गुजरात हाई कोर्ट (Gujarat High Court )ने आवासीय सोसायटी के पुनर्विकास कानून (Redevelopment Law of Housing Society ) के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिका (petition )की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार और संबंधित प्राधिकरण (State Government and concerned authorities ) को नोटिस जारी किया।
नियमों की वैधता पर सवाल उठाते हुए याचिकाकर्ता प्रग्नेश गांधी, निवासी नारणपुरा ने कहा कि अधिकारी पुनर्विकास की अनुमति तभी देते हैं जब सोसायटी( Society )के 75% सदस्यों की सहमति हो , और भवन कम से कम 25 साल पुराना हो।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता निसर्ग डी शाह और रुचिता जैन के अनुसार प्रासंगिक धारा गुजरात स्वामित्व फ्लैट्स संशोधन अधिनियम (Gujarat Ownership Flats Amendment Act ), 2018 की 41ए , नियमों की धारा 18(2), और गुजरात हाउसिंग बोर्ड अधिनियम (Gujarat Housing Board Act) , 1961 की धारा 60A, जो जनता के जीवन के अधिकार के खिलाफ है।
याचिकाकर्ता ने उस नियम को चुनौती दी है, जिसके तहत सोसायटी के पुनर्विकास के लिए सोसायटी 75% सदस्यों के सहमती की आवश्यकता होती है।
इसके अलावा, नियम यह भी है कि पुनर्विकास के लिए कम से कम 25 वर्ष पुराने भवनों को ही अनुमति दी जा सकती है. उन्होंने इसे संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करार दिया।
अदालत के समक्ष यह तर्क दिया गया था कि यदि कोई इमारत 25 साल से पहले जर्जरित हो जाती है, तो कानूनी प्रावधान सोसायटी के पुनर्विकास में बाधा उत्पन्न करते हैं जिससे निवासियों के जीवन के लिए खतरा पैदा होता है. इसलिए इमारत की संरचनात्मक रिपोर्ट के आधार पर पुनर्विकास की अनुमति दी जानी चाहिए , ना 75 प्रतिशत सदस्यों की सहमती के आधार पर।
इसके अलावा, विभिन्न कारणों से यदि 25% या अधिक सदस्य पुनर्विकास के लिए सहमति नहीं देते हैं तो अधिकांश निवासियों को अपने जीवन को जोखिम के साथ जीना होगा ,भवन के जीर्ण-शीर्ण और/या 25 वर्ष से अधिक पुराने होने के बाद भी।
कई बार, प्राकृतिक आपदाओं के कारण स्थितियां और खराब हो जाती हैं, लेकिन ये प्रावधान पुनर्विकास की प्रक्रिया को प्रतिबंधित करते हैं जो नागरिकों के जीवन के अधिकार के खिलाफ हैं
राज्य सरकार ने गुजरात के प्रावधानों का हवाला देकर कानून का बचाव करने की कोशिश की,जिसके मुताबिक गुजरात नगर निगम अधिनियम, यदि भवन जर्जर अवस्था में पाया जाता है तो नगर आयुक्त को सील करने का अधिकार देता है.
हालांकि, मुख्य न्यायाधीश अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति आशुतोष शास्त्री (Chief Justice Arvind Kumar and Justice Ashutosh Shastri )की पीठ ने कहा राज्य सरकार से सवाल पूछा कि 25 साल पूरे होने से पहले यदि कोई इमारत जो बहुत खराब स्थिति में हैं उसके पुनर्विकास के लिए यह कानून कैसे काम करता हैं।
HC ने राज्य सरकार, सहकारी रजिस्ट्रार, अहमदाबाद म्युनिसिपल कमिश्नर, म्यूनिसिपल एस्टेट ऑफिसर और गुजरात हाउसिंग कमिश्नर से 21 नवंबर को जवाब मांगा है. अदालत ने स्पष्ट किया कि इस याचिका पर अधिकारी द्वारा कोई निर्णय नहीं लेने पर याचिका की लंबितता का हवाला नहीं दिया जा सकता है।