राजकोट/अहमदाबाद: एशियाई शेरों के एकमात्र घर, गिर राष्ट्रीय उद्यान में सफारी का आनंद लेने की योजना बना रहे पर्यटकों के लिए एक चौंकाने वाली खबर सामने आई है। सासन गिर होटल एसोसिएशन ने ऑनलाइन सफारी परमिट जारी करने की प्रक्रिया में एक बड़े घोटाले का पर्दाफाश किया है।
90 से अधिक होटलों और रिसॉर्ट्स का प्रतिनिधित्व करने वाले इस एसोसिएशन का आरोप है कि एक संगठित गिरोह छुट्टियों के दौरान परमिट की कालाबाजारी कर रहा है, जिससे आम पर्यटक सफारी के अनुभव से वंचित हो रहे हैं।
इस गंभीर मुद्दे को लेकर सोमवार को एसोसिएशन के प्रतिनिधियों ने गांधीनगर में साइबर क्राइम यूनिट और वन विभाग के अधिकारियों से मुलाकात की और इसमें शामिल लोगों के खिलाफ सख्त जांच की मांग की।
चंद मिनटों में कैसे बुक हो गए सारे परमिट?
एसोसिएशन के अध्यक्ष विनोद जीवाणी ने बताया कि 26 से 31 दिसंबर तक की छुट्टियों के सभी परमिट केवल 18-20 मिनट के भीतर ही पूरी तरह से बुक हो गए, जो कि लगभग असंभव है।
उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा, “एक सामान्य व्यक्ति को अपनी जानकारी भरने, आईडी प्रूफ अपलोड करने और भुगतान करने में कम से कम 7-8 मिनट का समय लगता है। तो फिर 20 मिनट से भी कम समय में 180 परमिट कैसे बुक किए जा सकते हैं? यह स्पष्ट रूप से किसी बड़े सिंडिकेट या धांधली के बिना संभव नहीं है।”
कैसे चल रहा है यह पूरा खेल?
आरोप है कि कई फर्जी और मिलती-जुलती वेबसाइटें ऑनलाइन ‘गिर जंगल सफारी’ बुकिंग की आड़ में पर्यटकों को लूट रही हैं। ये वेबसाइटें आधिकारिक शुल्क से पांच गुना तक अधिक कीमत पर परमिट, होटल बुकिंग और परिवहन की पेशकश करती हैं।
सूत्रों के अनुसार, ये ऑपरेटर्स एक खास तरीके से काम करते हैं। जैसे ही आधिकारिक बुकिंग खुलती है, वे अपने नेटवर्क और कर्मचारियों के नाम पर बड़ी संख्या में टिकट बुक करके स्लॉट को ब्लॉक कर देते हैं। बाद में, वे इन ब्लॉक किए गए टिकटों को रद्द कर देते हैं और उन्हें वेटलिस्ट में शामिल ग्राहकों को बहुत अधिक कीमतों पर बेच देते हैं। इस वजह से, आठ लोगों की सफारी का सामान्य शुल्क जो ₹14,000 से ₹15,000 होता है, वह वीकेंड और छुट्टियों पर बढ़कर ₹25,000 से भी ज्यादा हो जाता है।
क्या है अधिकारियों का रुख?
हालांकि यह समस्या कोई नई नहीं है, लेकिन इस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो सकी है। वन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, चूंकि ये संस्थाएं आधिकारिक रूप से पंजीकृत हैं और उनके पास GST नंबर हैं, इसलिए उन पर निर्णायक कार्रवाई करना मुश्किल हो रहा है।
क्या है समाधान?
इस धोखाधड़ी को रोकने के लिए, होटल एसोसिएशन के अध्यक्ष विनोद जीवाणी ने सुझाव दिया है कि ऑफलाइन परमिट केवल पंजीकृत होटलों के माध्यम से उनके आधिकारिक लेटरहेड पर ही जारी किए जाएं। उन्होंने कहा, “इससे कदाचार को खत्म करने में मदद मिलेगी और असली पर्यटक निराश होकर अपनी योजना रद्द नहीं करेंगे।”
आपको बता दें कि वन विभाग सामान्य दिनों में 150 सफारी परमिट जारी करता है, जिसे छुट्टियों के दौरान बढ़ाकर 180 कर दिया जाता है। हर साल लगभग सात लाख पर्यटक सासन गिर घूमने आते हैं, जिनमें बड़ी संख्या में विदेशी भी शामिल होते हैं। इस तरह का घोटाला न केवल पर्यटकों की जेब पर भारी पड़ रहा है, बल्कि गिर की प्रतिष्ठा को भी धूमिल कर रहा है।
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