अहमदाबाद: जब एक समूह ने अहमदाबाद नगर निगम (एएमसी) द्वारा अपने बूचड़खाने को दो बार, सात और पांच दिनों के लिए बंद करने के फैसले के खिलाफ गुजरात हाई कोर्ट में याचिका दायर की, तो जस्टिस संदीप भट्ट ने कहा, “आप खाने से एक या दो दिन के लिए खुद को रोक सकते हैं…।” याचिका दायर करने वालों ने त्योहारों के मद्देनजर बूचड़खाने को बंद करने को मौलिक अधिकार का उल्लंघन बताया था।
याचिकाकर्ता कुल हिंद जमीयत-अल कुरेश एक्शन कमेटी ने अपने सदस्यों दानिश कुरैशी और मोहम्मद हम्माद हुसैन रज़ाईवाला के माध्यम से याचिका दायर की थी। इसमें 24 अगस्त से 31 अगस्त तक और फिर 5 से 9 सितंबर के बीच शहर के एकमात्र बूचड़खाने को बंद करने का विरोध किया था। पहली बार पर्युषण के कारण और फिर अन्य त्योहारों के कारण बंद करने का फैसला किया गया था।
अपना पक्ष रखने के लिए रजाईवाला व्यक्तिगत रूप से पेश हुए। न्यायमूर्ति भट्ट ने उनसे कहा कि जब भी कोई प्रतिबंध लगता है तो लोग अंतिम समय में अदालतों की ओर दौड़ पड़ते हैं। फिर मुकदमे के कागजातों को देखते हुए जज ने टिप्पणी की, ”आप खुद को एक-दो दिन के लिए खाने से रोक सकते हैं…”
याचिकाकर्ता ने अपनी बात रखते हुए कहा, “यह खुद को रोकने को लेकर नहीं है, बल्कि मौलिक अधिकारों के बारे में है और हम अपने देश में एक मिनट के लिए भी मौलिक अधिकारों पर रोक लगाने की कल्पना नहीं कर सकते हैं। पहले भी बूचड़खाने बंद कर दिए गए हैं, इसलिए भविष्य के लिए इस प्रक्रिया पर अंकुश लगाया जाना चाहिए।”
उन्होंने बताया कि एएमसी ने जसवंतलाल शाह के अनुरोध पर बूचड़खाने को बंद करने का फैसला किया। शहर में केवल एक ही बूचड़खाना है, जिसे जैनियों के पवित्र पर्व पर्युषण के दौरान बंद किया किया गया था। बंद के फैसले के खिलाफ नगर आयुक्त को ज्ञापन दिया गया।
बूचड़खाने को बंद करने या चलाने से किसी पर कोई भौतिक प्रभाव नहीं पड़ता है। उन्होंने राष्ट्रीय पोषण संस्थान, हैदराबाद के एक दिशानिर्देश का हवाला दिया, जो प्रोटीन युक्त पशु आहार के सेवन की सलाह देता है। याचिकाकर्ता ने संविधान के अनुच्छेद 47 का भी हवाला दिया, जो राज्य को लोगों के पोषण के स्तर को बढ़ाने का निर्देश देता है।
याचिकाकर्ता ने यह भी बताया कि हाई कोर्ट की एक पीठ ने दिसंबर 2021 में मौखिक टिप्पणी की थी कि एएमसी को लोगों की खाने की आदतों को नियंत्रित करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। यह तब हुआ था, जब एएमसी ने सड़कों पर अंडे और अन्य मांसाहारी खाद्य पदार्थों को बेचने वाली गाड़ियों और स्टालों को बंद करने की कोशिश की थी।
याचिका ने एएमसी सर्कुलर को अपवाद के रूप में लिया है, जिसमें कहा गया है कि इसे एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया का पालन करके नहीं लाया गया है जिसे विधियों में निर्धारित किया गया है।
इस कारण याचिकाकर्ता ने कानून के आधार पर अंतरिम राहत के लिए जोर दिया। तब न्यायमूर्ति भट्ट ने पूछा कि क्या वह पूर्व के ऐसे अदालती निर्णय बता सकते हैं। इस पर याचिकाकर्ता ने कहा कि चूंकि उन्हें जल्दी में अदालत आना पड़ा है, ऐसे में इसके लिए कुछ समय चाहिए। आगे की सुनवाई शुक्रवार को होगी।
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