अहमदाबाद/नई दिल्ली: केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) ने बुधवार को फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया (PCI) के अध्यक्ष डॉ. मोंटू कुमार पटेल के अहमदाबाद स्थित दो आवासीय ठिकानों पर छापेमारी की। यह कार्रवाई तीन दिन पहले दर्ज किए गए आपराधिक मामले के सिलसिले में की गई। डॉ. पटेल पर बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं—जिसमें 2022 के PCI अध्यक्ष पद के चुनाव में कथित धांधली से लेकर कई राज्यों में फार्मेसी कॉलेजों को संदेहास्पद तरीके से मान्यता देने तक के आरोप शामिल हैं।
CBI ने बुधवार की रेड के दौरान मिली जानकारियों को सार्वजनिक करने से इनकार किया, लेकिन पुष्टि की कि ये तलाशी दिल्ली में अपनी भ्रष्टाचार निरोधक इकाई में 30 जून को दर्ज एफआईआर के आधार पर की गई।
एफआईआर के मुताबिक, डॉ. पटेल के अलावा विनोद कुमार तिवारी और संतोष कुमार झा समेत कई लोगों पर भारतीय दंड संहिता और 1988 के भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (2018 के संशोधनों सहित) की धाराओं में आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी, रिश्वतखोरी और पद का दुरुपयोग करने के आरोप हैं।
PCI चुनाव में वोटरों की मेहमाननवाज़ी का आरोप
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय से मिले रेफरेंस के आधार पर मई 2023 में शुरू हुई CBI की प्राथमिक जांच में 6 अप्रैल 2022 को हुए PCI अध्यक्ष चुनाव में गंभीर अनियमितताओं के सबूत सामने आए। आरोप है कि डॉ. पटेल ने चुनाव से ठीक पहले तीन दिनों तक दिल्ली के एक लग्ज़री होटल में PCI केंद्रीय परिषद के 12 वोटरों को ठहराया और करीब ₹2.75 लाख का खर्च खुद उठाया। माना जा रहा है कि यह कथित “हॉस्पिटैलिटी” वोट पाने के बदले में दी गई।
चुनाव जीतने के बाद डॉ. पटेल ने कथित तौर पर अपने करीबी लोगों को PCI की कार्यकारी समिति में नियुक्त किया और फैसलों पर अपनी पकड़ मजबूत करते हुए विरोध के सुरों को दबा दिया।
ऑनलाइन निरीक्षण और ‘फैंटम कॉलेज’
डॉ. पटेल के नेतृत्व में PCI ने 2023–24 सत्र के लिए शारीरिक निरीक्षण की बजाय वीडियो कॉन्फ्रेंस के ज़रिए ऑनलाइन निरीक्षण को अपनाया। जांच में सामने आया कि ये निरीक्षण अक्सर बेहद सतही थे—कई बार 10 मिनट से भी कम समय में निपटा दिए जाते थे। कुछ ही क्षेत्रों में निरीक्षकों की तैनाती थी और रिपोर्ट बिना उचित जांच के मंजूर कर दी जाती थी।
इस प्रक्रिया में लगभग 870 नए फार्मेसी कॉलेजों को मंजूरी दे दी गई। एक प्रमुख उदाहरण अयोध्या का ‘रामेश्वर प्रसाद सत्य नारायण महाविद्यालय’ है, जिसका कथित संबंध सह-आरोपी विनोद तिवारी से है। बुनियादी मानकों और फैकल्टी के अभाव के बावजूद कॉलेज ने सिर्फ एक हलफनामे के आधार पर PCI से मंजूरी हासिल कर ली। बाद में दौरे में संस्थान की स्थिति बेहद जर्जर पाई गई।
रिश्वत और नकद लेनदेन के आरोप
एफआईआर में कहा गया है कि विनोद तिवारी ने PCI की मंजूरी दिलाने के लिए अयोध्या के एक सरकारी स्कूल के शिक्षक संतोष कुमार झा को ₹10 लाख से अधिक नकद और ₹95,000 बैंक के माध्यम से दिए। यह राशि कथित तौर पर फर्जी अनुपालन तैयार करने में खर्च की गई—जैसे कागज़ों पर प्रोक्सी फैकल्टी की नियुक्ति और लैब उपकरण व किताबों की खरीद दिखाना।
जांच में 2022 के उत्तरार्ध और सितंबर 2023 में तिवारी से झा को गए कई लेनदेन ट्रैक किए गए। इसी तरह की प्रक्रिया उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात और राजस्थान के कम से कम 23 कॉलेजों में अपनाई गई, जहां निरीक्षण बिना आधारभूत ढांचे की जांच के महज औपचारिकता रह गया।
डिजिटल पोर्टल में हेरफेर का आरोप
CBI ने PCI के कॉलेज अप्रूवल पोर्टल में छेड़छाड़ के आरोप भी लगाए हैं। PCI और राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC), हैदराबाद के बीच हुए समझौते के तहत NIC को एक सुरक्षित डिजिटल प्लेटफॉर्म विकसित करना था और PCI कर्मचारियों को ट्रेनिंग देनी थी।
हालांकि, CBI का आरोप है कि डॉ. पटेल ने NIC पर अक्टूबर 2022 में परियोजना को जल्दबाजी में पूरा घोषित करने का दबाव डाला। इसके बाद NIC अधिकारियों के एडमिन ऐक्सेस हटा दिए गए और PCI के कुछ अंदरूनी लोगों ने कथित रूप से सिस्टम में गड़बड़ी कर मनपसंद कॉलेजों को मंजूरी दिलाई।
जांचकर्ताओं के मुताबिक, यह डिजिटल सिस्टम पूरी तरह तैयार भी नहीं था और नियामकीय जांच को दरकिनार करने के लिए इस्तेमाल किया गया।
बड़े साजिश के संकेत
एफआईआर में SSD कॉलेज ऑफ फार्मेसी, अलीगढ़ का गगन कॉलेज और ग्वालियर का हेवार्ड कॉलेज जैसे उदाहरण भी हैं, जिन्हें नकारात्मक निरीक्षण रिपोर्ट के बावजूद मंजूरी दे दी गई।
CBI ने कहा है कि प्राथमिक दृष्टया यह एक बड़ी आपराधिक साजिश का मामला लगता है, जिसमें सार्वजनिक अधिकारी और निजी लोग—डॉ. पटेल, तिवारी और झा समेत—शामिल हैं।
अधिकारियों का कहना है कि भारत की उच्च शिक्षा व्यवस्था में यह हाल के वर्षों की सबसे गंभीर भ्रष्टाचार जांचों में से एक है। आने वाले दिनों में और छापे, गिरफ्तारियां और खुलासे होने की संभावना है।
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