कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और गुजरात से राज्यसभा सदस्य शक्ति सिंह गोहिल ने गुरुवार को शून्यकाल में कच्छी भाषा को संविधान की संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किए जाने की मांग की | उन्होंने कहा कि यह ऐसी भाषा है, जो कच्छ के अलावा देश के कई हिस्सों और दक्षिण अफ्रीका में भी बोली जाती है। उन्होंने यह भी कहा कि कच्छ का भौगोलिक क्षेत्र कई छोटे राज्यों के मुकाबले बहुत अधिक है।
गुजरात से कांग्रेस सदस्य शक्ति सिंह गोहिल ने कच्छी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किए जाने का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि यह ऐसी भाषा है, जो कच्छ के अलावा देश के कई हिस्सों और दुनिया के कई देशों में भी बोली जाती है।
उन्होंने कहा, ‘‘कच्छ के लोगों की भावना को देखते हुए, कच्छी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाए।’’
सभापति नायडू ने गोहिल से कहा कि वह दो पंक्तियां कच्छी भाषा में बोलकर अपनी बात रखें। इसके बाद गोहिल ने अपनी कुछ बातें कच्छी भाषा में भी सदन के सामने रखी |
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राज्यसभा सांसद शक्ति सिंह गोहिल ने कच्छी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किये जाने की मांग करते हुए कहा कि ” कच्छी भाषा इंडो -आर्यन ऐसी भाषा है कि जो कच्छ के लाखों लोंगो के अलावा ईस्ट अफ्रीका के देश जैसे कि केन्या ,युगांडा ,कांगो ,तंजानिया में बोली जाती है | इसके अलावा साउथ अफ्रीका के कई देशों , इंग्लैंड ,अमेरिका और हमारे देश के कई शहरों में बोली जाती है | कच्छ एक ऐसा प्रदेश है जहा की हस्तकला और समृद्ध इतिहास देश की शान है | कच्छ में सफ़ेद रण और धौलावीरा जो कि सबसे बड़ी पांच हड़प्पा संस्कृति में से एक है वो आये हुए हैं | कच्छ जिले का क्षेत्रफल 456 74 वर्ग किलोमीटर है जो हमारे देश के कई छोटे छोटे राज्यों से भी बड़ा है | कच्छ की संस्कृति ,इतिहास और देश के गौरवपूर्ण कच्छ की भाषा को बचाने के लिए कच्छी भाषा का संरक्षण और संवर्धन बहुत ही जरुरी है ,इसलिए सरकार से मेरा अनुरोध है कि कच्छी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाय |
विकिपीडिया में कच्छी भाषा के विषय में दर्ज जानकारी के मुताबिक “कच्छी भाषा असल में सिन्धी भाषा ही है। कच्छी भाषा नाम की कोई अलग भाषा नहीं है। कच्छ जिला सिन्ध प्रांत का हिस्सा था। बाद में, विभाजन में सिन्ध का बड़ा भाग पाकिस्तान के हिस्से में चला गया जो कि सिंन्ध ही कहलाता है। और उसका एक जिला कच्छ भारत के हिस्से में आया। अतः ये सिंध प्रांत की मुख्य भाषा है। और यह सिन्धी हिन्दू समुदाय की मातृभाषा है। कच्छ मे जो कच्छी भाषा के नाम से प्रचलित है, वह वह सिन्धी भाषा ही है। भारतीय संविधान मे कच्छी भाषा का कोई स्थान नहीं है। हां भारतीय संविधान में सिन्धी भाषा को आधिकारिक भाषा घोषित किया है। यह सिन्धी भाषा सिन्धी हिंदू समाज के लोग बोलते हैं। वो इस भाषा को सिन्धी भाषा ही कहते हैं। परंतु कच्छ में सिन्धी भाषा को क्षेत्रीय आधार पर कच्छी भाषा भी कहा जाता है। और कच्छ मे सिन्धी भाषा सिर्फ सिन्धी हिन्दू समुदाय(समाज) के लोग ही नहीं बल्कि कच्छ में रहने वाली अन्य समुदाय की जातियां एवं वहां के (कच्छ जिले के) निवासी यही भाषा बोलते हैं। सिन्धी भाषा को कच्छ जिले के नाम के आधार पर कच्छी भाषा कहते हैं। “
वही भाषा आधारित वेबसाइट भारतकोश के मुताबिक ” भौगोलिक, राजनीतिक व सांस्कृतिक दृष्टिकोण से कच्छी भाषा सिंध की भूमि से दूर है, लेकिन इसका गुजरात और गुजराती भाषा से गहरा संबंध है। इस प्रकार इसे सिंधी और गुजराती के बीच की बोली माना जाता है। इस भाषा को लिखने के लिए गुजराती लिपि का उपयोग होता है। यह निश्चित है कि कच्छी भाषा का स्वर वैज्ञानिक मूल सिंधी में है, इसमें सिंधी की ही तरह ग़ैर भारतीय-आर्य अंत:स्फोटात्मक ध्वनियां हैं। उल्लेखनीय है कि सिंध से काठियावाड़ तक का क्षेत्र संहत ध्वनि उच्चारण क्षेत्र है। यह ध्वनि उच्चारण प्रक्रिया अंत:स्फोटात्मक ध्वनियों के लिए उपयुक्त है। वाक्य-विन्यास की दृष्टि से कच्छी भाषा में बड़ी संख्या में संयुक्त क्रियाओं का उपयोग होता है।
संविधान की आठवीं अनुसूची क्या है
भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची भारत की भाषाओं से संबंधित है। इस अनुसूची में 22 भारतीय भाषाओं को शामिल किया गया है।इसके बाद, सिन्धी भाषा को 21 वाँ संविधान संशोधन अधिनियम 1967 ,कोंकणी भाषा, मणिपुरी भाषा, और नेपाली भाषा को 71वाँ संविधान संशोधन अधिनियम 1992 ई. में जोड़ा गया। हाल में 92वाँ संविधान संशोधन अधिनियम 2004 में बोड़ो भाषा, डोगरी भाषा, मैथिली भाषा, और संथाली भाषा शामिल किए गए।