क्या आप जानते हैं कि विश्व में सबसे अधिक पूजास्थल भारत में हैं? यह जानकर भी हैरानी होगी कि दुनिया में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले देश इंडोनेशिया के बाद भारत में सबसे ज्यादा मस्जिदें हैं। दुनिया में सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी के मामले में भारत दूसरे नंबर पर आता है। तो भारत में पहली मस्जिद कब और कहां बनाई गई थी? जवाब है- गुजरात के भावनगर जिले के घोघा तालुका में बरवाला मस्जिद।
भारत में बनी पहली मस्जिद के सिलसिले में विभिन्न पुरातत्वविदों और इतिहासकारों ने अलग-अलग और विभिन्न दावे किए हैं। उदाहरण के लिए, केरल में चेरामन जुम्मा मस्जिद 629 ईस्वी में बनी तो तमिलनाडु में पलैया जुम्मा पल्ली का निर्माण 628 और 630 ईसा बाद (एडी) के बीच किया गया था। हालांकि, इन दावों की सत्यता का पता इस्लाम के इतिहास से लगाया जा सकता है।
इस्लामी इतिहास बताता है कि अनुयायियों को पवित्र काबा की दिशा में नमाज पढ़नी होती है। प्राचीन काल में यह दिशा यरुशलम में अल-अक्सा मस्जिद की ओर थी। हालांकि जब पैगंबर हजरत मोहम्मद को अल्लाह से इलहाम प्राप्त हुआ, उसके बाद उन्होंने आदेश दिया कि सभी मस्जिदों की दिशा मक्का-मदीना की ओर हो। जैसा कि केरल और तमिलनाडु में निर्मित मस्जिदें भी मक्का-मदीना की ओर हैं। हालांकि, यह पता लगाया जा सकता है कि वे पैगंबर के फरमान के बाद बनाई गई थीं।
वैसे तथ्य यह भी है कि बरवाला में मस्जिद यरूशलम की ओर है। ऐसे में यह दावा किया जा सकता है कि यह पैगंबर द्वारा जारी किए गए फरमान से बहुत पहले स्थापित किया गया था। यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि भारत में बरवाला के अलावा कोई अन्य मस्जिद यरूशलम की ओर नहीं है। इसलिए यह दावा किया जा सकता है कि बरवाला की मस्जिद भारत की पहली मस्जिद थी।
बरवाला में मस्जिद घोघा शहर के उत्तरी भाग में खंभात की खाड़ी में स्थित है। ऐतिहासिक तथ्यों की जांच करने के बाद यह माना जाता है कि मस्जिद का निर्माण अरब व्यापारियों द्वारा किया गया था, जो व्यापार के लिए गुजरात आते थे। सवाल यह भी उठता है कि क्या अरब के व्यापारी व्यापार में रुचि रखते थे या इस क्षेत्र में अपना धर्म फैला रहे थे? हमें इस संभावना का पता लगाने के लिए भौगोलिक दृष्टि से भी आकलन करना चाहिए।
उस जमाने में अरब और गुजरात के बीच व्यापार मौसम की हवा की स्थिति पर निर्भर करता था। जहाजों का संचालन पाल के जरिये होता था। जैसे गर्मियों के दौरान समुद्री हवा पश्चिम से पूर्व की ओर चलती थी, तब जहाज आसानी से अरब से गुजरात की ओर चल सकते थे। हालांकि गर्मी के बाद हवा की दिशा बदल जाती थी। ऐसे में जहाज फंस जाते। हवा की दिशा अरब की ओर बदलने तक व्यापारियों को अगले पांच-छह महीने तक गुजरात में रुकना पड़ता। ऐसा माना जाता है कि गुजरात में रहने के दौरान उन्होंने अपने धर्म का पालन करने के लिए बरवाला में मस्जिद की स्थापना की थी।
गुजरात विद्यापीठ के इतिहास और सांस्कृतिक विभाग के प्रमुख प्रोफेसर महबूब देसाई के अनुसार, हालांकि बरवाला में मस्जिद का वास्तुकला के मामले में बहुत कम महत्व है, लेकिन यह निश्चित रूप से भारत की पहली मस्जिद होने का दावा करता है।
प्रोफेसर महबूब ने वीओआइ से कहा, “मस्जिद के सामने वाले हिस्से को देखने से पता चलता है इसे पांचवीं शताब्दी में बनाया गया था। मैं पुरातत्व विभाग के पुरालेखशास्त्री जियाउद्दीन देसाई का उल्लेख करना चाहूंगा। जियाउद्दीन का दावा है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने पाया था कि मस्जिद की दीवारों पर खुदा अरबी में शिलालेख भारत में सबसे पुराने अरबी शिलालेख थे, और शायद सबसे पहले वाले भी। इसके अलावा घोघा के समुद्र तट पर एक प्राचीन मुस्लिम कब्रिस्तान है, जिसमें 1,000 से 1,500 कब्रें हैं। यह इस तथ्य को दर्शाता है कि अरब व्यापारियों ने घोघा में अपनी कॉलोनी स्थापित की थी।”
इतिहास की शुरुआत से ही भारत विभिन्न संस्कृतियों का मिलन वाला स्थल रहा है। बरवाला में मस्जिद और केरल एवं तमिलनाडु की मस्जिदें धार्मिक सहिष्णुता और ऐतिहासिक स्मारकों के संरक्षण के भारतीय मूल्यों की गवाही देती हैं। अब प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है कि वह अपनी सांस्कृतिक विरासत की रक्षा करे।
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इतिहास विद् डॉ महबूब देसाई साहब गुजरात में रहते हुए पूरे विश्व से जुड़े रहते हैं। उनके अनेकविध अनुसंधान इतिहास की सच्चाई उजागर करने के उपरांत राष्ट्रीय चेतना एवं सांस्कृतिक सौहार्द को बढ़ावा देते रहे हैं।