अहमदाबाद: आज के दौर में जहां ज़मीन के छोटे से टुकड़े के लिए भी बड़े-बड़े विवाद हो जाते हैं, वहीं अहमदाबाद से ईमानदारी और नैतिकता की एक ऐसी कहानी सामने आई है जो किसी को भी हैरान कर देगी। एक पटेल परिवार को 98 लाख रुपये उस ज़मीन के मिले, जिसके अस्तित्व के बारे में उन्हें भनक तक नहीं थी। यह मामला 45 साल पुराने एक वादे और भरोसे पर जुड़ा हुआ है।
भरोसे पर दी थी ज़मीन, नहीं बना कोई दस्तावेज़
एक रिपोर्ट के अनुसार, यह कहानी हरिवंशभाई पटेल के परदादा से शुरू होती है। उनके पास अहमदाबाद के पास दसक्रोई तालुका में खेती योग्य भूमि का एक टुकड़ा था। उस समय उनके बच्चे छोटे थे और खेती-किसानी नहीं कर सकते थे। इसलिए, उन्होंने वह ज़मीन अपने दोस्तों को देखरेख और खेती करने के लिए दे दी। इसके बदले में उन्हें दोस्तों से एक निश्चित रकम मिल जाया करती थी। सबसे दिलचस्प बात यह है कि ज़मीन देते वक्त कोई कानूनी दस्तावेज़ नहीं बनाया गया, सब कुछ आपसी भरोसे पर चल रहा था।
45 साल बाद आया कहानी में मोड़
साल 1980 में पटेल (परदादा) का निधन हो गया। उनके परिवार को इस ज़मीन के बारे में कोई खास जानकारी नहीं थी। इस बीच, किशनभाई पडोदरा (जिन्हें ज़मीन सौंपी गई थी) उस पर खेती करते रहे। जैसे-जैसे समय बीता, पटेल का परिवार अहमदाबाद में ही नरोदा इलाके में जाकर बस गया और दोनों परिवारों के बीच संपर्क लगभग टूट गया।
कहानी ने असली मोड़ 2024 में लिया। किशनभाई पडोदरा को ज़मीन की अच्छी कीमत मिल रही थी, इसलिए उन्होंने इसे बेचने का फैसला किया। लेकिन उनकी ईमानदारी ने उन्हें ऐसा करने से रोका। उन्होंने नैतिक आधार पर फैसला किया कि वह ज़मीन के असली मालिकों (पटेल परिवार) को ढूंढेंगे और ज़मीन से मिली रकम उन्हें सौपेंगे।
जब खुद पैसे लौटाने पर हुआ विवाद
पडोदरा ने कलेक्ट्रेट और राजस्व रिकॉर्ड्स की मदद से पटेल परिवार को खोजना शुरू किया। ज़मीन का सटीक आकार रिकॉर्ड में नहीं मिल पा रहा था, लेकिन उन्होंने एक दस्तावेज़ पेश किया, जिससे ज़मीन सरकार के कब्ज़े में जाने से बच गई।
सरकार द्वारा ज़मीन को किशनभाई के नाम पर स्थानांतरित करने के बाद, इसे 2.76 करोड़ रुपये में बेच दिया गया। इसके बाद, जब पडोदरा पैसे देने के लिए पटेल परिवार के पास पहुँचे, तो विवाद खड़ा हो गया। शायद पटेल परिवार को इतनी बड़ी रकम या इस पूरी कहानी पर यकीन नहीं हुआ।
हाई कोर्ट ने की ईमानदारी की सराहना
यह विवाद सुलझाने के लिए गुजरात हाई कोर्ट की लोक अदालत तक पहुँच गया। हाई कोर्ट ने इस मामले में एक बेहद अहम टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि जो शख्स 45 साल बाद खुद पैसे लौटाने आया है, उसकी नीयत पर शक नहीं किया जाना चाहिए। हाई कोर्ट ने यह भी गौर किया कि पटेल परिवार को वाकई इस ज़मीन के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।
आखिरकार, लोक अदालत में दोनों पक्षों के बीच सुलह हुई। ज़मीन की इतने वर्षों तक देखरेख (maintenance) करने का खर्च काटने के बाद, यह फैसला किया गया कि पटेल परिवार को 98 लाख रुपये दिए जाएं। यह मामला आज के समय में ईमानदारी की एक सच्ची मिसाल बन गया है।
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