'कश्मीरी पंडितों के बिना अधूरा' है कश्मीर: 'पलायन दिवस' पर कश्मीरी पंडितों से घाटी में लौटने की अपील - Vibes Of India

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‘कश्मीरी पंडितों के बिना अधूरा’ है कश्मीर: ‘पलायन दिवस’ पर कश्मीरी पंडितों से घाटी में लौटने की अपील

| Updated: January 20, 2022 19:49

जम्मू। विस्थापित कश्मीरी पंडितों ने बुधवार को काला दिवस मनाया। आतंकवाद के बढ़ते प्रभाव और हत्याओं के कारण 19 जनवरी 1990 को घाटी से कश्मीरी पंडितों का पलायन शुरू हुआ था। इसलिए हर साल की तरह इस बार भी कश्मीरी पंडितों ने  “पलायन दिवस” मनाया, जिस मौके पर कुछ मुस्लिम नेताओं ने उनसे घाटी में लौट आने की अपील की।

ऑल इंडिया पीपुल्स नेशनल पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुदासिर तांतरी ने कहा कि कश्मीरी पंडितों के बिना कश्मीर अधूरा है। मीडिया से बात करते हुए तांतरी ने कहा कि वह क्षेत्रीय दलों द्वारा खेली गई फूट डालो और राज करो की राजनीति का अंत देखना चाहते हैं। कहा, “हम कश्मीर में शांति चाहते हैं।”

उन्होंने कहा, “कश्मीरी पंडितों की वापसी के बिना कश्मीर के इतिहास पर लगे दाग को साफ नहीं किया जा सकता है।”

तांतरी के मुताबिक, कश्मीरी मुसलमान शांतिप्रिय हैं और वे पंडितों की सुरक्षा के लिए हमेशा खड़े रहेंगे।

इस बीच, सैयद अब्दुल लतीफ बुखारी मीरवाइज-मध्य कश्मीर ने कश्मीरी पंडितों को घाटी की संस्कृति का एक अभिन्न अंग बताया है। कश्मीरी पंडितों से लौटने का आग्रह करते हुए उन्होंने कहा कि उनके पलायन के कारण कश्मीरियत को नुकसान हुआ है।

कश्मीर पंडित सभा (केपीएस), यूथ ऑल इंडिया कश्मीरी समाज (वाईएआईकेएस), पनुन कश्मीर, ग्लोबल कश्मीरी पंडित डायस्पोरा (जीकेपीडी), सेव शारदा कमेटी (एसएससी), और ऑल स्टेट कश्मीरी पंडित कॉन्फ्रेंस (एएसकेपीसी) सहित कई विस्थापित संगठनों ने पीड़ितों को श्रद्धांजलि देने और कश्मीरी पंडितों के लिए प्रतिबद्धता की पुष्टि करने के लिए बुधवार को कार्यक्रम किए। इन समूहों ने मांग की है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व्यक्तिगत रूप से कश्मीर पंडितों को बसाने के लिए हस्तक्षेप करें, जो अपने ही देश में 32 साल से “शरणार्थी” के रूप में रह रहे हैं।

पनुन कश्मीर ने कहा कि उसने घाटी में एक “अलग मातृभूमि” के लिए खुद को समर्पित कर रखा है। पनुन कश्मीर के एक नेता ने बताया कि कैसे 19 जनवरी, 1990 को “चेलिव गलिव या रालिव (छोड़ो, मरो, या विलय)” के नारे लगाते हुए एक पूरे समुदाय को जबरन कश्मीर से खदेड़ दिया गया था। उन्होंने कहा कि यह दिन बड़े पैमाने पर कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और जातीय सफाई की शुरुआत का प्रतीक है, जिसके कारण अंततः स्वदेशी लोगों का पलायन हुआ, जिन्होंने 5,000 साल से अधिक पुराने इतिहास वाली सभ्यता का प्रतिनिधित्व किया।

जगती कैंप के साहिल पंडिता ने कहा, “हम अनिश्चितता में फंस गए हैं। हम अपना भविष्य नहीं जानते हैं। हमें बहुत उम्मीद थी कि पीएम मोदी के नेतृत्व वाली सरकार घाटी में हमारी वापसी बहाल कर नरसंहार को पलट देगी। लेकिन अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद कुछ भी नहीं हुआ है।”

दिल्ली और एनसीआर क्षेत्र के पंडितों ने दिल्ली के जंतर मंतर पर विरोध प्रदर्शन किया। सेव शारदा कमेटी कश्मीर के प्रमुख रविंदर पंडिता ने विरोध प्रदर्शन का आयोजन और नेतृत्व किया। उनके अनुसार, सरकार को कश्मीर में उनकी सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करने के लिए समुदाय के साथ परामर्श कर व्यावहारिक कदम उठाने चाहिए।

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