कैंब्रिज के गुजराती छात्र ऋषि राजपोपत ने निकाला 2,500 साल पुरानी संस्कृत व्याकरण की समस्या का हल

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कैंब्रिज के गुजराती छात्र ऋषि राजपोपत ने निकाला 2,500 साल पुरानी संस्कृत व्याकरण की समस्या का हल

| Updated: December 16, 2022 13:40

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में पीएचडी कर रहे गुजराती मूल के डॉ. ऋषि राजपोपत ने पाणिनि के संस्कृत व्याकरण ‘अष्टाध्यायी’ में लंबे समय से चली आ रही एक समस्या को हल कर दिया है। उन्होंने छठी या पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास लिखे गए सबसे पहले व्याकरण के एक नियम को सुलझा दिया है।

प्राचीन संस्कृत भाषा के ज्ञाता पाणिनि के संस्कृत व्याकरण ‘अष्टाध्यायी’ में नए शब्दों को बनाने के लिए काफी परस्पर विरोधी नियम हैं, जिन्होंने हमेशा विद्वानों को भ्रम में डाला है।पाणिनि ने जो ‘मेटारूल’ सिखाया है, वह अक्सर व्याकरण की दृष्टि से गलत परिणाम देता है। ऋषि ने इसी ‘मेटारूल’ की व्याख्या को खारिज करते हुए दूसरा तर्क दिया है।

4000 सूत्रों से युक्त अष्टाध्यायी दरअसल संस्कृत के पीछे के विज्ञान की व्याख्या करता है। इसकी तुलना अक्सर शब्दों को बनाने के जटिल नियमों के कारण ट्यूरिंग मशीन से की जाती है- एक प्रकार का भाषाई एल्गोरिथम (linguistic algorithm)। इसका प्रयोग करके आप संस्कृत के किसी भी शब्द के आधार और प्रत्यय (suffix) को भर सकते हैं। फिर व्याकरण की दृष्टि से सही शब्द और वाक्य बना सकते हैं। हालांकि, पाणिनी के दो या दो से अधिक व्याकरण नियम एक ही समय में लागू हो सकते हैं, जो अक्सर भ्रम पैदा करते रहे हैं।

इन अंतर्विरोध (conflicts) को हल करने के लिए  पाणिनि ने एक ‘मेटारूल’ (रूल गवर्निंग रूल्स) लिखा था। इसकी पारंपरिक रूप से व्याख्या इस प्रकार की गई थी: ‘समान शक्ति के दो नियमों के बीच विवाद में उस नियम को माना जाएगा, जो अष्टाध्यायी में बाद में आता है।’

लेकिन पीएचडी की अपनी थीसिस-इन पाणिनी वी ट्रस्ट (In Panini We Trust)- में डॉ राजपोपत ने इस नियम को खारिज कर दिया है। उनका तर्क है कि मेटारूल को हमेशा गलत समझा गया है। वास्तव में पाणिनि का मतलब यह था कि किसी शब्द के बाएं और दाएं पक्षों पर लागू होने वाले नियमों के लिए पाठकों को दाएं हाथ की संक्रिया (operation) का उपयोग करना चाहिए। इस तर्क का उपयोग करते हुए डॉ. राजपोपत ने पाया कि अष्टाध्यायी एक सटीक ‘भाषा मशीन’ के रूप में कार्य कर सकते हैं, जो लगभग हर बार व्याकरणिक (grammatically) रूप से संस्कृत शब्दों और वाक्यों का निर्माण करते हैं।

विशेषज्ञ डॉ. राजपोपत के निष्कर्षों को ‘क्रांतिकारी’ बता रहे हैं, क्योंकि इस खोज से पाणिनि के संस्कृत व्याकरण को पहली बार कंप्यूटरों से पढ़ाया जा सकेगा। अष्टाध्यायी के नियमों की रैखिक (linear) और सटीक प्रकृति भी इसे प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण (natural language processing) प्रणालियों के लिए अनुकूल बनाती है, जैसा कि वायरल चैटजीपीटी बॉट (ChatGPT bot) में देखा गया है।

डॉ राजपोपत कहते हैं, “एनएलपी पर काम कर रहे कंप्यूटर वैज्ञानिकों ने 50 साल पहले नियम-आधारित दृष्टिकोणों को छोड़ दिया था। इसलिए कंप्यूटर से पाणिनि के नियम-आधारित व्याकरण को जोड़ना बड़ी कामयाबी होगी। मशीनों के साथ मानव संपर्क का इतिहास के साथ- साथ भारत के बौद्धिक इतिहास में भी।”

बता दें कि पाणिनि को व्यापक रूप से ‘भाषाविज्ञान का जनक’ (father of linguistics) माना जाता है। उनके काम ने 1800 के दशक से यूरोपीय विद्वानों को प्रभावित किया है।

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