लागू हो गया विवादास्पद आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) कानून - Vibes Of India

Gujarat News, Gujarati News, Latest Gujarati News, Gujarat Breaking News, Gujarat Samachar.

Latest Gujarati News, Breaking News in Gujarati, Gujarat Samachar, ગુજરાતી સમાચાર, Gujarati News Live, Gujarati News Channel, Gujarati News Today, National Gujarati News, International Gujarati News, Sports Gujarati News, Exclusive Gujarati News, Coronavirus Gujarati News, Entertainment Gujarati News, Business Gujarati News, Technology Gujarati News, Automobile Gujarati News, Elections 2022 Gujarati News, Viral Social News in Gujarati, Indian Politics News in Gujarati, Gujarati News Headlines, World News In Gujarati, Cricket News In Gujarati

लागू हो गया विवादास्पद आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) कानून

| Updated: August 4, 2022 15:09

नई दिल्ली: विवादास्पद आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) कानून- 2022 देश में गुरुवार, 4 अगस्त से लागू हो गया। टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, इसके लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बुधवार, 3 अगस्त को ही अधिसूचना जारी कर दी है। हालांकि, इस के नियम अभी तक नहीं बने हैं।

इस साल अप्रैल में संसद में पारित कानून दोषियों, गिरफ्तार व्यक्तियों और विचाराधीन कैदियों के बायोमेट्रिक और व्यवहार संबंधी डेटा एकत्र करने के लिए अधिकारियों की शक्तियों का विस्तार करता है और राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) को इस डेटा को 75 वर्षों तक रखने की छूट देता है। इतना ही नहीं, इस डेटा को अन्य जांच एजेंसियों से साझा भी किया जा सकता है।

कानून के विभिन्न प्रावधानों के तहत जांच एजेंसियां को अंगुलियों, पैरों, हथेलियों के निशान, रेटिना स्कैन, भौतिक, जैविक नमूने और उनके विश्लेषण, हस्ताक्षर, लिखावट या अन्य तरह के डाटा एकत्र करने की छूट होगी।

इसके अलावा, जिन लोगों का डेटा एकत्र किया जा सकता है, उन्हें मौजूदा कानून – कैदियों की पहचान अधिनियम 1920 – से जोड़ दिया गया है। इसमें न केवल गिरफ्तार और दोषी व्यक्तियों को शामिल किया गया है, बल्कि उन व्यक्तियों को भी शामिल किया गया है जिन्हें ‘निवारक कानूनों के तहत हिरासत में’ लिया गया है।

इसके अलावा, डेटा एकत्र करने के लिए अधिकारियों के विवेक, या डेटा गोपनीयता चिंताओं को दूर करने के लिए किसी भी तंत्र के संबंध में किसी भी सुरक्षा उपायों को शामिल किए बिना व्यापक नए प्रावधान जोड़े गए हैं।

कानून के प्रावधानों की संसद में विपक्षी सदस्यों, साथ ही टिप्पणीकारों और प्रबुद्ध नागरिकों ने भारी आलोचना की थी। यह आलोचना गृह मंत्री अमित शाह के इस आश्वासन के बावजूद की गई थी कि कानून पुलिस और फोरेंसिक टीमों की क्षमता बनाने और सजा दरों को बढ़ाने के लिए है।

आपत्तियों में यह भी था कि यह कानून लागू करने वाली एजेंसियों को किसी भी अपराध में आरोपी लोगों से डेटा एकत्र करने के लिए व्यापक अधिकार देता है। जिस अपराध के लिए उन पर आरोप लगाया गया है, उस अपराध की गंभीरता के संबंध में कोई भेद नहीं करता है। विशिष्ट मामलों में डेटा एकत्र करने की अनुमति मांगने के संबंध में कोई प्रावधान नहीं है; पुलिस को किसी से भी यह डेटा एकत्र करने की अनुमति है।

इसके अलावा, अधिकारियों को अब रेटिना स्कैन और व्यवहार संबंधी लक्षणों सहित डेटा एकत्र करने की अनुमति है। इसे संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सभी नागरिकों को गारंटीकृत निजता के मौलिक अधिकार के उल्लंघन के रूप में देखा जा रहा है। एकत्र किए जाने वाले डेटा की इस विस्तृत श्रृंखला और सजा दरों को बढ़ाने के लक्ष्य के बीच कोई स्पष्ट संबंध नहीं है।

पूरे कानून में अस्पष्ट शब्दांकन, डेटा को रखने की अवधि के संबंध में अनावश्यक रूप से गैरजरूरी प्रावधान, और इन सभी में कोई डेटा संरक्षण कानून नहीं होने के मद्देनजर और आपत्तियां आईं।

गौरतलब है कि प्रस्तावित व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 को केंद्र सरकार द्वारा पेश किए जाने के चार साल बाद वापस लेने के एक दिन बाद ही यह कानून लागू कर दिया गया है। पेश किए जाने के बाद इस विधेयक को विचार-विमर्श के लिए एक संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजा गया था। लोकसभा को 3 अगस्त को बताया गया कि जेपीसी ने डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र में व्यापक कानूनी ढांचे के लिए 81 संशोधन और 12 सिफारिशों का प्रस्ताव रखा था।

दिल्ली हाई कोर्ट ने 21 अप्रैल को केंद्र सरकार को एक जनहित याचिका पर नोटिस जारी किया था, जिसमें “माप” जैसे शब्दों की अस्पष्ट परिभाषाओं से निपटने वाले कानून के कई प्रावधानों को चुनौती दी गई थी। इनमें कानून के दायरे में आने वाले लोगों का वर्ग; डेटा स्टोर करने का एनसीआरबी का अधिकार; अधिकारियों की विवेकाधीन शक्तियां; अधिनियम के गैर-अनुपालन के लिए दंड आदि शामिल थे।

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि उपरोक्त प्रावधान को मनमाना, अत्यधिक अनुचित, अनुपातहीन, वास्तविक नियत प्रक्रिया से रहित और भारत के नागरिकों के मौलिक अधिकारों के साथ-साथ भारत के संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन बताया है। ऐसे में हाई कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगते हुए इस साल नवंबर में अगली सुनवाई के लिए इसे सूचीबद्ध किया हुआ है।

Your email address will not be published. Required fields are marked *

%d