महिलाएं समाज की शानदार अनसुनी सुपरहीरो हैं- जिन्हें घर और काम दोनों का प्रबंधन अकेले करने के लिए मजबूर किया जाता है। वह भी ऐसे जैसे कि रैंप पर चलने वाली कोई मॉडल कुशलता और लालित्य के साथ करती है। हालांकि परिवर्तन की हवा सही दिशा में बहने लगी है। फिर भी उन्हें ठोस परिवर्तन लाने के लिए काफी कुछ करना बाकी है।
उदाहरण: यहां तक कि जब महिलाओं को अपने सपनों के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, तो वे लैंगिक रूढ़िवादिता के जाल में फंस जाती हैं।
विज्ञान मुख्य रूप से विश्व स्तर पर पुरुषों का वर्चस्व वाला क्षेत्र है, लेकिन भारत में लिंग अनुपात अधिक विषम है।
उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण (एआईएसएचई) की सालाना रिपोर्ट के अनुसार, भारत में विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (एसटीईएम) में कुल स्नातकों में से केवल 43 प्रतिशत महिलाएं हैं।
स्वीडिश साइंस काउंसलर फैनी वॉन हेलैंड ने हाल ही में कहा था कि एसटीईएम में सबसे अधिक महिला स्नातक होने के बावजूद भारत में अनुसंधान विकास संस्थानों और विश्वविद्यालयों में केवल 14 प्रतिशत महिला वैज्ञानिक, इंजीनियर और प्रौद्योगिकीविद हैं। यह अंतर काफी स्पष्ट है और काम का माहौल इस लैंगिक असमानता को दर्शाता है।
इन सबके बावजूद महिलाएं न केवल लैंगिक रूढ़िवादिता बल्कि सामाजिक-आर्थिक दबावों पर काबू पाने के लिए शीशे की छत को तोड़ना जारी रखती हैं, और लगातार काफी प्रगति कर रही हैं। वाइब्स ऑफ इंडिया की टीम ने ऐसी चार महिलाओं से बात की है।
ये उन महिलाओं की दास्तां हैं, जो बाधाओं को तोड़कर अपने परिवारों के पूर्ण समर्थन के साथ आगे बढ़ी हैं- शादी से पहले और बाद में भी।
अनुजा शर्मा, इसरो के स्पेश एप्लीकेशन सेंटर में वरिष्ठ वैज्ञानिक
48 वर्षीय अनुजा शर्मा 23 साल की उम्र में ही इसरो में शामिल हो गई थीं। वह अंतरिक्ष अनुसंधान के विकास में योगदान देने वाले स्पेश एप्लीकेशन सेंटर (एसएसी) में कार्यरत हैं। शर्मा इंडियन नेशनल कार्टोग्राफिक एसोसिएशन, गुजरात की सदस्य भी हैं।
वह उस सोच से अलग हैं, जिस तरह करीना कपूर के किरदार की तरह पिया ने फिल्म 3-इडियट्स में कहा, एक बच्चे का पेशा जन्म से ही तय हो जाता है- अगर लड़की है, तो वह डॉक्टर बन जाएगी और अगर लड़का है, तो वह इंजीनियर बनेंगा। शर्मा ने अपने लिए राह खुद बनाई। उन्होंने ऐसे समय में कंप्यूटर इंजीनियरिंग करने का फैसला किया, जब किसी व्यक्ति के करियर का भाग्य उसके लिंग पर निर्भर था।
शर्मा ने कहा, “उस समय पिता चाहते थे कि मैं एक डॉक्टर बनूं और मेरे दो बड़े भाई इंजीनियर बनें। मुझे कम से कम इतना सौभाग्य मिला कि मुझे समान अवसर मिले।”
उन्होंने कहा, “हालांकि मैंने अपने पिता से पहले ही कह दिया था कि मैं इंजीनियर बनना चाहती हूं, क्योंकि मेरे भाई इंजीनियर थे। अच्छी बात यह रही कि बिना सोचे-समझे पिता मान गए।”
शर्मा ने कंप्यूटर विज्ञान में आगे बढ़ने का फैसला किया, क्योंकि वह कंप्यूटर के अचानक उपयोग और उछाल से प्रेरित थीं। वह याद करते हुए बताती हैं, “जब मैं कॉलेज में प्रवेश पत्र लेने गई, तो काउंटर पर मौजूद व्यक्ति ने मुझे आर्ट्स स्ट्रीम के लिए फॉर्म दिया। जब मैंने उससे कहा कि मैं इंजीनियरिंग करना चाहती हूं, तो उसने मुझसे कहा कि लड़कियां इंजीनियरिंग नहीं कर सकती हैं।”
इस तरह बेफिक्र रहते हुए उन्होंने प्रवेश परीक्षा पास की और 1996 में सरकार द्वारा संचालित सम्राट अशोक प्रौद्योगिकी संस्थान, विदिशा से इंजीनियरिंग स्नातक पाठ्यक्रम पूरा किया। फिर अगले वर्ष इसरो में शामिल हो गईं।
शर्मा ने कहा, “ईमानदारी से कहूं तो अंतरिक्ष वैज्ञानिक बनने की कोई योजना नहीं थी।” उन्होंने कहा, “मैंने एक अखबार के विज्ञापन को देख आवेदन किया था और परीक्षा पास करने में सक्षम रही।” वह कहती हैं, “उस समय इसरो में बहुत कम महिलाएं होती थीं। माता-पिता ने समाज की अस्वीकृति के बावजूद मेरा पूरा समर्थन किया। मेरे रिश्तेदार इसरो में शामिल होने के मेरे फैसले पर सवाल उठाते थे, लेकिन मेरे पिता मेरे लिए वही करने पर अडिग थे, जो मैं करना चाहती थी।” शर्मा ने आगे कहा, “ससुराल वाले भी बहुत सहायक रहे हैं। विशेष रूप से पति, जो इसरो में वरिष्ठ वैज्ञानिक भी हैं।” वह गर्व से कहती हैं, “अब इसरो में और भी महिलाएं हैं।”
शर्मा इसरो अहमदाबाद में महिला दिवस के लिए एक विशेष कार्यक्रम का भी आयोजन कर रही हैं। उन्होंने स्किट के लिए लिखी गई चार पंक्तियों को साझा किया।
“अगर हम अपनी बेटियों और बेटों के लिए समान नियम निर्धारित करते हैं, तो हमें अतिरिक्त प्रोत्साहन की आवश्यकता नहीं है। हमें जेईई मेन्स में आरक्षण की आवश्यकता नहीं होगी, हम लड़कियां अपने आप जीत जाएंगी।” वह मुस्कराती हुई कहती हैं, ”हमें अपने बेटों को सिखाना होगा कि महिलाएं पुरुषों से कम नहीं होती हैं।”
शर्मा ने कहा कि आज महिलाओं के पास कई अवसर हैं और समय भी बदल गया है। वह कहती हैं, “एक-दूसरे के साथ विचारों पर चर्चा करें। हम जरूर कामयाब होंगे।”
शर्मा वर्तमान में दो परियोजनाओं- ओशनसैट 3 और एनआईएसएआर (नासा और इसरो का एक संयुक्त उद्यम) पर काम कर रही हैं।
दिति चोकशी, बायोकैमेस्ट्री में एसोसिएट प्रोफेसर, एमजी साइंस इंस्टीट्यूट, अहमदाबाद
54 वर्षीया दिति चोकशी एमजी साइंस इंस्टीट्यूट में बायोकैमिस्ट्री की एसोसिएट प्रोफेसर हैं। वह अपनी नौकरी से प्यार करती हैं। कहती हैं कि पढ़ाने से बेहतर कोई काम नहीं है। वह कहती हैं, “यह मुझे युवा रखता है और मुझे अपना ज्ञान प्रदान करने का मौका देता है।” चोकसी ने भारतीय शास्त्रीय संगीत में उपंत्य विशारद भी पूरा किया है और सितार को काफी कुशलता से बजाती हैं।
बचपन में फिल्म देखने के दौरान ‘कैंसल’ को ‘कैंसर’ के रूप में पढ़ लेने से जीवन में बहुत पहले ही उसे जान लिया। वह जानती थी कि वह अपनी मौसी की तरह ही डॉक्टर बनना चाहती है।
हालांकि समय अलग था और वह सीबीएसई की छात्रा थीं। उस समय अहमदाबाद में केवल एक सीट उपलब्ध थी, जिसे वह हासिल नहीं पा रही थी। वह अहमदाबाद भी नहीं छोड़ना चाहती थीं, क्योंकि वह शास्त्रीय संगीत में स्नातक की पढ़ाई कर रही थीं, वह दुखी थीं।
चोकशी कहती हैं, “इसलिए मैंने बायोकैमिस्ट्री को अपने प्रमुख विषय के रूप में चुना, क्योंकि यह अन्य शाखाओं की तुलना में दवा के सबसे नजदीकी चीज थी।”
सेंट जेवियर्स, अहमदाबाद से बायोकैमिस्ट्री में स्नातक करने के बाद उन्होंने एमएसयू बड़ौदा से बायोकैमिस्ट्री में मास्टर्स की पढ़ाई की। वह याद करती हुई कहती हैं, “मैंने बड़ौदा में अपने मास्टर की पढ़ाई करने का फैसला किया। ऐसे में मुझे अपने संगीत पाठ्यक्रम के अंतिम वर्ष को छोड़ना पड़ा। मुझे अपने स्वयं को लेकर संदेह थे।”
चोकशी कहती हैं, ”माता-पिता का बहुत सहयोग रहा है। मेरी मां भी शुरू में मेरे साथ बड़ौदा आई थीं, ताकि मेरा घर बसा सके।” वह कहती हैं, ”माता-पिता ही नहीं, मेरे पति और ससुराल वाले भी मेरे साथ खड़े हैं।”
उन्होंने बताया, “जब मैं अपने मास्टर की पढ़ाई कर रही थी, तो मैं हमेशा अपने प्रोफेसरों को देखती थी। विशेष रूप से डॉ तारा मेहता, जो हमें पोषण पढ़ाती थीं, मेरी पसंदीदा थीं। वह दो घंटे तक व्याख्यान देती थीं, लेकिन वह कभी उबाऊ नहीं होता।”
चोकशी कहती हैं, “डॉ मेहता काफी जानकार थीं और हमेशा उत्साह और स्नेह से मिलतीं। मैं उन गुणों को अपने पेशे में आत्मसात करने की कोशिश करती हूं।”
छात्रों के साथ जुड़ना किसी प्रोफेसर के लिए नौकरी का अनिवार्य हिस्सा होता है। उनके कई पुराने छात्र अभी भी उनके संपर्क में हैं। उनमें से एक छात्रा एबॉट लेबोरेटरीज में शीर्ष पद पर है। वह दिल के लिए कृत्रिम मशीन बनाने वाली कंपनी का महत्वपूर्ण हिस्सा है। चोकशी अपने पूर्व छात्रा के बारे में गर्व से कहती हैं, “उन दिनों परमिता कक्षा में इतनी केंद्रित नहीं थी, लेकिन मुझे पता था कि वह बहुत कुछ हासिल कर सकती है।”
दूसरे हैं मशहूर आरजे आरजे ध्वनित, जो सबसे लंबे समय से अपने शिक्षक के संपर्क में हैं।
चोकसी का कहना है कि भारत में स्नातक स्तर पर शुद्ध शोध का अभाव है। स्नातक स्तर पर व्यावहारिक अनुसंधान प्रशिक्षण अनिवार्य है। उन्होंने जोर देकर कहा कि युवा पीढ़ी को विज्ञान में रुचि रखने के लिए कैंसर, एड्स, आणविक जीव विज्ञान और पोषण जैसे दिलचस्प विषयों को स्कूल में ही बहुत ही बुनियादी लेकिन दिलचस्प स्तरों पर पढ़ाया जाना चाहिए।
डॉ मेघा भट्ट, पर्यावरण वैज्ञानिक और उद्यमी, SciKnowTech
डॉ मेघा भट्ट के पास लगभग 25 वर्षों का अनुभव है। वह एक साथ शोध और अकादमिक क्षेत्र में काम कर रही हैं। उन्होंने डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की है जिसमें इसरो, अहमदाबाद के साथ काम है। वह विज्ञान उद्यमी भी हैं और अपना कोचिंग उद्यम SciKnowTech चलाती हैं जो स्कूल स्तर पर अनुभवात्मक शिक्षण में बच्चों को विज्ञान के लिए गहरा, अधिक मजेदार दृष्टिकोण प्रदान करता है।
डॉ भट्ट कहती हैं, ”बचपन से ही मुझे पढ़ाना पसंद था और मैं हमेशा से शिक्षक बनना चाहती थी, क्योंकि पिता मुंबई में साहित्य विशेषज्ञ हैं।” वह आगे बताती हैं, “मैंने मीठीबाई कॉलेज से वनस्पति विज्ञान में स्नातक और परास्नातक किया और वहां कुछ समय के लिए टैक्सोनॉमी में काम भी किया।”
शादी के बाद वह अहमदाबाद चली गईं। उन्होंने पर्यावरण विज्ञान में डॉक्टरेट करने का फैसला किया, क्योंकि अहमदाबाद में टैक्सोनॉमी उपलब्ध नहीं थी।
वह बताती हैं, “मैं 2003 में इसरो में पीएचडी कर रही थी। मेरी थीसिस नाइट्रोजन चक्र पर भूमि प्रभाव के बारे में थी।” भट्ट याद करती हैं, “लेकिन जैसा कि भाग्य में था, मुझे 2003 में ही अपनी पीएचडी पूरी करनी थी और मैं उस समय गर्भवती थी। इसके अलावा मैं सेंट जेवियर्स में भी पढ़ा रही थी। मैं तीनों एक साथ कर रही थी।”
उन्होंने समय पर अपनी थीसिस पूरी की और अपनी सभी भूमिकाओं को पूरी तरह से निभाने में सक्षम रहीं। बेटे के जन्म के बाद भट्ट ने खुद को उसे समय देने का फैसला किया और काम से ब्रेक ले लिया। उस समय उन्हें इसरो में नौकरी की पेशकश भी की गई थी, लेकिन उन्होंने नहीं किया।
भट्ट कहती हैं, ”पति आशिमा टेक्सटाइल्स के लिए अमेरिकी शाखा का प्रबंधन कर रहे थे और उनका कुछ वर्षों के लिए अमेरिका में तबादला हो गया।” ऐसे में उन्होंने वह वहां भी शिक्षा से जुड़ी रहीं। भट्ट कहती हैं, ”मैंने लांस एंजिल्स में एपी बायोलॉजी और अन्य विषय पढ़ाए।”
अंततः उन्होंने 2009 में भारत वापस आने का फैसला किया। एक लंबे अंतराल के बाद उन्होंने अपना शोध पूरा किया और भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) में डब्ल्यूओएस-ए योजना के तहत एक परियोजना के लिए आवेदन किया। भट्ट ने मुस्कराते हुए कहा, “मैंने 4,000 से अधिक पेपर्स का जिक्र करते हुए व्यापक शोध किया था और परियोजना को आगे बढ़ाने के लिए अनुदान के साथ 26 अन्य प्रतिभागियों के साथ फेलोशिप के लिए 654 लोगों में चुनी गई।”
2014 में स्कॉलर पब्लिशर्स ने उनकी पीएचडी थीसिस को एक किताब के रूप में प्रकाशित किया। भट्ट कहती हैं, “मैंने 2017 तक स्नातकोत्तर स्तर पर अस्थायी रूप से अध्यापन जारी रखा। मैं गुजरात विश्वविद्यालय में जलवायु परिवर्तन और प्रभाव प्रबंधन पर नए शुरू किए गए पाठ्यक्रम को पढ़ा रही थी।”
इस बीच वह अपने बेटे और उसके दोस्तों को अनुभवात्मक शिक्षण के माध्यम से विज्ञान पढ़ाया और यहीं पर 2015 में SciKnowTech का जन्म हुआ। वह कहती हैं, “मैंने विश्वविद्यालय में पढ़ाना जारी रखा और SciKnowTech को भी विकसित किया, लेकिन महसूस हुआ कि मुझे किसी एक को ही चुनना है।”
भट्ट कहती हैं, “आखिरकार SciKnowTech को चुना और मुझे अपने फैसले पर गर्व है।” भट्ट ने कहा, “मैंने क्लबों में वर्कशॉप करना शुरू कर दिया और बच्चों ने प्रोग्राम में दाखिला लेना शुरू कर दिया।” वह गर्व से कहती हैं, “पति ने इस पहल का बहुत समर्थन किया है और उन्होंने अपनी पूर्णकालिक नौकरी छोड़ने का फैसला किया है। वह अब SciKnowHow के प्रशासन की पूरी जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।”
भट्ट कहती हैं, “मैं लैंगिक भेदभाव को ऐसे स्तर पर देखती हूं, जिसकी शुरुआत माता-पिता ने ही की है। आम तौर पर माता-पिता सोचते हैं कि उनकी बेटी कला में बेहतर है और उसे अपनी खुद की सुनने देने के बजाय एक वास्तुकार बनने के लिए प्रेरित करती है।”
भट्ट कहती हैं, “एक दंपति अपनी बेटी को छठी कक्षा में दाखिला दिलाने के लिए आया था, लेकिन अपने बेटे का दाखिला कराया, जो तीसरी कक्षा में था। मैंने उन्हें यह भी सुझाव दिया कि बेटी के लिए यह अधिक फायदेमंद होगा, क्योंकि वह अधिक क्षमतावान थी।”
भट्ट यह भी सुझाव देती हैं कि माता-पिता को अपने बच्चों को उनकी पसंद के क्षेत्र तक सीमित रखने के बजाय अपने लिए निर्णय लेने देना चाहिए।
भट्ट ने इस पहल को आगे बढ़ाने और बच्चों को विज्ञान के बारे में किताबों के माध्यम से सीखने के बजाय एक अवधारणा और व्यावहारिक दृष्टिकोण से पढ़ाने की योजना बनाई है।
हरिणी गुंडा, केमिकल इंजीनियरिंग, IITGN की पीएचडी छात्रा
30 वर्षीया हरिणी गुंडा की बचपन से ही विज्ञान में रुचि थी और सहज जिज्ञासा ने उन्हें केमिकल इंजीनियर बनने के लिए प्रेरित किया। वह वर्तमान में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गांधीनगर (IITGN) से पीएचडी कर रही हैं। उन्होंने ‘सॉलिड प्रोपेलेंट के प्रदर्शन में सुधार के लिए नोवेल बोरॉन नैनो-एडिटिव्स’ विकसित करने के लिए SRISTI-GYTI अवार्ड 2021 जीता है।
अपने पिता के व्यवसाय से प्रेरित केमिकल इंजीनियरिंग को आगे बढ़ाने के साथ उद्योग में खुद को स्थापित करने के प्रयास के रूप में जो शुरू हुआ, उसने हरिणी को अपने मास्टर और अंततः आईआईटीजीएन में पीएचडी करने में मदद की। हरिणी कहती हैं, ”मैं खुद को स्थापित करना चाहती थी, क्योंकि मेरा पूरा परिवार आंध्र प्रदेश में कपड़ा व्यवसाय में है, जो केमिकल इंजीनियरिंग को चुनने का एक कारण भी है।”
गुंटूर की रहने वाली गुंडा न केवल अपने परिवार में बल्कि अपने पूरे समुदाय में सबसे ज्यादा पढ़ी-लिखी लड़की हैं। गुंडा कहती हैं, ”मेरे भाइयों ने अपने-अपने क्षेत्रों में स्नातक तक की डिग्री पूरी कर ली है, जबकि मैं हमेशा विज्ञान की पढ़ाई करना चाहती थी। इसमें माता-पिता ने मेरा पूरा समर्थन किया है।”
उनके पिता समुदाय के तानों को खारिज करते रहे हैं। वह गर्व से कहती हैं, “पिता हमेशा उन्हें बताते हैं कि स्कूली शिक्षा पूरी होने के बाद मुझे हरिणी की शिक्षा पर एक पैसा खर्च नहीं करना पड़ा। उसने पुरस्कार और छात्रवृत्तियां जीती हैं।”
वह बताती हैं कि उनके समुदाय में लड़कियां ज्यादातर अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करती हैं और उनकी शादी हो जाती है। वह आगे कहती हैं, ”हमारे समुदाय के मेरे सभी दोस्त शादीशुदा हैं और उनके बच्चे हैं। मेरी भी अभी पिछले साल शादी हुई है।” उनके पति भी उतने ही सहयोगी रहे हैं और वर्तमान में अमेरिका में हैं। वह वहां वरिष्ठ वैज्ञानिक के रूप में काम कर रहे हैं।
विज्ञान में काम के माहौल के बारे में बात करते हुए हरिणी का कहना है कि यह किसी भी अन्य कार्यस्थल से बहुत अलग नहीं है। वह कहती हैं, “काम का माहौल काफी अच्छा है लेकिन पुरुषों में अभी भी कुछ पूर्वाग्रह हैं। वे आम तौर पर सहयोगियों के तौर पर महिलाओं को कम आंकते हैं। हालांकि मेरे पर्यवेक्षक प्रो कबीर जसुजा, बहुत सहायक और समझदार रहे हैं। उन्होंने बोरॉन के साथ मेरी परियोजना की दिशा में सोचने के लिए मेरे दिमाग में बीज डाला और एक शोधकर्ता के रूप में मेरी पूरी मदद की।”
गुंडा वर्तमान में डीआरडीओ और इसरो के साथ काम कर रही है, क्योंकि बोरॉन-नैनोकणों के साथ उसकी परियोजना में अंतरिक्ष और रक्षा में अनुप्रयोग हैं। आगे चलकर हरिनी ने पर्यावरण के साथ समस्याओं को हल करने और नैनोकणों के माध्यम से स्थायी ऊर्जा प्रदान करने की योजना बनाई है।
एसटीईएम को आगे बढ़ाने के लिए अधिक लड़कियों को प्रेरित करने पर वह कहती हैं, “बदलाव की शुरुआत घर से होनी चाहिए। लड़कियों को यह विश्वास करते हुए बड़ा होना चाहिए कि जिसमें उनकी रुचि है, उसमें वे कुछ भी कर सकती हैं।”