युवा के लिए दोपहर 100 फीसदी तक फोन की बैटरी चार्ज करने के लिए है, शामें खेल के मैदानों में डिजिटल गेम खेलने के लिए हैं, और रातें नेटवर्क सिग्नल पकड़ने के लिए छतों पर चढ़ने के लिए हैं।
यह तब है, जब मोबाइल डेटा सबसे सस्ता और सबसे तेज है। इसलिए यह तीन पी से जुड़े रहने का सही समय है- पॉलिटिकल प्रोपेगेंडा यानी राजनीतिक प्रचार, पोर्नोग्राफी यानी अश्लील साहित्य और पुष्पा जैसे एक्शन-ड्रामा, जो इस समय सबको अंगुलियों पर नचाने के लिए काफी है।
उत्तर प्रदेश में ऐसी ही है नई पीढ़ी। हालांकि इन दिनों पूरे देश में ही इस तरह समय को व्यतीत करने वाले बहुतेरे नौजवान हैं। ऐसे ही शिक्षित, बेरोजगार युवाओं के लिए विद्वान क्रेग जेफरी ने “नई पीढ़ी” शब्द का जिक्र किया है।
नौकरी की बहुत कम संभावनाएं हैं, कॉलेज की डिग्री पर हर साल धूल बढ़ती जाती है, और आमतौर पर सहारे के लिए परिवार में कोई पैसा भी नहीं होता है। फिर भी इन युवाओं के पास गम मिटाने के लिए कुछ है: उनका रोजाना का कोटा 2जीबी डेटा।
एक पीढ़ी पहले लगभग 20 शिक्षित और बेरोजगार लोग भी समाज में सामूहिक गुस्से की लहर पैदा कर देते थे। लेकिन अब जब बेरोजगारी के बारे में छिटपुट विरोध प्रदर्शन होते हैं, तो लोग खामोशी के साथ अपने को दूर कर लेते हैं।
जैसे कि पिछले महीने यूपी और बिहार में रेलवे भर्तियों को लेकर हुई हिंसा।
हालांकि 2020 के जमाने में बेरोजगार युवाओं में अधिक व्यापक प्रवृत्ति व्याकुलता है। जब इस बहादुर नई दुनिया में गुस्सा या निराशा पैदा होती है, तो वे आमतौर पर जल्दी से दूर हो जाते हैं और इंस्टाग्राम पर जाकर घंटों शांत बैठ जाते हैं।
जैसा कि प्रयागराज (पूर्व में इलाहाबाद) के पास एक गांव के 26 वर्षीय महत्वाकांक्षी शिक्षक शीश राम ने बिहार के नेता लालू प्रसाद यादव की 2016 वाली एक प्रसिद्ध चुटकी को याद कर कहा: “घर में नहीं है आटा, लेकिन हमको चाहिए फोन में डेटा।”
उत्तर प्रदेश भारत की आबादी का लगभग छठा हिस्सा है- 20 करोड़ से अधिक ही- और देश के सबसे युवा राज्यों में से एक है (2016 में औसत आयु 20 थी)।
राज्य में चल रहे विधानसभा चुनावों से पहले राज्य सरकार ने यूपी में बेरोजगारी की दर को काफी कम करके बताया है। और वास्तव में सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के अनुसार, जनवरी 2022 में यूपी की बेरोजगारी दर 3 प्रतिशत थी।
हालांकि, जैसा कि स्वयं सीएमआईई ने नोट किया है, बेरोजगारी दर “भारत का सबसे महत्वपूर्ण श्रम बाजार संकेतक नहीं है,” क्योंकि यह केवल इस ओर इशारा करता है कि कितने कामकाजी उम्र के लोग रोजगार चाहते हैं लेकिन हैं नहीं।
जैसा कि विश्लेषकों ने इंगित किया है, बेरोजगारी दर को श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर) के संयोजन के साथ देखा जाना चाहिए, जो कि 15 वर्ष से अधिक उम्र के उन लोगों को संदर्भित करता है जिनके पास पहले से ही नौकरी है या सक्रिय रूप से तलाश में हैं।
यूपी के लिए एलएफपीआर 2016 की पहली छमाही में 45 प्रतिशत से अधिक घटकर 2021 के अंत में लगभग 34 प्रतिशत हो गया है।
इसका अर्थ है कि कई लोग श्रम बल से बाहर हो गए हैं, जिसमें प्रवासन भी शामिल हो सकता है। जैसे, बस अब नौकरी की तलाश नहीं है।
हमने उत्तर प्रदेश के शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों की यात्रा की। इस दौरान चाय की दुकानों, मॉल, सिनेमा हॉल, खेल के मैदानों और परिसरों में कई युवाओं से मुलाकात की। फिर भी भीड़-भाड़ वाली इन जगहों पर युवा उत्साह या यहां तक कि चुनाव संबंधी बहस होते बहुत कम देखने को मिला।
अपनी 2010 की पुस्तक टाइमपास: यूथ, क्लास एंड द पॉलिटिक्स ऑफ वेटिंग में, क्रेग जेफरी ने यूपी के युवाओं को अपने सेल फोन को “सांस्कृतिक भेद” के रेखांकन के रूप में दिखाकर और बातचीत के लिए उनका उपयोग करने का वर्णन किया है।
लेकिन एक दशक बाद ऐसा लगता है कि यह बदल गया है। लोग अपने फोन का इस्तेमाल बात करने के लिए नहीं, बल्कि बातचीत से बचने के लिए करते हैं।
सिर नीचे कर उंगलियों को स्वाइप करने और स्क्रॉलिंग में लगे रहते हैं। चटखारे और गोपनीय बातों की अधिक अदला-बदली दरअसल घनिष्ठ मित्रता का संकेत मोबाइल हॉटस्पॉट साझा करना है।
बांदा जिले के पीएचडी विद्वान राम बाबू तिवारी ने कहा, “अब सामूहिक टाइमपास को व्यक्तिगत टाइमपास से बदल दिया गया है।”
दिमाग में टॉप-अप और हाथों में मोबाइल
सरकारी नौकरियों के लिए कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी) की परीक्षा के इच्छुक 22 वर्षीय हर्षल यादव कठोर दैनिक जीवन जीते हैं।
5 फरवरी को भी ऐसा ही दिन था। दोपहर के समय उन्होंने अपने Realme 9 Pro मोबाइल को चार्ज पर लगाया। तीन घंटे बाद बैटरी बार को संतोषजनक 100 प्रतिशत पर फिर से देखने के लिए फोन के पास लौटे।
उन्होंने चारपाई से ईयरफोन उठाया और प्रयागराज जिले के अपने गांव धरमपुर उर्फ धुरवा के बाहरी इलाके में स्थित एक खेल के मैदान के लिए निकल गए।
कीचड़ भरे खेल के मैदान में 15 से 35 वर्ष के बीच के लड़के और पुरुष वॉलीबॉल खेलने के लिए जुटे। यादव और कुछ अन्य कुछ दूरी पर बैठे थे, जहां कुछ बाइक खड़ी थीं।
हालांकि उनका ध्यान खेल पर नहीं था। अपने सिर नीचे और अपने फोन स्क्रीन पर नजरें गड़ाए हुए युवक एक ऐप से दूसरे ऐप पर स्विच कर रहे थे। कुछ ने फ्रीफायर गेम खेला, जबकि अन्य ने पुष्पा के गानों पर इंस्टा रीलों को देखा।
यादव ने कुछ करियर ऐप खोले, लेकिन कुछ समय बाद फेसबुक पर कुछ छोटे वीडियो देखने से नहीं रोक सके।
थोड़ी देर बाद यह समूह खेल में शामिल होने के लिए उठ खड़ा हुआ, और पुरुषों के एक दूसरे समूह ने उस स्थान पर कब्जा कर लिया। फिर से वही सिर नीचे और अंतहीन स्क्रॉलिंग।
जबकि एक पीढ़ी पहले गांवों में युवा छतों पर बातें करते थे। क्रिकेट, फुटबॉल, वॉलीबॉल और कबड्डी खेलते थे। गलियों में टहलते थे और चाय की दुकानों पर घूमते थे।
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11 साल पहले सेना में शामिल हुए धर्मपुर ऊर्फ धुरवा निवासी 30 साल के पवन कुमार को ऐसा समय याद है। पवन ने कहा, “हर साल सेना में दो भर्तियां होती थीं। इसलिए खेल का मैदान और गांवों की ओर जाने वाली सड़कें दिन-रात दौड़ते हुए युवा लड़कों से भरी रहती थीं।
जो पढ़ना चाहते थे, वे प्रतियोगी परीक्षाएं देते और छात्र राजनीति में भाग लेते थे।” उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में पुलिस और सेना की भर्ती में गिरावट आई है।
पवन ने कहा, “याद नहीं कि पिछली बार कब किसी ग्रामीण ने एसएससी की नौकरियों में यहां के किसी युवा के शामिल होने के बारे में सुना? चीजें ठहरी हुई हैं। ऐसे में हमारे गांव के ये 50 बच्चे क्या करेंगे? वे इंटरनेट पर समय बर्बाद कर देंगे। ”
विवान मारवाह, जिनकी पुस्तक व्हाट मिलेनियल्स वांट: डिकोडिंग द लार्जेस्ट जेनरेशन इन द वर्ल्ड, पिछले साल आई थी, का मानना है कि भारतीय युवा बेरोजगारी और अवसर की कमी के “दुष्चक्र” में फंस गए हैं।
मारवाह ने कहा, “हर साल कार्यबल में शामिल होने वाले लाखों लोगों के लिए पर्याप्त अच्छी-भुगतान वाली स्थिर नौकरियां उपलब्ध नहीं हैं।
परिणामस्वरूप युवा पुरुषों और महिलाओं की बढ़ती संख्या फोन के सहारे समय व्यतीत करती हैं, या सोशल मीडिया पर स्क्रॉलिंग में व्यस्त रहती हैं।”
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यूपी में बहुत से युवा जानते हैं कि उनका अपने फोन से लगाव एक गहरी अस्वस्थता का लक्षण है, लेकिन उनका कहना है कि यह केवल “टाइमपास” भर कतई नहीं है।
शीश राम, जो धरमपुर उर्फ धुरवा में भी रहते हैं और जिनके पास बीए पास की डिग्री है, ने इस घटना को लगभग इस तरह वर्णित किया जैसे कि यह कोई रस्म हो।
उन्होंने कहा, “युवा अपने फोन का इस्तेमाल अपनी हताशा को दूर करने के लिए कर रहे हैं… वे अब टाइमपास नहीं कर रहे हैं… वे चार्जिंग, रिचार्जिंग और सेल फोन का उपयोग करने में लंबा समय बिता रहे हैं।”
फोन एक और भावना को दूर रखने में भी मदद करते हैं, वह है-शर्म।
एक औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान से डिप्लोमा रखने वाले यादव ने कहा, “इस तरह हम इस सबसे खतरनाक सवाल से बचते हैं: ‘क्या कर रहे हो आजकल’।”