इन दिनों हैदराबाद में रिपोर्टर होना बहुत अच्छा काम है। मेरी एक दोस्त हैं, जो अपने अखबार के अहमदाबाद ब्यूरो से हैदराबाद ब्यूरो में चली गई हैं। मैं उन्हें लगभग रोजाना राष्ट्रीय स्तर पर छपने वाली बाइलाइन खबरों पर बधाई संदेश भेज रहा हूं। वह जो खबरें लिखती हैं, वे तेलंगाना में कोविड के प्रसार या अस्पताल में बेड की कमी के बारे में नहीं हैं – ऐसी खबरें अखबार के हैदराबाद संस्करण के लिए बहुत उल्लेखनीय नहीं होंगी, बल्कि अहमदाबाद संस्करण के लिए भी ऐसी खबरें बहुत चौंकाने वाली नहीं हो सकती है, जहां इस तरह की समस्याएं हैं। वह जो खबरें लिखती हैं, वे हैदराबाद की दवा कंपनियों – भारत बायोटेक, बायोलॉजिकल ई, डॉ रेड्डीज, नैटको के बारे में हैं। ये सभी कोविड के टीके के क्षेत्र में बहुत अच्छा काम कर रही हैं। इस मुश्किल वक्त में इन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर ध्यान आकर्षित किया है और ऐसी सकारात्मक सूचनाएं दी हैं, जो हर अखबार चाहता है।
गुजरात देश का सबसे बड़ा फार्मा हब होने का दावा करता है और अहमदाबाद इसका केंद्र है। मुझे याद है, कई साल पहले मैंने अहमदाबाद स्थित जायडस कैडिला और टोरेंट फार्मास्युटिकल्स जैसी बड़ी दवा कंपनियों द्वारा स्थापित किए जा रहे भव्य आरएंडडी केंद्रों पर एक लेख लिखा था। उन्हें विश्वस्तरीय आर्किटेक्टों ने डिजाइन किया था। आज हैदराबाद फार्मा आरएंडडी के लिए गो-टू हब के रूप में उभरा है। वडोदरा की सबसे पुरानी और प्रतिष्ठित फार्मास्युटिकल कंपनियों में से एक एलेम्बिक जैसी कंपनियों ने गुजरात के बजाय वहां निवेश करने का विकल्प चुना है। सवाल है कि फार्मा में अहमदाबाद, हैदराबाद से क्यों पिछड़ गया है? जब मैंने मुंबई की एक फार्मा कंसल्टिंग फर्म इंटरलिंक के डॉ राजा स्मार्तब से यह सवाल किया, तो उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए है क्योंकि गुजरात का फार्मा उद्योग फॉर्मूलेशन पर अधिक केंद्रित है, जो दवा निर्माण की कड़ी में अंतिम उत्पाद होता है। दूसरी ओर, हैदराबाद हमेशा से थोक दवाओं के लिए जाना जाता है जो फॉर्मूलेशन के लिए कच्चे माल का काम करते हैं। नतीजतन, हैदराबाद की कंपनियां आरएंडडी पर अधिक ध्यान केंद्रित करती हैं। आज यह शहर बायोटेक्नोलॉजी और वैक्सीन हब भी बन गया है।
भारत बायोटेक के प्रबंध निदेशक, कोवैक्सिन के आविष्कारक और निर्माता डॉ. कृष्णा एला हैदराबाद के मूल निवासी नहीं हैं। वह एक तमिल हैं। उन्होंने कुछ समय बेंगलुरु में भी काम किया था। इसके बाद उन्होंने विस्कॉन्सिन यूनिवर्सिटी, मैडिसन में अध्ययन के लिए छात्रवृत्ति प्राप्त की और वहां से माइक्रोबायोलॉजी में पीएचडी की। यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ कैरोलिना में एक शोधकर्ता के रूप में कुछ समय काम करने के बाद वह भारत लौट आए और 1996 में हैदराबाद के बायोटेक्नोलॉजी हब जीनोम वैली में काम शुरू करने वाले पहले व्यक्ति बने। विगत वर्षों में, भारत बायोटेक ने मलेरिया, टाइफाइड और डायरिया के लिए टीके बनाए हैं। कंपनी ने हाल ही में जीएसके से रेबीज का टीका बनाने के लिए संयंत्र खरीदा है। और निश्चित तौर पर, भारत बायोटेक स्वदेशी कोविड वैक्सीन बनाने वाली पहली कंपनी भी है, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भार भारत के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया।भारत बायोटेक के नाम में भी देशभक्ति की झलक मिलती है।
कंपनी अपने टीके का नेजल वर्जन भी तैयार कर रही है। भारत बायोटेक कोविड महामारी के दौरान कदम बढ़ाने वाली इकलौती कंपनी नहीं है। हैदराबाद की एक और बायोटेक कंपनी बायोलॉजिकल ई भी अगले कुछ महीने में अपना वैक्सीन लॉन्च करने की तैयारी कर रही है। कंपनी का कहना है कि यह सबसे सस्ता टीका होगा। इसके बाद डॉ. रेड्डीज लैबोरेट्रीज भी कतार में है, जो रूस के गेमेलिया इंस्टीट्यूट के साथ अपने संबंधों को आधार बनाते हुए भारत में स्पुतनिक वी वैक्सीन बनाने के लिए कदम बढ़ा रही है।भारत बायोटेक, बायोलॉजिकल ई, डॉ रेड्डीज असल में फार्मा सेक्टर में अक्षय कुमार, रणबीर कपूर और रणवीर सिंह जैसे हीरो हैं। अहमदाबाद में हमारे पास कैडिला हेल्थकेयर है, जो कुछ हद तक कार्तिक आर्यन जैसी है, जिसने उम्मीदें तो बहुत दिखाई हैं, लेकिन उस स्तर का प्रदर्शन नहीं किया।
कैडिला असल में उन शुरुआती कंपनियों में से एक थी, जिसने घोषणा की थी कि वह एक टीका विकसित कर रही है, लेकिन अब तक टीका सामने नहीं आया है। इसके बजाय, इसने केवल रेमडेसिविर के एक प्रमुख निर्माता के रूप में सुर्खियां बटोरीं, जिससे अंतर स्पष्ट झलकता है।