मंगरोल में मोहित जब घर लौटा, तो उसके माता-पिता रो पड़े। उनका किशोर बेटा जो कभी जूनागढ़ में मेडिकल का छात्र था, अब 26 साल का हो चुका था। पिता नरेशभाई और मां रमाबेन मकवाना ने मोहित को सात साल से नहीं देखा था।
मोहित हमेशा से अंतर्मुखी रहा। उसका शायद ही कोई दोस्त है। वह अकेले रहना ज्यादा पसंद करता है। उसने 12वीं की पढ़ाई जूनागढ़ के अल्फा हाई स्कूल से की। स्नातक स्तर की पढ़ाई के लिए वह सीयू शाह कॉलेज, सुरेंद्रनगर चला गया। 2014 में कॉलेज में दूसरे वर्ष की पढ़ाई के दौरान वह भाग गया। उसका मनोबल टूट गया था। दरअसल उसके माता-पिता मंगरोल में छोटे किसान हैं। उसे पढ़ाते रहने के मकसद से वे जूनागढ़ चले गए थे। जब मोहित परीक्षा में फेल हो गया, तो वह काफी दबाव में आ गया। ऐसी ही मानसिकता में उसने भागने का फैसला किया।
दरअसल सात साल बाद लापता व्यक्ति को कानूनी रूप से मृत घोषित किया जा सकता है। इससे जुलाई में उम्मीद की हल्की किरण भी खत्म हो गई थी। लेकिन यह सिर्फ नियति थी, जिसने लड़के की वापसी करा दी। जब वाइब्स ऑफ इंडिया ने मोहित के चाचा किरीटभाई मकवाना से संपर्क किया, तो उन्होंने कहा, “सात सालों तक हमने उसे नहीं देखा था, फिर भी हमने उम्मीद नहीं छोड़ी। हम उसे खोजते रहे। वह एक साधारण लड़का है। उसके पास एक जोड़ी जूते, दो जोड़ी कपड़े होते थे। इसी में वह हमेशा संतुष्ट रहता था। परीक्षा में खराब प्रदर्शन करने पर वह अवसाद से ग्रस्त हो गया।"
मोहित अपनी किस्मत खोजने मुंबई गया था। उसने कई जगहों पर काम किया। जीवित रहने के लिए अजीबोगरीब काम तक किए। कुछ महीने मुंबई में काम करने के बाद वह पुणे पहुंच गया। दो साल तक वहां एक मॉल में काम करके गुजारा करता रहा। उसके पास कोई बैंक खाता नहीं था। इसलिए वह कमाई के तौर पर मिली नकदी को बचाकर रखता था।
काम कर-करके उसने लगभग 2.36 लाख रुपये की बचत कर ली थी। इस रकम को किसी से साझा नहीं कर पाने की मजबूरी में उसने सारे पैसे पुणे के एक अनाथालय में दान कर दिए। इसके साथ ही उसने पुणे छोड़ वापस मुंबई जाने का फैसला किया। मुंबई में वह एक मॉल में काम करने लगा। उसके सिर पर छत नहीं थी, इसलिए वह काम के बाद मॉल में ही सोने को मजबूर था।
कहते हैं कि नए शहर में अजनबी भी दोस्त बन सकते हैं। मोहित के साथ ऐसा ही हुआ। उसे अभिभावक के रूप में देवदूत मिल गया। उसी मॉल में काम करने वाले सलीम शेख ने मोहित को देखा और मदद के लिए हाथ बढ़ाने की सोची। आखिरकार, उन्होंने निजी संबंध बना लिए। फिर सलीम ने उसे एक दिन दोपहर के भोजन के लिए घर बुलाया। सलीम और उनकी पत्नी रेशमा को कोई बच्चा नहीं था। जब उन्हें पता चला कि मोहित का कहीं आना-जाना नहीं है, तो उनके अंदर माता-पिता वाली भावनाएं हिलोरें मारने लगीं।
इस दंपती का मुंबई के बाहरी इलाके में एक फ्लैट खाली पड़ा था, जिसे उन्होंने मोहित को दे दिया। सलीम और रेशमा ने उसके लिए भोजन के साथ-साथ फ्रिज, टेलीविजन और माता-पिता जैसी देखभाल की उदारता दिखाई। रेशमा हर हफ्ते फोन के जरिये मोहित के संपर्क में रहती थी। साथ ही उसे अपने माता-पिता से संपर्क करने के लिए भी कहती रहती थीं। कहतीं कि उसे उनकी चिंता करनी ही चाहिए।
इसी बीच रेशमा को काम के सिलसिले में दुबई जाना पड़ा और सलीम कैटरिंग के धंधे में आ गए। कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान मोहित की नौकरी चली गई। उसके पास बचत भी बहुत कम रह गई थी। जब रेशमा को यह पता चला तो वह मोहित की मदद करने के लिए आगे आईं। उन्होंने मोहित को मुंबई में जीवित रहने में मदद करने के लिए तीन लाख रुपये भेजे और उसे फिर से अपने माता-पिता से मिलने के लिए कहा।
सबसे महत्वपूर्ण है मानव जीवन
इधर, परिवार ने सुरेंद्रनगर पुलिस स्टेशन में गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कराई। लेकिन दो साल की खोज के बाद भी वे मोहित का पता नहीं लगा सके। उसके बाद परिवार ने गांधीनगर में गृह विभाग से इस मामले को सीआईडी को स्थानांतरित करने का अनुरोध किया।
मंगरोल के डीएसपी जुगल पुरोहित जब सीआईडी, गांधीनगर में पुलिस इंस्पेक्टर थे, तब इस केस पर काम किया था। उन्होंने कहा, “हाल ही में परिवार ने मेरी मदद करने के लिए फिर से मुझसे संपर्क किया, लेकिन मामला सुरेंद्रनगर पुलिस स्टेशन में दर्ज किया गया था और यह मेरे अधिकार क्षेत्र में नहीं आता था। हालांकि, मानव जीवन अधिकार क्षेत्र से अधिक महत्वपूर्ण है। परिवार की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए हमने फिर से इस केस को हाथ में लिया।”
पुलिस के पास मोहित का आधार नंबर था। इसलिए वे पास के एक टीकाकरण केंद्र में गए। उनसे अनुरोध किया कि क्या वे आधार संख्या से जुड़े टीकाकरण की स्थिति का पता लगा सकते हैं। आश्चर्य कि मोहित ने महाराष्ट्र के ठाणे के एक केंद्र में कोविड का टीका लिया था। यह एक महत्वपूर्ण खोज थी। पुरोहित ने जूनागढ़ के एसपी रवितेजा वासमशेट्टी से अनुरोध किया कि क्या वह मामले की और जांच कर सकते हैं? जानकारी मिलने के बाद उन्होंने मुंबई में अपने बैचमेट से भी संपर्क किया। केंद्र का स्थान अंबरनाथ के पास पाया गया। स्थानीय पुलिस को सूचित किया गया और मोहित को पास की एक झुग्गी में खोज लिया गया।
पुरोहित और मकवाना तुरंत मुंबई गए और उसे घर ले आए। पुरोहित ने कहा, “मोहित के माता-पिता एसपी रवितेजा सर से मिलने के बाद अपने आंसू नहीं रोक पाए। उनके बेटे का रूप ही नहीं, जीवन भी बदल गया था। लेकिन वे पुनर्मिलन से बहुत खुश थे।”
मोहित के चाचा किरीटभाई मकवाना ने कहा, “जब मोहित मुंबई में था तो वह दो बार जूनागढ़ आया था। वह रेलवे स्टेशन पर बैठ गया और रोया। फिर भी माता-पिता से मिलने और उनसे माफी मांगने की हिम्मत नहीं जुटा सका। यहां तक कि जब वह मुंबई में था, तब भी अपने अकेलेपन के दिनों के बारे में बात की और परिवार को बहुत याद किया। उसे घर लौटे चार दिन हो गए हैं और उससे मिलने के लिए सैकड़ों लोग आ रहे हैं।”
अंत में किरीटभाई कहते हैं, “एक परिवार के रूप में हमको सबक मिल गया है- अपने बच्चे पर कभी दबाव न डालें। ऐसा कर आप नाजुक दिमाग को चोट पहुंचा सकते हैं। यह मोहित का दूसरा जीवन है और यह कृतज्ञता से भरा होगा।”