सौराष्ट्र के लोग तीन चीजें पसंद करते हैं: दोपहर की झपकी, हर भोजन के साथ लोकप्रिय पेय छास यानी छाछ और पान। जामनगर में छोटी-सी पान की दुकान है-बाबूलाल पानवारा। यहां गुलकंद, मीठा, इलायची, सुपारी, सौंफ या तंबाकू वाला पान तो मिलता ही है, साथ ही मिलता है- विचारधाराओं का स्वाद भी।
जामनगर के हवाई चौक में यह छोटी पान की दुकान खोलने वाले बाबूलाल पानवाला के यहां पान के साथ राजनीति के बारे में भी बातें हुईं।
भारत में यूं तो कई तरह की संस्कृतियां के लिए जाना जाता है, लेकिन इसमें पान-कल्चर का अपना अलग स्थान है। वैसे पान पाकिस्तान, इंडोनेशिया, मलेशिया जैसे अन्य एशियाई देशों में भी लोकप्रिय है, लेकिन भारत में इसकी लोकप्रियता की बात ही कुछ अलग है। एक भी गांव ऐसा नहीं होगा, जहां पान की दुकान न हो। पान पानी जैसी मुफ्त चीजों में से एक है, जो जन्म से लेकर मृत्यु तक सभी अवसरों पर हर समुदायों में सांस्कृतिक वस्तु के रूप में स्वीकार्य है।
जामनगर में बाबूलाल की छोटी दुकान में दुनिया भर के नेताओं में से तीन की तस्वीरें हैं: दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी और पूर्व सोवियत नेता व्लादिमीर लेनिन।
उन्होंने ये तस्वीरें उन ग्राहकों से हासिल की थीं, जो दोस्त बन गए, जो विदेश यात्राओं खासकर लंदन की यात्रा पर गए थे। वह इन महापुरूषों की तस्वीरें प्राप्त करते थे और बाद में जामनगर में उन्हें लैमिनेट करके अपनी दुकान में टांग देते थे।
बाबूलाल को दो चीजों का शौक था- ग्राहकों को अच्छी गुणवत्ता वाला पान देना और पढ़ना। बाबूलाल पानवरा के पान में जो तंबाकू डाला जाता है, वह असली होता है। बनारस से तंबाकू मंगवाया जाता है और गुजराती में आथो नाम से घर पर ही परिवार द्वारा तैयार किया जाता है। बाबूलाल ने इस परंपरा की शुरुआत लगभग 75 वर्ष दुकान खोलने के समय ही की थी।
इस 75 साल पुरानी पान की दुकान पर सुपारी से लेकर आठो (एक प्रकार का चबाने वाला तंबाकू) तक, इस दुकान पर सभी सामग्री या तो हाथ से बनाई जाती है या विशेष तौर पर चुन कर लाई जाती है। यह दुकान दुनिया भर में पान का निर्यात करती है- अमेरिका, इंग्लैंड और यूएई से लेकर कई अन्य देशों तक। परिवार 1964 से आयकर का भुगतान कर रहा है और दुकान में जो कुछ भी होता है, वह सब ब्लैक एंड व्हाइट में होता है।
इस दुकान से रोजाना 6,500 से ज्यादा पान बिकते थे, जबकि वहां मुश्किल से दो लोग बैठ सकते हैं। ऐसा माना जाता है कि उनके नियमित ग्राहकों में से एक जामनगर के राजकुमार जाम शाहिद थे, जो इस दुकान पर आते थे और अक्सर बाबूलाल से बातचीत करते थे।
आज बाबूलाल पानवारा की दुकान में प्रवेश करते ही नजर दुकान की दीवार पर टंगी चार तस्वीरों पर जाएगी। तीन विश्व नेताओं के साथ बाबूलाल के भतीजे चेतन ने अपने दिवंगत पिता की तस्वीर लगाई है। वह कहते हैं, “मोटा दादा को पढ़ने का शौक था। उन्होंने विश्व के नेताओं के बारे में पढ़ा और विभिन्न विचार प्रक्रियाओं और विचारधाराओं से प्रभावित हुए। वह मजबूत विचारधारा वाले व्यक्ति थे और इसे खुलकर कहने में विश्वास भी करते थे।”
बाबूलाल तीसरी कक्षा में फेल हो गए थे। महज आठ साल की उम्र में गरीबी के चलते उन्होंने एक पान की दुकान पर काम करना शुरू कर दिया था। उनका सपना था कि किसी दिन खुद की पान की दुकान हो। इसलिए उन्होंने जो कुछ भी उपलब्ध था उसे पढ़ना, सीखना शुरू किया। चेतन कहते हैं, “दादा रोज अखबार पढ़ते थे। वह अपने ग्राहकों से अनुरोध करते थे कि वे उन्हें अपनी इस्तेमाल की हुई किताबें दें। इस तरह उन्होंने अपना ज्ञान बढ़ाया। वह जिज्ञासु और स्व-निर्मित व्यक्ति थे।”
दुकान चलाने वाले चेतन ने कहा कि उनके चाचा का 17 फरवरी 2013 को 90 वर्ष की आयु में निधन हो गया था। लेकिन वह अभी भी उनके द्वारा दिखाई राह पर चल रहे हैं और यही कारण है कि उनके यहां आज भी सब कुछ हाथ से बना मिलता है।
जिस दुकान से कभी दुनिया भर में पान का निर्यात होता था, उसके लिए दो सिरों का मिलना मुश्किल हो रहा है। चेतन ने कहा, ‘कोविड-19 के चलते पिछले दो साल में कोई ऑर्डर नहीं मिला है। हमें मुश्किल से मुंबई, अहमदाबाद और अन्य जिलों से ऑर्डर मिलते हैं।”
चेतन ने कहा कि आजकल मसाला का क्रेज भी बढ़ गया है, इसलिए लोग पान खाने से परहेज कर रहे हैं। दुकान मालिक के मुताबिक, कोविड-19 से कारोबार बुरी तरह प्रभावित हुआ है और जिले भर में पान की दुकानें कम हो गई हैं। एक दिन में वह 7,000 पान बेचते थे, लेकिन अब कारोबार चरमरा गया है।
प्रतिवेदन: मनसुख सोलंकी, जामनगर