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बॉम्बे हाई कोर्ट ने मृत अविवाहित युवक के स्पर्म को सुरक्षित रखने का दिया आदेश, जानिए पूरा मामला

| Updated: June 27, 2025 09:59

मां ने बेटे के संरक्षित वीर्य के उपयोग की अनुमति मांगी, फर्टिलिटी सेंटर के इनकार के बाद हाई कोर्ट पहुंचीं

मुंबई: बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक फर्टिलिटी सेंटर को निर्देश दिया है कि वह एक अविवाहित मृत युवक का संरक्षित वीर्य (फ्रोज़न सीमेन) सुरक्षित रखे, जब तक उसकी मां द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई पूरी नहीं हो जाती। मां अपने बेटे के वीर्य का उपयोग कर परिवार की वंश परंपरा को आगे बढ़ाना चाहती हैं, लेकिन फर्टिलिटी सेंटर ने वीर्य देने से इनकार कर दिया था।

न्यायमूर्ति मनीष पितले ने कहा कि यदि याचिका पर फैसला होने से पहले वीर्य नष्ट कर दिया गया तो याचिका का उद्देश्य “निरर्थक” हो जाएगा।

याचिका के अनुसार, बेटे को कैंसर होने पर उसके ऑन्कोलॉजिस्ट ने उसे कीमोथेरेपी से संभावित बांझपन के खतरे के कारण वीर्य संरक्षित कराने की सलाह दी थी। युवक ने यह कदम बिना परिवार से चर्चा किए उठाया और फार्म में यह विकल्प चुना कि उसकी मृत्यु के बाद वीर्य नष्ट कर दिया जाए। वह 16 फरवरी को 21 वर्ष की आयु में बिना वसीयत के निधन हो गया।

मां ने 24 और 26 फरवरी को नोवा आईवीएफ फर्टिलिटी सेंटर को ईमेल भेजकर वीर्य नमूना नष्ट न करने और उसे गुजरात के एक आईवीएफ सेंटर में स्थानांतरित करने की अनुमति देने का अनुरोध किया। लेकिन 27 फरवरी को नोवा ने इसके लिए कोर्ट से अनुमति लाने की बात कहते हुए इसे देने से इनकार कर दिया। उन्होंने यह निर्णय असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (विनियमन) अधिनियम और नियमों के तहत लिया।

1 अप्रैल को महाराष्ट्र के सार्वजनिक स्वास्थ्य सचिव ने मां को राष्ट्रीय बोर्ड से संपर्क करने को कहा। 6 मई को केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने भी मां का अनुरोध ठुकरा दिया। इसके बाद मां ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। वीर्य नमूने को 31 जुलाई तक संरक्षित रखने की समयसीमा तय थी।

मां की ओर से अधिवक्ताओं निखिलेश पोटे और तन्मय जाधव ने दायर याचिका में कहा गया है कि परिवार में अब कोई पुरुष सदस्य नहीं बचा है। पति की 45 वर्ष में और देवर की 21 वर्ष की आयु में मृत्यु हो चुकी है। अब उनका इकलौता बेटा भी 21 वर्ष की उम्र में चल बसा। मां का कहना है कि वह बेटे के वीर्य के जरिए परिवार की विरासत को आगे बढ़ाना चाहती हैं।

याचिका में कहा गया कि मृतक बेटे ने जिस फॉर्म पर हस्ताक्षर किए थे उसमें दो विकल्प थे— वीर्य नष्ट करना या (यदि विवाहित हो तो) पत्नी को सौंपना। चूंकि बेटा अविवाहित था, उसने संभवतः ‘नष्ट’ करने का विकल्प चुना। याचिका में यह भी कहा गया कि बेटे ने अपने अंतिम दिनों में अपनी मौसी से कहा था कि “स्पर्म से मेरे बच्चे पैदा करवाओ जो मेरी मां और परिवार की देखभाल करेंगे।”

मां की ओर से यह भी तर्क दिया गया कि भारतीय कानून में वीर्य को संपत्ति माना जाता है और मृतक की संपत्ति के उत्तराधिकारी उसके माता-पिता होते हैं।

न्यायमूर्ति पितले ने कहा कि यह मामला “किसी व्यक्ति के मृत्यु के बाद उसके वीर्य/गैमेट को किस तरह संरक्षित किया जाए” जैसे महत्वपूर्ण सवाल उठाता है।

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