गुजरात को नंबर वन बनना पसंद है। 2001 से निर्यात तैयारी सूचकांक में नंबर एक, कपास उत्पादन में नंबर एक, मूंगफली के उत्पादन में नंबर एक, पर्यटकों के मामले में नंबर एक, विद्युतीकृत में नंबर एक (बिजली औद्योगिक राज्य), नंबर एक अमीर राज्य, हीरा उत्पादन में नंबर एक, जिस-तिस सबमें प्रथम आने का जुनून है उसे। लेकिन एक हालिया शोध रिपोर्ट से पता चला है कि नंबर एक होने का यह जुनून खतरनाक भी है। लेकिन यह सबसे ऊंची मूर्ति-स्टैच्यू ऑफ यूनिटी- में भी नंबर एक है तो दुनिया के सबसे बड़े क्रिकेट स्टेडियम में भी। इसी तरह की कई और बातों में।
अप्रैल 2021 में दुनिया में कोविड-19 से होने वाली मौतों में सबसे अधिक प्रतिशत वाली वृद्धि दर्ज करने में भी गुजरात पहले नंबर पर था।
यह दुनिया में कहीं भी एक महीने में दर्ज की गई मौतों में सबसे अधिक प्रतिशत वृद्धि है, जो अप्रैल 2020 के दौरान इक्वाडोर के 411 प्रतिशत की वृद्धि और अप्रैल 2021 के दौरान पेरू की 345 प्रतिशत की वृद्धि से अधिक है। कोविड से हुई मौतों की संख्या के मामले में गुजरात इन सबमें 480 प्रतिशत के साथ सबसे ऊपर है। एक नंबर की यह ऐसी स्थिति है, जिस पर गुजरात को शर्म आनी चाहिए और शासन करने वालों को हमसे माफी मांगनी चाहिए। माफी, हमें गुजरात में कोविड की वास्तविक स्थिति के बारे में नहीं बताने के लिए।
गुजरात में कोविड की हकीकत
कोविड ने गुजरात को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। लोग पहले एंबुलेंस का बेसब्री से इंतजार करते रहे थे। अगर कोई निजी गैर 108 एम्बुलेंस से अस्पताल तक पहुंच भी जाता था, तो उसे राज्य सरकार के अजीबोगरीब नियम के अनुसार भर्ती नहीं किया जाता। यदि वे सभी संभव प्रभाव का उपयोग करने और सरकारी 108 एम्बुलेंस प्राप्त करने में भाग्यशाली साबित हो भी जाते थे, तो अस्पताल में भर्ती होने के लिए भी आठ घंटे से अधिक समय तक कतार में खड़ा होना पड़ता था।
गुजरात में कोविड जो कहानी सुनाई गई
लेकिन दुनिया को हमेशा नकली आंकड़े, दृश्य और बाइट्स दिए गए। यह बताने के लिए कि कोविड प्रबंधन की दिशा में गुजरात सरकार कितनी कुशलता से काम कर रही थी। कुछ समय के लिए हम भी नकली वेंटिलेटर द्वारा मूर्ख बनाए गए थे, जो वास्तव में अंबू बैग थे।
हम पर नकली सफलता की कहानियों की बमबारी की गई। हकीकत यह थी कि गुजरात सरकार महामारी से निपटने में पूरी तरह विफल रही थी। इसीलिए गुजरात मॉडल का पताका लहराने के दबाव के कारण शवों को जल्दबाजी में दफनाना दिया गया।
लेकिन अब कंकाल निकल चुके हैं। गुजराती कवि पारुल खक्कर ने गुजरात के मामले में पहले ही कहा था- शव वाहिनी गंगा। जी हां, हमने कोविड के बारे में जो कुछ भी सुना, पढ़ा और देखा, वह सब नकली था। केवल सरकारी कहानी थी।
गुजरात में कोविड की यह थी वास्तविक स्थिति
शोधकर्ताओं ने गुरुवार को एक रिपोर्ट जारी करते कहा कि गुजरात की 162 नगर पालिकाओं में से सिर्फ 54 के लिए ही अनुमानित मृत्यु दर पूरे राज्य के लिए आधिकारिक कोविड -19 मृत्यु संख्या से कहीं अधिक है।
द टेलीग्राफ में प्रकाशित इस रिपोर्ट के मुताबिक, अप्रैल 2021 के दौरान गुजरात में अनुमानित 480 प्रतिशत (4.8 गुना) अधिक मौतें हुईं, जब राज्य के प्रतिदिन के मामले अप्रैल की शुरुआत में 2,400 से लगभग छह गुना बढ़कर महीने के अंत तक 14,000 हो गए थे।
यह दुनिया में कहीं भी एक महीने में दर्ज की गई मौतों में सबसे अधिक प्रतिशत वृद्धि है। अप्रैल 2020 के दौरान इक्वाडोर में यह वृद्धि 411 प्रतिशत थी, तो अप्रैल 2021 के दौरान पेरू की 345 प्रतिशत की वृद्धि।
नागरिक मृत्यु रजिस्टर के डेटा का उपयोग करते हुए शोधकर्ताओं ने यह भी अनुमान लगाया है कि मार्च 2020 और अप्रैल 2021 के बीच 54 नगर पालिकाओं में लगभग 16,000 अतिरिक्त मौतें हुईं।
इस बीच, गुजरात सरकार ने शुक्रवार रात तक 10,080 मौतों के आंकड़े को बरकरार रखा है। भारत का स्वास्थ्य मंत्रालय कोविड-19 से हुई मौतों के आंकड़ों के लिए राज्यों पर निर्भर है। उसने गुरुवार तक 436,000 से अधिक की राष्ट्रव्यापी गिनती के बीच गुजरात में 10,081 मौतें दर्ज की हैं।
हार्वर्ड टीसी चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ, हार्वर्ड मेडिकल स्कूल और कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में कहा कि, “इन अतिरिक्त मौतों में से अधिकांश किसी अन्य ज्ञात आपदा की अनुपस्थिति में कोविड-19 से हुई मौतें ही मानी जा रही हैं।”
नया अध्ययन सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ स्वास्थ्य विशेषज्ञों के इस दावे के बीच भारत में कोविड-19 महामारी के दौरान अधिक मौतों का अनुमान लगाने के नवीनतम प्रयास का प्रतिनिधित्व करता है कि इस साल अप्रैल और मई के दौरान आधिकारिक मृत्यु गणना असंगत दिखाई देती है।
टेलीग्राफ की रिपोर्ट के अनुसार, स्वास्थ्य मंत्रालय ने बड़ी संख्या में मौतों के कम होने के दावों को चुनौती दी है, जिसमें कहा गया है कि कुछ मौतों की गिनती रह गई हो सकती है। उसने राज्यों और जिला अधिकारियों को बार-बार किसी भी छूटी हुई मौत की रिपोर्ट करने के लिए ऑडिट करने के लिए कहा है।
हार्वर्ड-यूसीबी के शोधकर्ताओं ने गुजरात के 33 जिलों में से 24 की 54 नगरपालिकाओं के नागरिक रजिस्टर डेटा का विश्लेषण किया है। उन्होंने जनवरी 2019 और फरवरी 2020 के बीच हुई मौतों को आधार मृत्यु दर डेटा के रूप में लिया और इसकी तुलना मार्च 2020 और अप्रैल 2021 के बीच हुई मौतों से की।
मार्च 2020 के बाद से 54 नगरपालिकाओं में कुल 44,568 मौतें दर्ज की गई हैं। दूसरी लहर के दौरान मौतों में सबसे तेज वृद्धि हुई। यह जनवरी 2019 और फरवरी 2020 के बीच बेसलाइन काउंट की तुलना में लगभग 16,000 से अधिक मौतें हैं।
2021 में जनवरी और अप्रैल के बीच रजिस्टर में 17,882 मौतें दर्ज हुई हैं, जो 2019 और 2020 में समान महीनों के औसत से 102 प्रतिशत अधिक है।
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के सहायक प्रोफेसर और अध्ययन के सह-लेखक, आपातकालीन चिकित्सा विशेषज्ञ सचित बलसारी ने द टेलीग्राफ से कहा, “यहां दरअसल इस तरह की महामारी से मृत्यु दर की गणना मृत्यु प्रमाण पत्र पर आधारित है, जो पर्याप्त नहीं है।” अन्य सह-लेखक यूसीबी के जनसांख्यिकीय विशेषज्ञ आयशा महमूद, हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के शोधकर्ता रोलैंडो एकोस्टा और कैरोलिन बकी और नई दिल्ली स्थित नेशनल फाउंडेशन ऑफ इंडिया के बिराज पटनायक हैं।
बलसारी ने कहा, “सरकारों को एक मजबूत और सूक्ष्म मृत्यु पंजीकरण प्रणाली के अभाव में मृत्यु दर का बेहतर अनुमान लगाने के वैकल्पिक तरीकों की तलाश करनी चाहिए। उच्च अतिरिक्त मृत्यु अनुमान इस बात पर भी ध्यान देता है कि कौन, कब और कैसे मरा। इसलिए हम उचित और प्रभावी चिकित्सा प्रतिक्रियाएं को देख सकते हैं।”
रिपोर्ट के मुताबिक, स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोविड -19 से हुई मौतों की बड़ी संख्या से इनकार किया है। उसने कहा है कि अधिक मृत्यु दर सभी कारणों से होने वाली मौतों को कवर करती है और उन्हें कोविड -19 के लिए जिम्मेदार ठहराना “पूरी तरह से भ्रामक” है।
नाम नहीं छापने की शर्त पर एक महामारी विज्ञानी ने टेलीग्राफ को बताया, “हमें यह मानना होगा कि पिछले वर्ष इसी अवधि की तुलना में मौतों में 4.8 गुना भारी वृद्धि के लिए कोई अन्य स्पष्टीकरण नहीं है।” दिल्ली स्थित एक महामारी विज्ञानी ने वाइब्स ऑफ इंडिया को बताया कि गुजरात सरकार को “महत्वपूर्ण डेटा और स्थिति की गंभीरता को छिपाने” के लिए लोगों से सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी चाहिए।
महामारी विज्ञानी ने कहा, “कुछ अतिरिक्त मौतों को दिल के दौरे जैसी अन्य गंभीर स्थितियों के रोगियों की मृत्यु के तौर पर दिखाया जा सकता है, जिन्हें समय पर इलाज नहीं मिल सका, क्योंकि अस्पताल कोविड-19 के मरीजों से भरे हुए थे। लेकिन इस तरह की मौतें मानी गई अधिकता की व्याख्या नहीं कर सकती हैं।”
गुजरात में कोविड के कारण अचानक हुई मौतों के बाद राज्य सरकार एक अजीब नियम लेकर आई कि अगर किसी भी कोविड रोगी की मृत्यु हृदय गति रुकने, गुर्दे की विफलता, मधुमेह या किसी अन्य बीमारी से होती है, तो उस बीमारी को ही मौत के कारण के रूप में लिखा जाना चाहिए, न कि कोविड।
पिछले महीने सेंटर फॉर ग्लोबल हेल्थ रिसर्च, टोरंटो विश्वविद्यालय, कनाडा के शोधकर्ताओं ने तीन डेटा स्रोतों के आधार पर अनुमान लगाया था कि भारत में कोविड-19 से हुई मृत्यु की संख्या 2.7 मिलियन से 3.4 मिलियन के बीच हो सकती है, या आधिकारिक से यह गिनती कम से कम छह गुना हो सकती है।
भारत सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम, जो वर्तमान में अमेरिका में ब्राउन विश्वविद्यालय में हैं, और उनके सहयोगियों ने भी पिछले महीने तीन अलग-अलग तरीकों का उपयोग करते हुए भारत में 3.4 मिलियन, 4 मिलियन या 4.9 मिलियन से अधिक मौतों का अनुमान लगाया था।
हालांकि स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि भारत में “कोविड-19 से हुई मौतों को दर्ज करने के लिए एक मजबूत प्रणाली” है। फिर भी कुछ मामलों का पता नहीं चल सकता है। “मौतों का पता नहीं लगने की संभावना नहीं है।”
मंत्रालय ने पिछले महीने कहा था, “मृत्यु दर पर सुव्यवस्थित शोध अध्ययन आमतौर पर उस घटना के बाद किया जाता है जब मृत्यु दर के आंकड़े विश्वसनीय स्रोतों से उपलब्ध होते हैं।”
टेलीग्राफ की रिपोर्ट के अनुसार, सार्वजनिक क्षेत्र के एक स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने कहा कि यह हैरान करने वाला है कि भारत के लिए अतिरिक्त मौत का अनुमान मुख्य रूप से देश के बाहर के शैक्षणिक संस्थानों द्वारा सामने आ रहा है। उन्होंने कहा, “जबकि यह डेटा पूरी तरह से हमारे नागरिक पंजीकरण प्रणाली से ही लिए गए हैं। भारतीय शैक्षणिक संस्थान इसका विश्लेषण क्यों नहीं कर रहे हैं?” यह एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब देने या विश्लेषण करने के लिए फिलहाल भारत के किसी भी शैक्षणिक संस्थान के पास साहस नहीं है।
वडगाम के विधायक जिग्नेश मेवानी ने बताया की, “रिसर्च चौंकाता है, लेकिन मुझे आश्चर्य नहीं हुआ। रूपाणी की राज्य सरकार ने कभी भी मानव विकास सूचकांक, राज्य में 40% कुपोषण या स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे की कमी की परवाह नहीं की। सरकार जनविरोधी है। आम लोगों की जान की पूरी तरह उपेक्षा की जा रही है, जो आसानी से मर रहे हैं। उद्देश्य सिर्फ चुनाव जीतना है और किसी चीज की परवाह नहीं करनी है।”
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अर्जुन मोढवाडिया ने कहा, “ऑक्सीजन प्लांट लगाने में दो महीने लगते हैं। स्थिति गंभीर होने पर आप इसे 15 दिनों में भी लगा सकते हैं। स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे पर काम करने के लिए सरकार के पास नौ महीने थे, लेकिन उसने कुछ नहीं किया। उसकी प्राथमिकता स्वास्थ्य सेवा नहीं है। उन्होंने सीरम इंस्टीट्यूट से टीकों के ऑर्डर में भी देरी की, जिससे टीकाकरण में देरी हुई। अभी हाल में जूनागढ़ की यात्रा के दौरान मैंने पाया कि कोविड के दौरान अस्पताल में बिस्तर नहीं मिलने से कैसे 10 में से तीन लोगों की मौत हो गई। यह शर्मनाक है।”