गुजरात की विसावदर और कड़ी विधानसभा सीटों के उपचुनाव के नतीजे सोमवार को घोषित हुए तो कांग्रेस के प्रदेश नेतृत्व में कोई खास उम्मीद या हैरानी नहीं दिखी। पार्टी पहले से ही 2027 के विधानसभा चुनावों के लिए अपनी लंबी अवधि की रणनीति “संगठन सृजन अभियान” पर ध्यान दे रही थी।
लेकिन इन हारों के बाद जो उथल-पुथल शुरू हुई, उसने पार्टी के संगठन, एकता और नेतृत्व की कमजोरियों को उजागर कर दिया।
पुनर्जीवन की योजना, लेकिन नेतृत्व ने छोड़ी जिम्मेदारी
उपचुनाव के नतीजों से महज दो दिन पहले गुजरात कांग्रेस ने अपने अभियान के तहत 40 नए जिला कांग्रेस कमेटी (DCC) अध्यक्षों की नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी की थी। यह प्रक्रिया अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) के पर्यवेक्षकों की निगरानी में एक “पायलट प्रोजेक्ट” के तौर पर कराई गई थी, ताकि इसे पूरे देश में दोहराया जा सके।
लेकिन इस कवायद के खत्म होते ही जब गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी (GPCC) अध्यक्ष शक्तिसिंह गोहिल ने हार की “नैतिक जिम्मेदारी” लेते हुए इस्तीफा दिया, तो पार्टी कार्यकर्ताओं में असमंजस और नाराजगी फैल गई।
एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “हमें इन उपचुनावों में जीत की कोई उम्मीद नहीं थी। ये सीटें हमारी नहीं थीं। लेकिन नए DCC अध्यक्षों को तो उनके प्रदेश अध्यक्ष का मार्गदर्शन चाहिए था – और उन्होंने बीच में ही छोड़ दिया।”
उपचुनाव के नतीजे: बदलती राजनीतिक हवा
कांग्रेस ने ये दोनों सीटें 2022 के विधानसभा चुनाव में भी गंवाई थीं। विसावदर, जो पाटीदार बहुल इलाका है, में आम आदमी पार्टी (AAP) के गोपाल इटालिया ने जीत दर्ज की और 2022 में पार्टी के विजेता रहे भूपत भयानी से भी ज्यादा वोट शेयर हासिल किया।
कड़ी सीट हमेशा से बीजेपी का गढ़ रही है। लेकिन विसावदर की कहानी उलझी हुई है – 2017 में कांग्रेस ने पाटीदार आरक्षण आंदोलन की पृष्ठभूमि में यह सीट जीती थी, लेकिन उसके विधायक हर्षद रिबाडिया ने बाद में बीजेपी का दामन थाम लिया। 2022 में रिबाडिया बीजेपी टिकट पर लड़े लेकिन AAP के भयानी से हार गए – और भयानी भी बाद में बीजेपी में शामिल हो गए।
कांग्रेस नेताओं का कहना है कि बार-बार के “दल-बदल” से वोटर नाराज हुए।
ग्राम पंचायत चुनावों में भी बीजेपी को कई जगह झटके लगे – जैसे साबरकांठा के एक गांव में सीपीआई (एम) के उम्मीदवार को सरपंच चुना गया, या अरावली जिले में बीजेपी मंत्री के बेटे की हार – लेकिन इसके बावजूद उपचुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर गिरा। विसावदर में यह करीब 8% और कड़ी में 4% घटा।
हार पर अंदरूनी खींचतान और इनकार
कांग्रेस के कई नेता अभी भी हार की गंभीरता को मानने को तैयार नहीं। कुछ ने पाटीदार वोटों के “ध्रुवीकरण” और बीजेपी की “साजिश” का आरोप लगाया।
पूर्व कांग्रेस विधायक दल नेता परेश धनाणी ने आरोप लगाया कि मतदान से ठीक पहले पुलिस ने इटालिया के इशारे पर विसावदर में शराब की बोतलें जब्त कीं। उन्होंने तंज कसा: “अगर मैं होता तो पुलिस कहती ये परेश धनाणी की सप्लाई है और मुझे गिरफ्तार कर लेती।”
सौराष्ट्र के एक नेता ने कहा, “अगर लोग इटालिया या AAP की तरफ इतने आकर्षित थे तो फिर कड़ी में AAP क्यों ढेर हो गई?”
वहीं, एक कांग्रेस विधायक ने स्वीकार किया कि पार्टी ने इन सीटों पर अपने मुख्य मुद्दे – धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय – को मजबूती से नहीं उठाया।
संगठनात्मक बदलाव पर सवाल
नए DCC अध्यक्षों की नियुक्ति को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं।
एक युवा नेता ने कहा, “शक्तिसिंह जी इनकी नियुक्ति में शामिल नहीं थे, तो वे इन्हें कैसे चलाएंगे?”
एक अन्य नेता ने कहा, “करीब 30% अध्यक्ष सही हैं, 30% बिल्कुल अयोग्य और 30% को मजबूरी में चुना गया क्योंकि कोई विकल्प ही नहीं था।”
पूर्व सांसद ने भी मुस्लिम प्रतिनिधित्व की कमी की आलोचना की। उन्होंने कहा कि पार्टी ने पहली लिस्ट में कोई मुस्लिम नेता नहीं रखा, और बाद में भरूच में एक नियुक्ति करके गलती सुधारी।
इस्तीफे से कांग्रेस में गुस्सा और सहानुभूति
शक्तिसिंह गोहिल के इस्तीफे ने पार्टी में तीखी प्रतिक्रियाएं पैदा कर दी हैं। कुछ ने उन्हें “डूबते जहाज को छोड़ने” का दोषी ठहराया तो कुछ ने उनकी मजबूरी समझी।
गोहिल ने अपनी उपलब्धि के तौर पर बांसकांठा लोकसभा सीट जीतने की मिसाल दी – हालांकि पार्टी ने बाद में वहां की वाव विधानसभा सीट का उपचुनाव भी हार दिया।
उन्होंने कहा कि हाईकमान ने उन्हें “पूरी आजादी” दी थी और पायलट प्रोजेक्ट और AICC अधिवेशन गुजरात में कराने का विचार भी उन्हीं का था।
हालांकि, कई नेताओं का मानना है कि दिल्ली से थोपे गए फैसलों और गुटबाजी ने उन्हें बेबस कर दिया।
राहुल गांधी के बयान से नाराजगी
राहुल गांधी के “शादी का घोड़ा” और “रेस का घोड़ा” जैसे तंज भी कई पुराने नेताओं को चुभ गए।
एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “लोग अपनी जेब से खर्च करके पार्टी के लिए काम करते हैं। अगर उनका अपमान करेंगे तो क्यों रुकेंगे? कोई बाहर से भेजा गया नेता चुनाव नहीं जिता सकता। स्थानीय नेतृत्व को ताकत देनी होगी।”
उन्होंने पार्टी की “ढीली” रणनीति की आलोचना करते हुए कहा, “भाईचारे से सरकार नहीं बदलती, जेल जाना पड़ता है, खून देना पड़ता है।”
आर्थिक तंगी और फीका भविष्य
कांग्रेस की आर्थिक स्थिति भी बेहद खराब है। विसावदर उपचुनाव में एक स्टार प्रचारक ने कहा, “पूरा बजट सिर्फ 20 लाख था – ये तो कुछ भी नहीं।”
एक युवा नेता ने कहा, “पार्टी को खड़ा करने के लिए कम से कम 300 करोड़ चाहिए। वो पैसा कहां से आएगा?”
कभी बीजेपी के खिलाफ आंदोलन चलाने वाले युवा नेता भी हताश दिखे। एक ने कहा, “आज की हालत में तो 50 सीटें भी नहीं जीत सकते, सरकार बनाना तो छोड़िए।”