अहमदाबाद: गुजरात सहित पूरे देश में नकली नोटों को असली की तरह चलाने के कई तरीके सामने आते रहे हैं। कुछ मामलों में तो यह बाकायदा एक अवैध व्यवसाय बन चुका है। अहमदाबाद पुलिस की स्पेशल ऑपरेशंस ग्रुप (SOG) समय-समय पर बैंकों में मिले नकली भारतीय मुद्रा (FICN) से जुड़े मामलों की जानकारी एकत्र करती रही है।
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के अनुसार, “सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले बड़े मूल्यवर्ग के नोट ही सबसे अधिक नकली बनाए जाते हैं। बड़े मूल्यवर्ग के नोटों के बंद होने के बाद अब 500 रुपए सबसे बड़ा नोट है, इसलिए धोखाधड़ी करने वालों का ध्यान इसी पर होता है। 100 रुपए का नोट भी सबसे अधिक चलन में रहता है। इन दोनों नोटों में कई सुरक्षा विशेषताएं होती हैं जिन्हें नोट गिनने की मशीन और हाथ से भी जांचा जाता है।”
इसी समस्या से निपटने के लिए नेशनल फॉरेंसिक साइंसेज यूनिवर्सिटी (NFSU) के शोधकर्ताओं ने एक नई तकनीक विकसित की है, जो नोट के सीरियल नंबर को केंद्रीय डाटाबेस से मिलाकर यह जांच करती है कि वह नंबर पहले नकली नोटों की सूची में तो नहीं आया है। इस इनोवेटिव प्रणाली के लिए NFSU की टीम को भारतीय पेटेंट भी मिल चुका है।
NFSU के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, “यह प्रणाली एक व्यापक ऐतिहासिक डाटाबेस के ज़रिए स्कैन किए गए नोटों का रेकॉर्ड रखती है, जिससे हर बार एक समान और भरोसेमंद वेरिफिकेशन संभव हो पाता है। सिस्टम तुरंत अलर्ट भेजता है जिससे आम नागरिक और एजेंसियां फौरन सतर्क हो जाती हैं। यह तकनीक मोबाइल-फ्रेंडली, तेज़ और किफायती है, और बैंकिंग, खुदरा, लॉजिस्टिक्स व कानून प्रवर्तन जैसे क्षेत्रों में काफी उपयोगी साबित हो सकती है।”
सूत्रों के अनुसार, अब इस तकनीक के व्यावहारिक उपयोग और बड़े स्तर पर क्रियान्वयन के लिए सरकारी एजेंसियों से साझेदारी की संभावनाएं तलाशी जाएंगी।
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