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भारतीय छात्र की डिपोर्टेशन पर अमेरिकी न्यायाधीश ने लगाई रोक, वीज़ा निरस्तीकरण मामले में राहत

| Updated: April 17, 2025 11:51

अमेरिका में यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉन्सिन-मैडिसन में पढ़ रहे एक 21 वर्षीय भारतीय छात्र की डिपोर्टेशन (निष्कासन) पर एक संघीय न्यायाधीश ने अस्थायी रूप से रोक लगा दी है। यह फैसला उस समय आया है जब अमेरिकी सरकार द्वारा अंतरराष्ट्रीय छात्रों के वीज़ा रद्द किए जाने की घटनाएं बढ़ रही हैं और इसे लेकर चिंता जताई जा रही है।

विस्कॉन्सिन के वेस्टर्न डिस्ट्रिक्ट के न्यायाधीश विलियम कॉनली ने 15 अप्रैल को यह आदेश जारी किया, जिसमें कहा गया है कि गृह सुरक्षा विभाग (Department of Homeland Security) छात्र कृष लाल इस्सरदासानी को हिरासत में नहीं ले सकता और न ही उसका F-1 छात्र वीज़ा रद्द कर सकता है, जिसे इस महीने की शुरुआत में रद्द कर दिया गया था।

इस्सरदासानी कंप्यूटर इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष के छात्र हैं और मई की शुरुआत में उनकी डिग्री पूरी होनी थी।

उनके वकील शबनम लोत्फी ने कोर्ट में एक अस्थायी स्थगन आदेश (Temporary Restraining Order) की मांग की थी। उन्होंने कहा कि छात्र के SEVIS (स्टूडेंट एंड एक्सचेंज विज़िटर प्रोग्राम) रिकॉर्ड को बिना किसी पूर्व सूचना या स्पष्टीकरण के रद्द कर दिया गया।

अदालती आदेश में कहा गया, “उन्हें कोई चेतावनी नहीं दी गई, न ही अपनी बात रखने या स्पष्टीकरण देने का मौका मिला, और न ही किसी गलतफहमी को सुधारने का अवसर मिला।”

कोर्ट दस्तावेज़ों के अनुसार, इस्सरदासानी को 22 नवंबर 2024 को एक बार के बाहर बहस के बाद ‘डिसऑर्डरली कंडक्ट’ के संदेह में गिरफ्तार किया गया था। हालांकि, डेन काउंटी के डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी इस्माएल ओज़ाने ने उन पर कोई आरोप नहीं लगाया और उन्हें अदालत में पेश होने की आवश्यकता भी नहीं पड़ी। जज ने कहा कि छात्र का पहले कभी कानून प्रवर्तन से कोई संपर्क नहीं रहा और उन्हें विश्वास था कि मामला समाप्त हो चुका है।

बाद में यूनिवर्सिटी के इंटरनेशनल स्टूडेंट सर्विसेज कार्यालय ने ईमेल के ज़रिए उन्हें सूचित किया कि उनका SEVIS रिकॉर्ड इस आधार पर समाप्त किया गया है: “व्यक्ति को आपराधिक रिकॉर्ड जांच में पहचाना गया है और/या उसका वीज़ा रद्द कर दिया गया है।”

न्यायाधीश कॉनली ने कहा कि छात्र को किसी अपराध का दोषी नहीं ठहराया गया है और उनके केस में कानूनी सफलता की “वाजिब संभावना” है। मामले में अगली सुनवाई 28 अप्रैल को होगी।

कोर्ट ने यह भी बताया कि वीज़ा रद्द होने से छात्र को लगभग $17,500 (लगभग 14.5 लाख रुपये) की ट्यूशन फीस और $240,000 (लगभग 2 करोड़ रुपये) से अधिक की शिक्षा लागत गंवाने का खतरा है। इसके अलावा, वह न तो अपनी डिग्री पूरी कर पाएंगे और न ही पोस्ट-स्टडी वर्क वीज़ा के लिए आवेदन कर सकेंगे। आदेश में कहा गया, “छात्र का कहना है कि उन्हें डर है कि किसी भी समय उन्हें हिरासत में लिया जा सकता है, इसलिए वह अपने अपार्टमेंट से बाहर निकलने से भी डरते हैं।”

वकील शबनम लोत्फी ने इस फैसले को अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए “एक दुर्लभ जीत” बताया। उन्होंने कहा, “जज ने हमारी बात सुनी।”

कोर्ट में पेश आंकड़ों के अनुसार, 15 अप्रैल तक विस्कॉन्सिन की विभिन्न यूनिवर्सिटीज़ में कम से कम 57 छात्रों के वीज़ा रद्द किए जा चुके हैं। इन कार्रवाइयों के पीछे सरकार ने कोई स्पष्ट कारण नहीं बताया है। देशभर में कई मामलों में मामूली कानूनी मुद्दों या प्रशासनिक त्रुटियों के चलते वीज़ा समाप्त किए गए हैं, जो पहले कभी डिपोर्टेशन का कारण नहीं बनते थे।

हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में स्टेट डिपार्टमेंट की प्रवक्ता टैमी ब्रूस ने कहा, “हम व्यक्तिगत वीज़ा मामलों की जानकारी साझा नहीं करते। हम केवल इतना कह सकते हैं कि हमारी प्राथमिकता सीमाओं की सुरक्षा और समुदाय की सुरक्षा है, और हम नियमित रूप से वीज़ा रद्द करते रहेंगे।”

प्रेसिडेंट्स एलायंस ऑन हायर एजुकेशन एंड इमिग्रेशन ने इस पैटर्न पर चिंता जताई है। संगठन ने कहा, “सरकार की कार्रवाई और उसकी भाषा भय का माहौल पैदा कर रही है, जो अकादमिक स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और विश्वविद्यालयों में गैर-नागरिक छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रही है।”

यह मामला अंतरराष्ट्रीय छात्र वीज़ा नीतियों और अमेरिका के शैक्षणिक संस्थानों पर उनके प्रभाव को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन गया है।

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