कभी न्याय प्रणाली के प्रदर्शन में देश के शीर्ष चार राज्यों में शामिल रहा गुजरात, इंडिया जस्टिस रिपोर्ट (IJR) 2024 में गिरकर 11वें स्थान पर पहुंच गया है। मंगलवार को जारी रिपोर्ट राज्य की न्याय व्यवस्था की चिंताजनक स्थिति को उजागर करती है—जहां अदालतों में कर्मचारियों की भारी कमी है, कानूनी सहायता का पूर्ण उपयोग नहीं हो पा रहा है और आरक्षण कोटे भी अधूरे रह गए हैं।
राज्य ने भले ही कानूनी सहायता पर राष्ट्रीय औसत से अधिक खर्च किया हो, लेकिन इसकी सेवाएं ज़रूरतमंदों तक पर्याप्त रूप से नहीं पहुंच रही हैं। गुजरात उच्च न्यायालय में महिला न्यायाधीशों की संख्या ज़रूर उल्लेखनीय है, लेकिन निचली अदालतों, मानवाधिकार आयोग और कानूनी सहायता के क्षेत्र में गंभीर खामियां बनी हुई हैं।
न्याय व्यवस्था में गिरावट
गुजरात को न्यायिक प्रदर्शन के मामले में बड़ा झटका लगा है। 2022 में 9वें स्थान पर रहने वाला राज्य अब 18 मध्यम और बड़े राज्यों में 14वें स्थान पर आ गया है। उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों के रिक्त पदों के मामले में गुजरात देश में सबसे आगे है — यहां 38.5% पद खाली हैं, जो कि राष्ट्रीय औसत 32.7% से भी अधिक है।
निचली अदालतों में भी हालात खराब हैं। यहां न्यायाधीशों की रिक्ति दर 31.1% हो गई है। राज्य में एक अधीनस्थ न्यायाधीश पर औसतन 61,795 लोगों का भार है, जो राष्ट्रीय औसत (69,017) से थोड़ा बेहतर है, लेकिन यह भी एक बढ़ती हुई चिंता का विषय है।
कानूनी सहायता में पिछड़ता गुजरात
कभी कानूनी सहायता प्रदान करने में तीसरे स्थान पर रहा गुजरात अब इस मामले में 13वें पायदान पर पहुंच गया है। 2022–23 में राज्य ने कानूनी सहायता बजट का 87% योगदान दिया, लेकिन इसमें से केवल 78% राशि का ही उपयोग हो पाया।
गुजरात की प्रति व्यक्ति कानूनी सहायता पर खर्च ₹7.6 है, जो ₹6.3 के राष्ट्रीय औसत से अधिक है, लेकिन सेवाओं की पहुंच सीमित बनी हुई है। नेशनल लीगल सर्विसेस अथॉरिटी (NALSA) फंड का उपयोग भी 2022–23 में घटकर 69% रह गया। राज्य में 18,000 से अधिक गांवों के लिए सिर्फ 191 लीगल क्लिनिक हैं — यानी औसतन 93 गांवों पर एक क्लिनिक, जो 2017 के मुकाबले बेहतर है, जब एक क्लिनिक 137 गांवों को कवर करता था।
हालांकि, पैरा-लीगल वॉलंटियर्स की संख्या भी घटी है — 2017 में प्रति एक लाख की जनसंख्या पर 4.83 थी, जो 2024 में घटकर 4.02 रह गई है।
लैंगिक और सामाजिक प्रतिनिधित्व में भी कमी
गुजरात उच्च न्यायालय में महिला न्यायाधीशों की भागीदारी 25% है, जो 14% के राष्ट्रीय औसत से बेहतर है। लेकिन अधीनस्थ न्यायपालिका में महिलाओं की भागीदारी सिर्फ 20% है, जबकि राष्ट्रीय औसत 38% है।
राज्य ने आरक्षण कोटे को भी पूरा नहीं किया है। 2022 के बाद से अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिए आरक्षित न्यायिक पदों में से केवल 2% ही भरे गए हैं, जबकि अनुसूचित जातियों (SC) के लिए यह आंकड़ा 97% है। अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) का प्रतिनिधित्व भी अपेक्षा से कम है।
आधारभूत संरचना और बजट का कम उपयोग
गुजरात में अदालत कक्षों की 12.3% और न्यायिक कर्मचारियों के लिए आवास की 20.9% की कमी है। अदालतों में कर्मचारियों की रिक्ति लगभग दोगुनी हो गई है — अब 47% पद खाली हैं। ‘न्याय विकास’ (Nyay Vikas) योजना के तहत बजट का उपयोग 60% से भी कम है, जिससे अदालतों के बुनियादी ढांचे और सेवाओं के विकास में बाधा आ रही है।
मानवाधिकार आयोग की चिंताजनक स्थिति
गुजरात राज्य मानवाधिकार आयोग का प्रदर्शन भी निराशाजनक रहा है। इसे देशभर में 20वां स्थान मिला है। आयोग में 52% पद खाली हैं, कार्यकारी स्टाफ की 25% कमी है और जांच इकाई में महिला अधिकारियों की भारी कमी है — यहां 78.6% पद खाली हैं।
रिपोर्ट के बारे में
इंडिया जस्टिस रिपोर्ट — जो पिछले छह वर्षों में चौथी बार प्रकाशित हुई है — टाटा ट्रस्ट्स द्वारा सरकारी आंकड़ों के आधार पर तैयार की जाती है। यह रिपोर्ट राज्यों को चार प्रमुख स्तंभों पर आंकती है: पुलिस, न्यायपालिका, जेल और कानूनी सहायता। इस बार पहली बार राज्य मानवाधिकार आयोगों के कामकाज को भी शामिल किया गया है।
गुजरात की न्याय प्रणाली में आ रहे इन व्यवस्थित संकटों को देखते हुए, यह रिपोर्ट राज्य सरकार के लिए एक चेतावनी है कि न्याय व्यवस्था की मजबूती के लिए जल्द और ठोस कदम उठाए जाएं।
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