जयपुर — महज 14 साल और 32 दिन की उम्र में राजस्थान रॉयल्स के युवा बल्लेबाज वैभव सूर्यवंशी ने सोमवार रात आईपीएल के इतिहास में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में दर्ज करा दिया। गुजरात टाइटंस के खिलाफ 210 रनों के लक्ष्य का पीछा करते हुए सूर्यवंशी ने केवल 35 गेंदों में शतक जड़ते हुए न सिर्फ लीग का सबसे तेज़ दूसरा शतक पूरा किया, बल्कि सबसे कम उम्र में शतक लगाने का रिकॉर्ड भी अपने नाम किया।
यह ऐतिहासिक क्षण तब आया जब सूर्यवंशी ने राशिद खान की गेंद को मिडविकेट के ऊपर से मैदान के बाहर भेज दिया। जयपुर के सवाई मानसिंह स्टेडियम में बैठे दर्शकों के साथ राजस्थान के मुख्य कोच राहुल द्रविड़ भी खुशी से झूम उठे — जो हाल ही में चोट के कारण व्हीलचेयर पर थे — लेकिन इस अद्भुत पारी को देख वह खड़े होकर तालियां बजाने लगे।
18 वर्षों के आईपीएल इतिहास में कई युवा सितारे चमके हैं, लेकिन वैभव सूर्यवंशी ने जिस विस्फोटक अंदाज़ में अपनी छाप छोड़ी, वह बेमिसाल था। 38 गेंदों में नाबाद 101 रन की उनकी पारी, जिसमें 7 चौके और 11 छक्के शामिल थे, ने राजस्थान को 15.5 ओवर में ही जीत दिला दी।
बिहार के समस्तीपुर जिले से ताल्लुक रखने वाले वैभव सूर्यवंशी ने ब्रायन लारा के वीडियो देखकर क्रिकेट सीखा। आज वही बच्चा भारतीय क्रिकेट का नया चेहरा बनता दिख रहा है।
1983 वर्ल्ड कप विजेता और पूर्व मुख्य चयनकर्ता कृष्णमाचारी श्रीकांत ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर लिखा, “14 साल की उम्र में जब बच्चे सपने देखते हैं और आइसक्रीम खाते हैं, वैभव सूर्यवंशी ने आईपीएल की दावेदार टीम के खिलाफ शानदार शतक ठोक दिया। धैर्य, क्लास और साहस उनकी उम्र से कहीं आगे है। हम भारतीय क्रिकेट के अगले सुपरस्टार को उभरते हुए देख रहे हैं।“
वैभव का कमाल सिर्फ सोमवार की रात तक सीमित नहीं है। पिछले साल नवंबर में उन्होंने 13 साल की उम्र में ऑस्ट्रेलिया अंडर-19 टीम के खिलाफ 58 गेंदों पर शतक ठोका था। वहीं पिछले सप्ताह आईपीएल में डेब्यू करते हुए लखनऊ सुपरजायंट्स के खिलाफ पहली ही गेंद पर छक्का जड़कर उन्होंने अपने इरादे जाहिर कर दिए थे।
गुजरात के खिलाफ सोमवार को भी उन्होंने मोहम्मद सिराज की गेंद पर 90 मीटर लंबा छक्का लगाकर खाता खोला और फिर अनुभवी इशांत शर्मा के एक ही ओवर में तीन छक्के और दो चौके जड़ दिए।
हालांकि वह अभी अपने करियर के शुरुआती दौर में हैं, लेकिन गेंद की लेंथ को जल्दी भांपने और ताकतवर स्ट्रोक खेलने की उनकी काबिलियत साफ नजर आई। उनके 11 में से 8 छक्के मिडविकेट और स्क्वेयर लेग के बीच के क्षेत्र में लगे, जबकि ऑफ साइड पर भी उन्होंने शानदार शॉट्स खेले।
इस अखबार से बातचीत में सूर्यवंशी ने कहा था, “चाहे तेज गेंदबाज हो या स्पिनर, मुझे हिट करना पसंद है। मेरा फंडा सीधा है — अगर गेंद मारने लायक है तो मारो, किसी भी तरह की दुविधा नहीं होनी चाहिए।“
यह साफ-सुथरा दृष्टिकोण सोमवार को उनकी बल्लेबाज़ी में भी दिखा। जब गुजरात ने राशिद खान को गेंद सौंपी तो सूर्यवंशी ने धैर्य दिखाया, बिना किसी जल्दबाज़ी के गलत शॉट खेलने से बचे और जब भी मौका मिला, स्ट्रोक लगाए।
वैभव की इस कामयाबी के पीछे उनके पिता संजीव सूर्यवंशी का संघर्ष भी उतना ही बड़ा है। मुंबई में कभी बाउंसर, कभी सुलभ शौचालय में काम कर, तो कभी बंदरगाह पर मजदूरी कर, उन्होंने वैभव को क्रिकेटर बनाने का सपना जिया। उन्होंने अपने घर के आंगन में नेट्स तैयार करवाया और घंटों खुद गेंदबाजी कर बेटे को अभ्यास कराया। कभी-कभी बेरोजगार युवाओं को एक वक्त के खाने के बदले गेंदबाजी के लिए बुलाया जाता था।
वैभव को सही दिशा देने में कोच मनीष ओझा की भी अहम भूमिका रही। ओझा कहते हैं, “यह लड़का जन्मजात प्रतिभाशाली है। वह अपने उम्र के खिलाड़ियों से 3-4 साल आगे है। जो भी नया कौशल उसे सिखाया जाए, वह जल्दी सीखता है और फिर उसे अभ्यास के जरिए अपनी आदत बना लेता है।“
सोमवार की रात, उन अनगिनत अभ्यास सत्रों, आत्मविश्वास और बेहतरीन स्ट्रोकप्ले ने मिलकर वैभव सूर्यवंशी को इतिहास रचते देखा। भारतीय क्रिकेट ने एक नया सितारा पा लिया है — और यह शुरुआत भर है।