आज से ठीक तीन साल पहले, वह एक मनहूस रविवार का दिन था। दिवाली की छुट्टियों का माहौल था और मोरबी के स्थानीय लोग व पर्यटक ऐतिहासिक हैंगिंग ब्रिज पर घूमने का लुत्फ उठा रहे थे। 165 साल से भी ज्यादा पुराने इस पुल को हाल ही में मरम्मत के बाद खोला गया था, लेकिन वह अचानक ढह गया। इस दर्दनाक हादसे में 135 जिंदगियां खत्म हो गईं, जिनमें कई मासूम बच्चे भी शामिल थे।
इस घटना के तीन साल बीत जाने के बाद भी, पीड़ित परिवार इंसाफ की चौखट पर इंतजार कर रहे हैं।
जून 2026 में शुरू हो सकता है ट्रायल
हालांकि, मोरबी सेशंस कोर्ट ने इस साल की शुरुआत में जयसुख पटेल समेत सात आरोपियों की डिस्चार्ज अर्जियों को खारिज कर दिया था, लेकिन कानूनी प्रक्रिया अभी भी धीमी है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि अभी तक आरोपियों के खिलाफ आरोप भी तय नहीं हो पाए हैं। मीडिया रिपोर्ट्स और कानूनी जानकारों के मुताबिक, इस बहुचर्चित मामले का ट्रायल जून 2026 में शुरू होने की उम्मीद है।
कौन हैं आरोपी और क्या है कंपनी की भूमिका?
इस ऐतिहासिक पुल का निर्माण 1879 में हुआ था। ब्रिटिश काल के इस ब्रिज के रखरखाव और संचालन की जिम्मेदारी अजंता ओरेवा कंपनी को दी गई थी। जयसुख पटेल इस कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं, जो घड़ियों और अन्य गैजेट्स के निर्माण के लिए जानी जाती है। कंपनी के मैनेजर दीपक पारेख का नाम भी आरोपियों में शामिल है। फिलहाल, मुख्य आरोपी जयसुख पटेल सुप्रीम कोर्ट से मिली जमानत पर बाहर हैं।
कानूनी पेंच और पीड़ित परिवारों की मांग
मामले में देरी की एक बड़ी वजह गुजरात हाई कोर्ट द्वारा दी गई रोक है, जिसके कारण आरोपियों के खिलाफ आरोप तय नहीं किए जा सके हैं। पीड़ित परिवार इस कानूनी लड़ाई को मजबूती से लड़ रहे हैं।
उनकी मांग है कि आरोपियों पर आईपीसी 304 (गैर इरादतन हत्या) की जगह आईपीसी 302 (हत्या) के तहत मुकदमा चलाया जाए। इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई जांच की मांग करने वाली उनकी याचिका भी अभी लंबित है।
कैसे हुआ था हादसा?
इस मामले में लापरवाही की इंतहा यह थी कि मोरबी नगर पालिका के अधिकारियों ने यह दावा किया कि उन्हें पता ही नहीं था कि पुल को जनता के लिए फिर से खोल दिया गया है। दिवाली की छुट्टियों के कारण पुल पर क्षमता से अधिक भारी भीड़ थी।
आरोप है कि पुल के दोनों किनारों पर मौजूद गार्डों ने क्षमता का ध्यान रखे बिना टिकट जारी करना शुरू कर दिया। नतीजा यह हुआ कि पुल इतने लोगों का भार सहन नहीं कर सका। हादसे के बाद, मरम्मत के काम की गुणवत्ता को लेकर भी जांच शुरू की गई थी।
मुआवजा और बचाव कार्य
गुजरात हाई कोर्ट के निर्देश पर ओरेवा ग्रुप को पीड़ितों के परिजनों को 10 करोड़ रुपये की अंतरिम राशि और घायलों को 2-2 लाख रुपये देने का आदेश दिया गया था। रिपोर्टों के अनुसार, 2023 में, ग्रुप ने मुआवजे के लिए 14.62 करोड़ रुपये जमा भी कराए थे।
इस भीषण त्रासदी के बाद बचाव अभियान दो दिनों से अधिक समय तक चला था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी दुर्घटनास्थल का दौरा किया था और अस्पताल जाकर पीड़ितों से मुलाकात की थी।
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