जगदीश पटेल परिवार की मौत से भी नहीं टूटा है गुजरातियों का अमेरिकी सपना

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जगदीश पटेल परिवार की मौत से भी नहीं टूटा है गुजरातियों का अमेरिकी सपना

| Updated: September 17, 2022 12:52

जनवरी में आई एक खबर से दुनिया स्तब्ध रह गई थी। खबर गुजरात के चार लोगों के एक परिवार की कनाडा-अमेरिकी सीमा पर मौत को लेकर थी। वह परिवार गैरकानूनी तरीके से अमेरिका में घुसने की कोशिश कर रहा था। परिवार में जगदीश पटेल, उनकी पत्नी वैशाली, 11 वर्षीया बेटी विहांगी और तीन साल का बेटा धर्मिक था। वह परिवार 11 सदस्यीय उस समूह का हिस्सा था, जो गैरकानूनी रूप से अमेरिका में प्रवेश करने की कोशिश कर रहा था। जगदीश पटेल का पूरा परिवार कनाडा में मैनिटोबा के पास कड़ाके की ठंड में जम कर मौत का शिकार हो गया था।

अहमदाबाद में मानव तस्करी (human trafficking) में शामिल एजेंटों पर हाल ही में हुई तीन छापेमारी से पता चला है कि जनवरी की उस दुखद घटना ने भी गुजरात के लोगों को अवैध रूप से विदेशी तटों में प्रवेश करने से नहीं (entering foreign shores illegally) रोका है। मानव तस्करी फल-फूल (Human smuggling is flourishing) ही रही है। गुजरातियों की अमेरिका में प्रवेश करने की आकांक्षाएं और जोखिम लेने की क्षमता (aspirations and risk appetite), विशेष रूप से अवैध तरीकों से, वही है। कुछ बढ़ गया है, तो वह है सिर्फ लागत। अब गुजराती अमेरिका में अवैध प्रवेश के लिए 425,000 डॉलर तक खर्च कर रहे (Gujaratis are shelling out up to $425,000 for illegal entry to America)हैं। इतना खर्च करने वाले ज्यादातर गुजराती मध्यमवर्गीय (middle-class citizens) हैं। हालांकि, उनके पास इतना पैसा नहीं है। फिर भी वे भारत में लगभग 20,000 डॉलर देते हैं। इसलिए वे एक समझौता करते हैं, जिसमें वे अवैध रूप से काम करने के लिए रजामंदी देते (they agree to work, albeit illegally) हैं। मुख्य रूप से वे भारतीय स्वामित्व वाली शराब के ठेकों, दुकानों और वयस्क देखभाल एजेंसियों (Indian-owned liquor shops, stores and adult care agencies) में काम करते हैं। उन्हें बाकी पैसे का भुगतान पांच वर्षों में करना होता है।

अहमदाबाद में तीन एजेंटों पर हाल ही में हुई छापेमारी ने उजागर किया कि कैसे गुजराती किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हैं। इस चक्कर में नकली दस्तावेजों (fake documents) पर अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और पूर्वी यूरोपीय देशों तक पहुंचने के लिए मानव तस्करी का शिकार हो जाते हैं। जैसे एक महिला का मामला देखें। उसने ग्राहकों को “एकत्रित” किया और उन्हें “वीजा की व्यवस्था करने के लिए” (“to arrange for a visa”) नई दिल्ली में एक एजेंट के पास भेज दिया। ग्राहकों द्वारा लगातार पूछे जाने पर महिला ने दावा किया कि दरअसल वह फेसबुक पर रवि अनिल कुमार नामक शख्स से मिली थी, उसीने कनाडा में “असंभव मामलों में” भी विजिटर वीजा दिला देने (visitors visa to Canada “for impossible cases” also) का वादा किया था। लेकिन उसके छह ग्राहकों को वीजा, उनके पासपोर्ट और मूल दस्तावेज नहीं मिले। इसके बाद पुनीता पटेल नाम की उस महिला ने पुलिस में शिकायत दर्ज करा दी। इनमें से प्रत्येक ग्राहक ने आधिकारिक वीजा फीस से कम से कम 80 गुना अधिक पैसे (at least 80 times more than the official visa fees) दिए थे।

एक और मामला देखें। इसमें 50 वर्ष से अधिक उम्र वाले लालजी पटेल ने पुलिस को बताया कि कल्पेश पटेल नामक शख्स ने उससे कनाडा में स्थायी निवास (permanent residency in Canada) दिलाने का वादा किया, जिस पर वह तैयार हो गया था। उसकी बातों में आकर वह कथित तौर पर अवैध दस्तावेजों पर जाने के लिए भी (ready to go on illegal documents) तैयार था। इसी बीच ठगे जाने का अहसास होते ही शिकायत दर्ज करा दी।

पुलिस के अनुसार, मानव तस्करी (human trafficking ) से निपटने वाले कई एजेंट कभी-कभी “दूर उड़ जाते हैं।” यानी लगभग 200,000 डॉलर इकट्ठा करने के बाद ही गायब हो जाते हैं। ऐसे में अगर उनके ग्राहक पकड़े जाते हैं, तो वे अमेरिकी जांच एजेंसियों से बच निकलते हैं। एफबीआई अब सतर्क हो गई (The FBI has now become vigilant) है। इसलिए गुजरात और इन संदिग्ध एजेंटों पर ध्यान केंद्रित कर रही है।

वाइब्स ऑफ इंडिया ने बताया था कि कैसे जगदीश पटेल के गांव डिंगुचा के लोगों का कनाडा में प्रवेश करने या अमेरिका जाने का सपना पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जाना असामान्य नहीं था। राज्य की राजधानी गांधीनगर से लगभग 12 किलोमीटर दूर एक छोटा-सा गांव डिंगुचा निश्चित रूप से अपवाद नहीं है। ऐसे कम से कम 8 “एनआरआई गांव (NRI villages)” हैं, जहां लोग किसी भी कीमत और तरीके से अनिवासी भारतीय (Non-Resident Indians) बनना पसंद करते हैं। जैसा कि वाइब्स ऑफ इंडिया ने हाल ही में बताया था कि अहमदाबाद पुलिस के स्पेशल ऑपरेशंस ग्रुप ने कुछ संदिग्ध गतिविधि की सूचना के बाद दिल्ली दरवाजा इलाके में के कोष्टी एसोसिएट्स (K Koshti Associates ) नामक एक छोटी, जर्जर दुकान पर छापा मारा। पुलिस ने 52 वर्षीय सूर्यप्रकाश कोष्टी, उनके दो बेटों-27 वर्षीय अभिषेक और 22 वर्षीय निशीथ के साथ दो सहयोगियों-जयेश और पुजारी को गिरफ्तार किया।

कोष्टी के लोग इस छोटी-सी दुकान से मानव तस्करी का बड़ा रैकेट (The Koshti men ran an elaborate human smuggling racket from this small shop ) चला रहे थे। वहां से पुलिस ने नकली रबर स्टैंप, दस्तावेजों के अलावा कनाडा और अमेरिका में प्रवेश के लिए बनाए गए अन्य सबूतों को जब्त (police had seized fake rubber stamps, documents and other evidence fabricated for entry to Canada and USA) किया था। यह छापेमारी एसओजी के डिप्टी एसपी (DySP ) बीसी सोलंकी और इंस्पेक्टर पीएम गामित ने इस हफ्ते की शुरुआत में की थी। वाइब्स ऑफ इंडिया को सूचित किया गया है कि यह जर्जर दुकान मानव तस्करी का बड़ा अड्डा था। इसमें कम से कम 950 गुजरातियों के नकली दस्तावेज थे, जो गुजरात (shabby shop was a human smuggling factory and there were fabricated documents of at least 950 Gujaratis desperate to leave Gujarat) छोड़ने और अमेरिका और कनाडा में प्रवास करने के लिए सभी जोखिम और अवैध मार्गों को अपनाने के लिए बेताब थे। इतना ही नहीं, इस जर्जर और गंदी दुकान से बरामद नकली, मनगढ़ंत दस्तावेज जगदीश पटेल के उसी गांव डिंगुचा के कम से कम 36 लोगों के (fabricated documents recovered from this dingy shop, at least 36 people from Dingucha, the same village of Jagdish Patel) थे, जो अपने परिवार के साथ कनाडा-अमेरिका सीमा पर ठंड में जम कर मर गए थे। इन लोगों ने पिछले छह महीनों में ही अमेरिका और कनाडा के लिए उड़ान भरी है। वह भी फर्जी दस्तावेजों पर। उनमें से कई के पास पासपोर्ट भी फर्जी (many of them on fake passports also) हैं।

जैसा कि हमने जनवरी 2022 में लिखा था, गांव के एक बुजुर्ग जो जगदीश पटेल की मौत से हैरान नहीं थे। इसे उन्होंने “जोखिम का हिसाब लगाने (non-calculative risk)” में चूक कहा थे। उन्होंने हमसे कहा था, “अगर कोई बच्चा डिंगुचा में पैदा होता है, तो उसके भाग्य में एक बात लिखा होना तय है- वह अमेरिका जाएंगा (If a child is born in Dingucha, one thing is written in his fate – he will go to America)।” गुजरात के 3000 आबादी वाले डिंगुचा गांव में अमेरिका जाने का बड़ा क्रेज है। इसलिए कि यह राज्य के उन हिस्सों में से एक है, जहां जीवन का अंतिम लक्ष्य अमेरिका जाना है, चाहे कोई भी रास्ता हो। अब तक डिंगुचा के 1800 से अधिक लोग अमेरिका जा चुके हैं। इनमें से अधिकतर अवैध तरीका अपनाकर ही अमेरिकी जाने के सपने को साकार (most of them who have pursued their American Dream by adopting an illegal method to enter the country) किया है।

अब यह भी पता चला है कि जगदीश पटेल और उनके परिवार की दुखद मौत के बाद पिछले छह महीनों में डिंगुचा के कम से कम तीन दर्जन लोग फर्जी दस्तावेजों पर अमेरिका के लिए रवाना हुए हैं। पुलिस को अहमदाबाद में एक इमिग्रेशन स्कैंडल की जांच के दौरान 36 लोगों के दस्तावेज मिले हैं। जगदीश पटेल और उनके परिवार की दुखद मौत के बाद भी इस गैर-वर्णित गांव या गुजरात के अन्य हिस्सों से मानव तस्करी बंद नहीं हुई है। गुजराती और डिंगुचा निवासी फर्जी पासपोर्ट, फर्जी बैंक दस्तावेजों के लिए लगातार गुहार लगा रहे हैं, ताकि यह साबित किया जा सके कि वे अमेरिका और कनाडा में अपने प्रवेश की सुविधा के लिए अमेरिकी वीजा और नकली संपत्ति दस्तावेजों का खर्च उठा सकते हैं। एक पुलिस अधिकारी ने खुलासा किया, “आरोपी चार साल से कार्यालय चला रहे थे और उन्होंने कम से कम 965 लोगों के नकली दस्तावेज तैयार किए। पुलिस ने दो कंप्यूटर जब्त किए हैं। उसके दो बेटे- अभिषेक और निशित, एक सहयोगी जयेश के साथ कागजात बनाने (documentation) प्रभारी थे। दिलचस्प बात यह है कि एक व्यक्ति के सभी दस्तावेजों को बड़े करीने से स्कैन किया गया था और एक अलग फाइल में रखा गया था। इन फाइलों में से प्रत्येक को कथित तौर पर अमेरिकी नाम दिए गए थे, जो उनके भारतीय नाम से मेल खाते थे। उदाहरण के लिए, मुकेश पटेल या आनंदभाई के नाम माइक और एंडी के रूप में अलग फाइल में रखे गए थे।

बहरहाल, इस बीच वाइब्स ऑफ इंडिया ने डिंगुचा गांव के दो लोगों से संपर्क किया। ये वे लोग थे, जिनसे हम इस साल जनवरी में भी मिले थे। इस अनुरोध के साथ कि उनकी पहचान का खुलासा नहीं किया जाएगा। उन्होंने दावा किया कि न केवल 36, बल्कि कम से कम 82 लोग पिछले सात महीनों में “फोरेन” निवास (“phoren” residency) के लिए डिंगुचा छोड़ चुके हैं। इन लोगों ने दावा किया कि “विदेश में जाकर बसना हर डिंगुचा निवासी की नियति में है।” उन्होंने कहा कि जगदीश पटेल और उनके परिवार की मृत्यु के बाद गांव ने अब यह सबक सीख लिया है कि “हमें ऐसे मूर्खतापूर्ण जोखिम नहीं उठाना चाहिए, जो हमारे जीवन को खतरे में डाल सकता है।” हैरानी की बात है कि पकड़ा जाना, कनाडा या अमेरिकी जेल में समय बिताना या निर्वासन (deportation) को जोखिम बिल्कुल भी नहीं माना जाता है।

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