गांधीनगर: गुजरात में बहुप्रतीक्षित कैबिनेट विस्तार की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और अब नवनिर्वाचित विधायकों के लिए नए आशियानों में जाने का समय आ गया है। जी हाँ, 182 सदस्यों वाली गुजरात विधानसभा के विधायकों के लिए गांधीनगर में 220 करोड़ रुपये की भारी-भरकम लागत से नए फ्लैट्स तैयार किए गए हैं।
चर्चा ज़ोरों पर है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह इसी हफ़्ते अपने गुजरात दौरे के दौरान इन नए विधायक आवासों का उद्घाटन कर सकते हैं।
किसी 5-स्टार होटल से कम नहीं हैं ये फ्लैट
ये नए फ्लैट्स किसी भी मानक पर एक लक्ज़री स्टार होटल को टक्कर देते हैं। लेकिन सबसे ज़्यादा हैरानी की बात है इनका किराया। इन आलीशान घरों में रहने के लिए विधायकों को हर महीने सांकेतिक तौर पर सिर्फ 37.50 रुपये चुकाने होंगे, जो दूध की एक थैली की कीमत से भी कम है।
28,576 वर्ग मीटर के विशाल क्षेत्र में फैले इस कॉम्प्लेक्स में 9-9 मंजिला कुल 12 टावर बनाए गए हैं। मिली जानकारी के मुताबिक, हर एक फ्लैट 204 वर्ग मीटर का है।
प्रत्येक फ्लैट के अंदर विधायकों की सुविधा का पूरा ध्यान रखा गया है। इसमें तीन बेडरूम, एक लिविंग और डाइनिंग एरिया, किचन और एक ऑफिस स्पेस दिया गया है। इसके अलावा, तीन अटैच्ड बाथरूम, ड्रेसिंग और वेटिंग रूम, एक प्राइवेट बालकनी और नौकरों के लिए भी एक अलग कमरा मौजूद है। इन घरों को बड़े टेलीविज़न, स्प्लिट एसी, फ्रिज, गैस और इलेक्ट्रिक गीज़र जैसी आधुनिक सुविधाओं से लैस किया गया है।
यही नहीं, इस पूरे कॉम्प्लेक्स में दो लैंडस्केप गार्डन, एक हेल्थ क्लब, ऑडिटोरियम, बच्चों के खेलने का एरिया, कम्युनिटी कैंटीन, स्विमिंग पूल, मल्टीपर्पज और कम्युनिटी हॉल भी बनाए गए हैं।
विपक्ष ने ‘दोहरे मापदंड’ पर घेरा
एक तरफ जहाँ ये आलीशान फ्लैट्स अपनी भव्यता के लिए चर्चा में हैं, वहीं दूसरी तरफ 37.50 रुपये का किराया राजनीतिक गलियारों में एक बड़ा मुद्दा बन गया है।
गुजरात कांग्रेस के प्रवक्ता पार्थिवराज काठावाड़िया ने वाइब्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए इसे सत्तारूढ़ भाजपा का ‘दोहरा मापदंड’ करार दिया।
उन्होंने कहा, “एक तरफ गरीबों के घरों पर बुलडोजर चलाकर उन्हें तोड़ा जा रहा है और दूसरी तरफ विधायकों को रहने के लिए इतने शानदार फ्लैट दिए जा रहे हैं।”
उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि बेहतर होता कि सरकार इतने महंगे फ्लैट्स बनाने की जगह उन जगहों के हालात सुधारती जहाँ गरीब लोग रहते हैं, या उनके लिए पक्के घर बनवाती।
काठावाड़िया ने सवाल उठाया कि विधायकों के जो पुराने फ्लैट्स हैं, जिनमें से कुछ अभी भी अच्छी हालत में हैं, क्या वे गरीबों को रहने के लिए दिए जाएँगे? उन्होंने यह भी आशंका जताई कि कहीं भविष्य में इन पुराने फ्लैट्स को पुनर्विकास (redevelopment) के नाम पर किसी निजी बिल्डर को न सौंप दिया जाए।
क्यों पड़ी नए फ्लैट्स की ज़रूरत?
इस पूरे मामले पर सरकार का तर्क है कि विधायकों के मौजूदा आवासों की हालत अच्छी नहीं थी और कई तो बेहद जर्जर हो चुके थे। इसी को देखते हुए राज्य सरकार ने विधायकों के लिए बेहतर बुनियादी ढाँचा तैयार करने के लिए यह निवेश करने का फैसला किया।
यह भी पढ़ें-
भाजपा का ‘गुजरात मॉडल’: जब विपक्ष कोमा में हो, तो पार्टी खुद ही सरकार और खुद ही विपक्ष बन जाती है
बिहार चुनाव और छठ पूजा की ‘दोहरी मार’, दिवाली से पहले ही सूरत के कपड़ा बाज़ार में सन्नाटा










