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अमेरिका में भारतीयों पर हमले बढ़े: एक हफ्ते में दो की हत्या से दहशत, सुरक्षा पर उठे गंभीर सवाल

| Updated: October 6, 2025 15:10

अक्टूबर 2025 में छात्र और व्यवसायी समेत दो भारतीयों की हत्या से सनसनी, जानिए अमेरिका में क्यों असुरक्षित महसूस कर रहा है भारतीय समुदाय।

नई दिल्ली: अमेरिका में भारतीय नागरिकों की सुरक्षा को लेकर एक बार फिर गंभीर चिंताएं पैदा हो गई हैं। अक्टूबर 2025 में कुछ ही दिनों के अंतराल में दो अलग-अलग हिंसक घटनाओं में दो भारतीय नागरिकों—चंद्रशेखर पोले और राकेश एहगबन—की बेरहमी से हत्या कर दी गई। इन घटनाओं ने अमेरिका में रह रहे भारतीय समुदाय में शोक और आक्रोश की लहर दौड़ा दी है।

क्या हैं ये दर्दनाक घटनाएँ?

पहली घटना 1 अक्टूबर को टेक्सास के डेंटन शहर में हुई। यहाँ हैदराबाद के रहने वाले 27 वर्षीय छात्र चंद्रशेखर पोले की एक गैस स्टेशन पर डकैती के दौरान गोली मारकर हत्या कर दी गई। चंद्रशेखर वहाँ पार्ट-टाइम नौकरी करते थे। वह 2023 में बैचलर ऑफ डेंटल सर्जरी (BDS) की डिग्री पूरी करने के बाद पोस्ट-ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए अमेरिका आए थे और एक स्थायी नौकरी की तलाश में थे।

इसके ठीक तीन दिन बाद, 4 अक्टूबर को पेंसिल्वेनिया के पिट्सबर्ग में 51 वर्षीय भारतीय मूल के मोटल मालिक राकेश एहगबन को उनके मोटल के बाहर ही सिर में गोली मार दी गई। बताया जा रहा है कि वह गाड़ी पार्किंग को लेकर हुए एक विवाद को देखने के लिए बाहर निकले थे।

ह्यूस्टन में भारतीय वाणिज्य दूतावास ने चंद्रशेखर के परिवार को हर संभव मदद का आश्वासन दिया है। तेलंगाना के बीआरएस विधायक टी. हरीश राव ने इस घटना को “दिल दहला देने वाला” बताते हुए दुख व्यक्त किया और उनके पार्थिव शरीर को जल्द से जल्द भारत लाने की अपील की।

वहीं, राकेश एहगबन मामले में पुलिस ने 37 वर्षीय स्टेनली यूजीन वेस्ट नामक व्यक्ति को आरोपी बनाया है। सर्विलांस फुटेज में कथित तौर पर वेस्ट को राकेश पर गोली चलाते हुए देखा गया, जब राकेश ने उससे पूछा कि क्या सब ठीक है। इससे कुछ ही पल पहले, वेस्ट ने कथित तौर पर अपनी महिला साथी को भी गर्दन में गोली मार दी थी, जो एक बच्चे के साथ कार में बैठी थी। महिला की हालत गंभीर बनी हुई है।

बढ़ती हिंसा की एक चिंताजनक प्रवृत्ति

ये मौतें कोई अकेली घटना नहीं हैं, बल्कि अमेरिका में भारतीयों के खिलाफ बढ़ते अपराधों की एक खतरनाक कड़ी का हिस्सा हैं। छात्र, तकनीकी पेशेवर, व्यवसायी और कलाकार, सभी किसी न किसी रूप में इस हिंसा का शिकार हो रहे हैं।

एक 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, 2018 से अब तक 800 से अधिक भारतीय छात्रों की विदेशों में मौत हुई है, जिनमें सबसे ज़्यादा 141 मौतें अमेरिका में दर्ज की गईं। इन मौतों के कारण भले ही अलग-अलग हों, जैसे दुर्घटनाएं, आत्महत्या या मेडिकल इमरजेंसी, लेकिन हिंसक अपराधों का बढ़ता अनुपात एक गंभीर चिंता का विषय है।

हाल की कुछ और दिल दहला देने वाली घटनाएँ:

  • सितंबर 2025: डलास के एक मोटल में वॉशिंग मशीन को लेकर हुए विवाद में चंद्र मौली नागमल्लैया का सिर कलम कर दिया गया। आरोपी ने क्रूरता की हदें पार करते हुए उनके सिर को लात भी मारी थी।
  • सितंबर 2025: कैलिफोर्निया में तेलंगाना के 30 वर्षीय टेक वर्कर मोहम्मद निजामुद्दीन की पुलिस ने गोली मारकर हत्या कर दी। उनके परिवार को इस घटना की सूचना दो हफ्ते बाद दी गई, जिससे पारदर्शिता पर सवाल खड़े हुए।
  • मार्च 2025: कोलकाता के एक शास्त्रीय नर्तक अमरनाथ घोष की सेंट लुइस, मिसौरी में गोली मारकर हत्या कर दी गई। हत्या का मकसद अभी तक अज्ञात है।
  • जनवरी 2024: जॉर्जिया में हरियाणा के 25 वर्षीय छात्र विवेक सैनी की एक बेघर व्यक्ति ने हत्या कर दी, जिसकी विवेक कथित तौर पर मदद कर रहे थे।

हिंसा के पीछे के संभावित कारण

हालांकि हर मामले को घृणा अपराध (Hate Crime) नहीं कहा जा सकता, लेकिन बंदूक हिंसा और हिंसक हमले भारतीयों की मौत के आम कारण बनते जा रहे हैं। इसके अलावा, मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे और विदेश में पढ़ाई और काम का दबाव भी कई भारतीय छात्रों की आत्महत्या का कारण बन रहा है। कुछ मामलों में, अधिकारियों द्वारा देरी से जानकारी दिए जाने से परिवारों में अविश्वास और डर का माहौल बना है।

2017 में कंसास में श्रीनिवास कुचिभोटला की नस्लीय हिंसा में हुई हत्या आज भी एक भयावह याद के रूप में मौजूद है, जो यह बताती है कि घृणा अपराध का खतरा हमेशा बना रहता है।

कार्रवाई की मांग

इन लगातार हो रही घटनाओं के बीच, भारतीय समुदाय के नेताओं और अधिकारियों ने अमेरिकी अधिकारियों से भारतीय नागरिकों के लिए सुरक्षा और सहायता बढ़ाने की बार-बार अपील की है। साथ ही, भारत सरकार से भी एक मजबूत सहायता प्रणाली स्थापित करने का आग्रह किया गया है, जिसमें कानूनी सहायता, परामर्श सेवाएं और शोक संतप्त परिवारों के लिए शवों को शीघ्र स्वदेश लाने की व्यवस्था शामिल हो।

जब तक ठोस कदम नहीं उठाए जाते, तब तक विदेश में अपने प्रियजनों के साथ रहने वाले भारतीय परिवार एक अनजाने डर के साये में जीने को मजबूर रहेंगे।

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