राजस्थान में खत्म हो रहे उपवनों को बचाने के लिए 225 किलोमीटर की यात्रा

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राजस्थान में खत्म हो रहे उपवनों को बचाने के लिए 225 किलोमीटर की यात्रा

| Updated: December 26, 2022 12:52

पश्चिमी राजस्थान के दूरदराज के गांवों और बस्तियों से 225 किलोमीटर लंबी एक अनूठी यात्रा निकाली गई। यह पिछले दिनों जैसलमेर जिला मुख्यालय पर समाप्त हुई। इसने विनाश के खतरे का सामना कर रहे ओरान या पवित्र उपवनों (sacred groves) की सुरक्षा की मांग को जोरदार आवाज में उठाया। इसलिए कि उनकी जमीन नवीकरणीय ऊर्जा (renewable energy) के ढांचे और हाई-टेंशन बिजली लाइनों के लिए दी जा रही है। लगभग 60 कार्यकर्ताओं ने नौ दिनों तक जैसलमेर जिले में ऊंट गाड़ी से यात्रा की, ग्रामीणों को उनके आंदोलन में शामिल मुद्दों से अवगत कराया और स्थानीय समुदायों के बीच जागरूकता बढ़ाई।

ओरान भारत के सबसे गंभीर रूप से लुप्तप्राय पक्षी सोन चिड़िया (Great Indian Bustard) के लिए प्राकृतिक आवास भी बनाते हैं, जो वन्यजीव संरक्षण कानून (Wildlife Protection Act) के तहत संरक्षित प्रजाति (protected species) है। यह राजस्थान का राज्य पक्षी भी है। बिजली लाइनों से टकराने के कारण पिछले कुछ वर्षों के दौरान कई पक्षी की मृत्यु हो चुकी है। यानी बिजली के तार इन पक्षियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण खतरा बन गए हैं।

पैदल मार्च में भाग लेने वालों में ज्यादातर पर्यावरण कार्यकर्ता और वन्यजीव उत्साही थे। उन्होंने ओरान के महत्व पर प्रकाश डाला, जो पारंपरिक वनस्पतियों, जीवों और जल निकायों (water bodies) की समृद्ध विविधता (rich diversity वाले पेड़ों के झुरमुट (groves of trees) हैं। इन्हें स्थानीय लोग पवित्र और संरक्षित मानते हैं। स्थानीय देवताओं और मध्ययुगीन योद्धाओं के नाम पर बने ओरान शक्तिशाली थार रेगिस्तान के बीच में छोटे वन पैच के रूप में धार्मिक और सामाजिक महत्व रखते हैं।

यात्रा का नेतृत्व करने वाले पर्यावरण कार्यकर्ता सुमेर सिंह भाटी ने बताया कि सूखे के दौरान ओरान ने ही समुदाय और ऊंटों, भेड़ और बकरियों के झुंड के लिए भोजन और चारा सुनिश्चित किया। फिर भी उनकी भूमि का आवंटन सौर और पवन ऊर्जा (solar and wind energy), माइनिंग और अन्य उद्योगों के लिए किया जा रहा है, जिससे क्षेत्र की पारिस्थितिकी (ecology) प्रभावित हो रही है। जबकि परंपरा यह है कि इस क्षेत्र में कोई भी पेड़ या पौधा नहीं काटा जाता है। यहां केवल पशुओं के मौसमी चराई की अनुमति है। हालांकि सौर ऊर्जा कंपनियों ने मनमानी करते हुए अपने बड़े प्रोजेक्ट लगाने के लिए खेजड़ी व अन्य पेड़ों को गिरा दिया।

यात्रा देवकोट के पास एक ओरान के अंदर स्थित प्रसिद्ध देगराई मंदिर से शुरू हुई और लगभग 50 गांवों और बस्तियों से होकर गुजरी। यात्रा में भाग लेने वालों ने तेजी से बढ़ते औद्योगिकीकरण और पेड़ों, वन्य जीवन, लोगों की आजीविका और स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र पर चरागाह भूमि के अतिक्रमण के प्रभाव को समझाते हुए तख्तियां और बैनर लिए हुए थे।

जैसलमेर के हनुमान चौक में हुई सभा में राज्य सरकार के राजस्व रिकॉर्ड में ओरान को “संरक्षित भूमि” के रूप में दर्ज करने के लिए तत्काल कार्रवाई करने की अपील की गई। सभा को संबोधित करने वालों में प्रमुख रूप से पूर्व विधायक छोटू सिंह, जयपुर के पर्यावरणविद् गुलाब सिंह, कार्यकर्ता विक्रम सिंह नचना और भोपाल सिंह झालोदा शामिल थे।

जैसलमेर की कलेक्टर टीना डाबी को यात्रा में शामिल कार्यकर्ताओं ने अपनी मांगों को लेकर एक मेमोरेंडम भी सौंपा। इसमें कहा गया है कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा लगाए गए प्रतिबंध के बावजूद ओरान होकर बिजली की लाइनें बिछाई जा रही हैं। इसके कारण पीढ़ियों से संरक्षित पेड़ नष्ट हो रहे हैं। कार्यकर्ताओं ने जिले की नौ बड़ी ओरण भूमियों की सूची दी, जिन्हें तत्काल राजस्व अभिलेखों (revenue records) में संरक्षित घोषित किया जाना चाहिए।

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