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वयोवृद्ध भाजपा नेता हेमाबेन आचार्य ने पार्टी की नीतियों पर उठाए सवाल, लोकतंत्र पर संकट की दी चेतावनी

| Updated: February 7, 2025 15:26

गांधीनगर: गुजरात की पूर्व स्वास्थ्य मंत्री (1975-1980) और वरिष्ठ भाजपा नेता हेमाबेन आचार्य ने सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की मौजूदा नीतियों और राजनीतिक रणनीतियों पर गहरी निराशा व्यक्त की है। उनके ये बयान गुजरात में होने वाले नगर निगम और स्थानीय निकाय चुनावों से पहले आए हैं।

बिना प्रतिद्वंद्विता जीतना लोकतंत्र के खिलाफ

जनसंघ की कट्टर समर्थक रही आचार्य ने भाजपा द्वारा निर्विरोध जीत हासिल करने की प्रवृत्ति की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने कहा कि इस तरह के प्रयास जनता के मतदान के अधिकार को छीनने का काम कर रहे हैं।

उन्होंने कहा, “यह भाजपा की संस्कृति नहीं है, और यह वह पार्टी नहीं है जिसे हमने बनाया था।” साथ ही उन्होंने चेतावनी दी कि देश एक आपातकाल जैसे दौर की ओर बढ़ रहा है। उनके इस बयान ने भाजपा के भीतर हलचल मचा दी है।

भाजपा अपने मूल सिद्धांतों से भटक गई है

हेमाबेन आचार्य और उनके पति सूर्यकांत आचार्य ने गुजरात में भाजपा की नींव रखी थी। अटल बिहारी वाजपेयी जैसे कई दिग्गज नेता उनके घर ठहरते थे। लेकिन अब वे भाजपा की विपक्षी दलों के नेताओं को शामिल करने की नीति से नाखुश हैं।

उन्होंने कहा, “दलबदल करने वालों को तुरंत चुनाव आयोग द्वारा अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए और उन पर स्थायी प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।” उन्होंने राजकोट नगर निगम में भाजपा के अग्रणी नेता चिमनभाई शुक्ला का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्होंने पार्टी बदलने के खिलाफ लंबे समय तक संघर्ष किया था।

आपातकाल जैसी स्थिति की ओर बढ़ता देश

आचार्य ने भाजपा के पुराने आदर्शों को याद करते हुए कहा, “पहले भाजपा में सिद्धांत था – ‘मैं नहीं, आप।’ 1975 में जनता मोर्चा सरकार में तीन मंत्रियों ने अपनी सीट दूसरों को देने की पेशकश की थी। लेकिन आज स्थिति बदल गई है—हर कोई खुद के लिए पद चाहता है।”

उन्होंने जनता से जागरूक होकर सही उम्मीदवारों को चुनने की अपील की। “चुनाव में कोई भी उम्मीदवार बिना प्रतिस्पर्धा के नहीं जीतना चाहिए। लोकतंत्र में मतदाताओं के अधिकार सर्वोपरि हैं।”

आचार्य ने वर्तमान परिस्थितियों की तुलना आपातकाल से करते हुए कहा, “मैंने 1975 का आपातकाल देखा है और आज की स्थिति उससे मिलती-जुलती लग रही है। लोकतंत्र का मूल स्वरूप नष्ट किया जा रहा है और वास्तविक मुद्दों के बजाय सतही नीतियां लागू की जा रही हैं।”

“गुजरात में महिलाएं सुरक्षित नहीं”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘माँ समान’ मानी जाने वाली आचार्य ने गुजरात में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर भी गंभीर चिंता व्यक्त की।

पायल गोटी मामले और दाहोद में आदिवासी महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों पर दुख व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा, “हमने कभी ऐसे गुजरात की कल्पना नहीं की थी। हमारी बेटियों पर अपराध बढ़ रहे हैं और राजनीतिक स्वार्थ के कारण उनके दर्द का शोषण किया जा रहा है।”

उन्होंने राजनीति में महिलाओं के शोषण पर चिंता जताते हुए कहा, “महिला सशक्तिकरण की बातें तो होती हैं, लेकिन वास्तविकता कुछ और ही है। महिलाओं और किशोरियों को राजनीतिक उपकरण की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है।”

पायल गोटी केस पर उन्होंने कहा, “एक बेटी को राजनीतिक नेताओं की आंतरिक कलह के कारण बलि का बकरा बनाया गया। अगर मैं उसकी माँ होती, तो मैं खुद न्याय के लिए कुछ भी कर जाती। समाज को जाति से ऊपर उठकर अन्याय के खिलाफ आवाज उठानी होगी।”

“मैंने ऐसे गुजरात की कल्पना नहीं की थी”

गुजरात की वर्तमान स्थिति पर दुख जताते हुए आचार्य ने कहा, “मैंने कभी यह नहीं सोचा था कि एक दिन गुजरात और देश में नकली अधिकारी, नकली नेता और नकली अदालतें होंगी। नेताओं के पास सत्ता तो है, लेकिन उसे सही दिशा में इस्तेमाल करने की इच्छाशक्ति नहीं है।”

उन्होंने राजनीतिक दलों के आंतरिक संघर्षों की आलोचना करते हुए कहा कि नए कानून बनाने की जगह मौजूदा कानूनों को ठीक से लागू करना चाहिए। “जब सांसद और विधायक खुद आपराधिक पृष्ठभूमि के होंगे, तो उनसे अच्छे कानूनों की उम्मीद कैसे की जा सकती है?”

आचार्य ने बढ़ती आर्थिक असमानता पर भी चिंता जताते हुए कहा, “जनता सिर्फ नाममात्र की सर्वोच्च है। उनकी आवाज और अधिकार तभी मायने रखेंगे जब वे अपने हक के लिए खड़े होंगे। लेकिन लोग अपनी रोजमर्रा की परेशानियों में इतने उलझे हैं कि वे गलत नीतियों का विरोध भी नहीं कर पा रहे हैं।”

उन्होंने चेतावनी दी कि अमीर और गरीब के बीच की खाई लगातार बढ़ रही है, जो भविष्य में लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा साबित हो सकती है।

अमीर और अमीर होते जा रहे हैं, जबकि गरीबों की हालत बदतर होती जा रही है। यह असमानता हमारे लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है।

उनके बयानों ने भाजपा सहित पूरे राजनीतिक जगत में नई बहस को जन्म दे दिया है, जिससे पार्टी की दिशा और लोकतंत्र के भविष्य को लेकर गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं।

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