में शानदार काम किया। गुजरात विधानसभा में उनका अंतिम कार्यकाल 1995 में था। मनोहरसिंहजी का सितंबर 2018 में लंबी बीमारी के कारण निधन हो गया।
मंधातासिंह को तीन पुत्रियों के अतिरिक्त एक पुत्र भी था। झांसी की रहने वाली अंबालिका दरअसल मंधाता की छोटी बहन हैं।
अपने पिता और दादा की तरह मनोहरसिंहजी बढ़िया क्रिकेटर थे। उन्होंने 1955-56 में रणजी ट्रॉफी में गुजरात के खिलाफ सौराष्ट्र के लिए प्रथम श्रेणी में पदार्पण किया था। अपनी पहली पारी में उन्होंने 59 रन बनाए थे।
मनोहरसिंहजी ने 1957-58 सीजन से टीम के कप्तान के रूप में कार्य किया, और 1963-64 सीजन के बाद टीम से रिटायर होने तक टीम में नियमित खिलाड़ी बने हुए थे। आमतौर पर शीर्ष क्रम के बल्लेबाज के रूप में खेलते हुए उनका सर्वोच्च प्रथम श्रेणी स्कोर (एकमात्र शतक) दिसंबर 1957 में आया था। तब उन्होंने गुजरात के खिलाफ 144 रनों की पारी खेली थी।
साहित्यिक व्यक्ति, परिष्कृत पसंद और बातों के धनी मनोहरसिंहजी अपने बेदाग लेखन और पढ़ने के लिए भारत में प्रसिद्ध थे।
मंधाता को मयूर राजा के नाम से भी जाना जाता है। पिता के साथ उनके विवाद होने की भी बात कही जाती है। लेकिन वाइब्स ऑफ इंडिया इस दावे की पुष्टि नहीं कर सका कि दादा ने सब कुछ सुलझा लिया था। मयूर राजा उर्फ मंधातासिंह 2009 में भाजपा में शामिल हो गए थे, जिसने कथित तौर पर पैलेस में वफादारों को चौंका दिया था, क्योंकि परिवार का हमेशा से कांग्रेस के साथ रहा था। मंधाता गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के काम से प्रभावित होकर भाजपा में शामिल हुए थे।
मंधाता होटलों की हेरिटेज चेन चलाते थे। उन्होंने पिता की मृत्यु के दो साल बाद, 2020 में आधिकारिक तौर पर राजकोट के राजा के रूप में पदभार संभाला। हालांकि इस ताजपोशी का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि यह परंपरा के अनुसार भर था।
संपत्ति विवाद
रणशूरवीर ने शुक्रवार को आरोप लगाते हुए कहा, "मामले को दबाने की कोशिश की जा रही थी, क्योंकि मामलातदार के कार्यालय से ठाकोर मंधातासिंह के संबंध थे। मामलातदार के कार्यालय के एक अधिकारी और प्रात कार्यालय के एक अन्य अधिकारी ने 10 करोड़ रुपये की मांग की थी। इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए, मैंने 10 अगस्त को सीएम विजय रूपानी को एक पत्र लिखा था।"
यह भी कहा जाता है कि उनके पिता अनिरुद्ध सिंह अपने अधिकार का त्याग नहीं कर सकते, क्योंकि पंजीकरण अधिनियम में प्रावधान है कि यदि किसी व्यक्ति का एक सौ रुपये से अधिक की अचल संपत्ति में वास्तविक हिस्सा है, तो उसे सब-रजिस्ट्रार के समक्ष हलफनामा पंजीकृत होने के बाद ही हटाया जा सकता है। कहा जाता है कि अनिरुद्ध सिंह ने स्टाम्प पेपर पर मात्र 100 रुपये की मुहर लगाकर अपना अधिकार नोटरी करा लिया है। चूंकि यह कानूनी नहीं है, इसलिए स्वर्गीय प्रद्युम्न सिंह के कानूनी उत्तराधिकारी उनके पिता थे और अब वह खुद हैं। इसलिए वह भी 685 एकड़ जमीन के हकदार हैं और उन्होंने इस हिस्से को पाने के लिए दीवानी अदालत में मुकदमा दायर किया है।
गौरतलब है कि रणशूरवीर सिंह के पास विशेष रूप से 11 संपत्तियां हैं। इनमें 675 एकड़ कृषि भूमि, भाइयों-बहनों के बीच विवादित वीडी-रंदरदा झील का स्थल, माधापार की जमीन और सरदार के दरबार की संपत्ति शामिल है।
उन्होंने बिना जिक्र वाली संपत्ति का मामला भी दर्ज कराया है। इनमें पैलेस रोड पर महल, साथ ही रंदरदा झील पर आउटहाउस के साथ-साथ भूमि, करोड़ों का देना बैंक हाउस शामिल हैं। अकेले पैलेस रोड और उसकी जमीन की कीमत 500 करोड़ रुपये से अधिक आंकी गई है। राजकोट शाही परिवार का कुल अनुमानित मूल्य 20,000 करोड़ रुपये से अधिक होने का अनुमान है।
मंधाता का परिवार
मंधाता सिंह की मां मनकुमारी देवी साहिबा सिंह जडेजा, जो राजस्थान के अलवर शाही परिवार से हैं, अकेले अपने बेटे का साथ दे रही हैं। इसमें उनकी दो बहनों का भी साथ मिल रहा है। मंधातासिंह का विवाह मध्य प्रदेश के जामनिया की राजकुमारी से हुआ है। मंधातासिंह की दो बेटियां हैं और उन्हें एक बहुत ही प्रगतिशील और उदार राजा माना जाता है। उन्होंने स्विट्जरलैंड में होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई की है। मंधातासिंह की एक बेटी की शादी राजस्थान के खिमसर के शाही परिवार में हुई है। उनकी दूसरी बेटी मृदुला कुमारी जानी-मानी क्रिकेटर हैं।
मजेदार तथ्य: जडेजा के पास कई पुरानी कारें हैं। कारों में से एक 1934 में मंधातासिंहजी के परदादा धर्मेंद्रसिंहजी लखाजीराज के लिए बनाई गई रोल्स रॉयस कार बहुत खास है। बिल मेरेडिथ-ओवेन्स कलेक्शन के हिस्से के रूप में यह कार 42 साल तक घर के बाहर खड़ी थी। वह कभी दुनिया की सबसे महंगी कार हुआ करती थी।