भारत सरकार अपनी ही बेड़ियों में जकड़ी जनता की दुर्दशा को अनदेखा कर सकती है, लेकिन अमेरिकी सैन्य विमान से लौटे भारतीयों की तस्वीर भारत की सच्चाई बयां करती है। यह भारत की सिकुड़ती स्थिति, उसकी गिड़गिड़ाहट और ‘भारतीयों से नफरत’ को सामान्य बनाने की कोशिशों को उजागर करता है।
बेड़ियों में जकड़े भारतीय प्रवासी क्या बताते हैं?
अमेरिका से निष्कासित किए गए ये अवैध भारतीय प्रवासी, जो प्रायः दुर्व्यवहार और भूख की तकलीफों से गुजरते हैं, भारत सरकार की संवेदनहीनता पर सवाल खड़े करते हैं। कुछ सिखों को जबरन उनकी पगड़ी उतारने को मजबूर किया गया, और उन्हें अमेरिकी सैन्य विमानों में ठूंसकर भेजा गया। यह अपमानजनक वापसी उस भारत की वास्तविकता को दर्शाती है जो अपनी युवा पीढ़ी को ऐसे खतरनाक प्रवास के लिए मजबूर करता है और फिर विश्व मंच पर अपनी ‘नेतृत्व’ की भूमिका का दावा करता है।
हाल के वर्षों में अमेरिका जाने के लिए बेताब भारतीयों की संख्या अपने चरम पर पहुंच गई है। प्यू और सेंटर फॉर माइग्रेशन स्टडीज, न्यूयॉर्क के अनुसार, 2022 में अमेरिका में 7 लाख अवैध भारतीय प्रवासी थे, जो मैक्सिको और अल सल्वाडोर के बाद तीसरे स्थान पर आते हैं। 2023 और 2024 के बीच भारत लौटे प्रवासियों की संख्या बहुत अधिक थी, लेकिन 2020 में यह आंकड़ा 2,300 तक पहुंच गया था। 2023 में, अमेरिका में 67,391 अवैध भारतीयों में से 41,330 गुजराती थे।
तीन अमेरिकी सैन्य विमानों से जबरन लौटाए गए भारतीय हमें उस भारत की झलक दिखाते हैं, जिससे लोग भागने को मजबूर हैं।
1. चरमराती अर्थव्यवस्था
भारत की बदहाल अर्थव्यवस्था, नौकरियों की कमी, ग्रामीण मजदूरी में गिरावट और कर प्रणाली की विसंगतियों ने भारतीयों की हालत दयनीय बना दी है। आरबीआई का उपभोक्ता विश्वास सर्वेक्षण कीमतों, खर्च और रोजगार की संभावनाओं को लेकर गिरते भरोसे को दर्शाता है। सी-वोटर के ‘मूड ऑफ द नेशन’ सर्वे में 57% लोगों का मानना है कि भारत की अर्थव्यवस्था अगले छह महीनों में या तो और बिगड़ेगी या वैसी ही बनी रहेगी।
सर्वे में 51% लोगों ने माना कि 2014 के बाद से सरकार की नीतियों से सबसे अधिक लाभ बड़े उद्योगपतियों को हुआ है। वहीं, 49% ने सरकार पर अडानी समूह का समर्थन करने का आरोप लगाया, जिस पर अमेरिकी अदालत में रिश्वतखोरी के आरोप लगे हैं।
2. ‘अबकी बार ट्रंप सरकार’ का असर
बेड़ियों में जकड़े भारतीयों की तस्वीरें, उनके साथ किया गया दुर्व्यवहार और भारत की चुप्पी, यह दर्शाती है कि वैश्विक मंच पर भारत की स्थिति कितनी कमजोर हो गई है। जब कोलंबियाई राष्ट्रपति गुस्तावो पेट्रो ने अमेरिका से अपने नागरिकों को सैन्य विमान से वापस लेने से इनकार कर दिया, तब ट्रंप ने कोलंबिया पर 25% टैरिफ लगाने की धमकी दी। लेकिन राष्ट्रपति पेट्रो ने अपने नागरिकों को खुद वापस लाने के लिए एक विशेष विमान भेजा, जिससे ट्रंप को अपना निर्णय वापस लेना पड़ा।
इसके विपरीत, भारत ने अमेरिका के अवैध प्रवासियों के मुद्दे पर ट्रंप का समर्थन किया और ‘MEGA’ (Make India Great Again) जैसा नारा गढ़कर ट्रंप की ‘MAGA’ (Make America Great Again) नीति के साथ कदमताल मिलाने की कोशिश की। भारत की यह चापलूसी भी बेकार गई क्योंकि ट्रंप ने लगातार भारत पर टैरिफ बढ़ाने की धमकियां जारी रखीं।
भारत ने ब्रिक्स के तहत डॉलरकरण खत्म करने की योजना को रोक दिया और ई-कॉमर्स नीति को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया ताकि ट्रंप नाराज न हों। यह स्पष्ट करता है कि भारत अपने ही नागरिकों की रक्षा करने में असमर्थ है और केवल बड़े कॉरपोरेट्स को खुश करने में व्यस्त है।
3. मानव गरिमा का क्षय
मोदी सरकार और बीजेपी के शासन को अक्सर मुस्लिमों के साथ किए गए अन्याय के लिए आंका जाता रहा है, लेकिन अमेरिका से लौटाए गए भारतीय प्रवासी यह दिखाते हैं कि भारत में आम नागरिकों की गरिमा की कोई परवाह नहीं की जाती।
चाहे प्रयागराज के कुंभ मेले में मची भगदड़ में मारे गए लोग हों, नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर अफरातफरी में जान गंवाने वाले यात्री हों, या फिर अमेरिकी सैन्य विमानों से लौटाए गए भारतीय, इन सभी घटनाओं से सरकार की असंवेदनशीलता उजागर होती है।
लेखक अमिताव घोष के उपन्यास ‘सी ऑफ पॉपीज’ में गिरमिटिया मजदूरों की दर्दनाक कहानियां मिलती हैं, जो ब्रिटिश उपनिवेशवाद के दौर में गुलामी की जंजीरों में जकड़े गए थे। लेकिन मोदी सरकार के शासन में, स्वतंत्र भारत में ही अपने नागरिकों को बेड़ियों में जकड़कर विदेशी धरती से लौटाया जा रहा है।
भारत सरकार चाहे आंख मूंदकर इस सच्चाई को नजरअंदाज करे, लेकिन यह तस्वीरें चीख-चीखकर भारत की वैश्विक स्थिति और उसके नेतृत्व की वास्तविकता को उजागर कर रही हैं।
उक्त लेख मूल रूप से द वायर वेबसाइट द्वारा प्रकाशित किया जा चुका है.
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