गुजरात में अल्पसंख्यक मतदाताओं के लिए सब करते हैं एक जैसी बात, इसलिए पार्टियों को लेकर 'कोई उत्साह नहीं'

Gujarat News, Gujarati News, Latest Gujarati News, Gujarat Breaking News, Gujarat Samachar.

Latest Gujarati News, Breaking News in Gujarati, Gujarat Samachar, ગુજરાતી સમાચાર, Gujarati News Live, Gujarati News Channel, Gujarati News Today, National Gujarati News, International Gujarati News, Sports Gujarati News, Exclusive Gujarati News, Coronavirus Gujarati News, Entertainment Gujarati News, Business Gujarati News, Technology Gujarati News, Automobile Gujarati News, Elections 2022 Gujarati News, Viral Social News in Gujarati, Indian Politics News in Gujarati, Gujarati News Headlines, World News In Gujarati, Cricket News In Gujarati

गुजरात में अल्पसंख्यक मतदाताओं के लिए सब करते हैं एक जैसी बात, इसलिए पार्टियों को लेकर ‘कोई उत्साह नहीं’

| Updated: November 26, 2022 17:09

गुजरात विधानसभा चुनावों में कई प्रमुख मुकाबले देखने को मिल रहे हैं, लेकिन अल्पसंख्यक वोटों के लिए उत्साह कम ही दिख रहा है। प्रमुख राजनीतिक दल हमेशा की तरह मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देने तक ही चिंतित रहते हैं। मुस्लिम समुदाय  गुजरात की कुल आबादी का लगभग नौ प्रतिशत है, जो  एक स्वर में कहता है कि वह चुनावों के बारे में नहीं सोचता। इसलिए कि “कोई भी दल” अपने चुनाव-पूर्व वादों पर खरा नहीं उतरता है।

इस बार 182 सीटों पर कांग्रेस ने केवल छह मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। यह आंकड़ा 2002 के बाद से पार नहीं हुआ है। भाजपा- जिसके पास व्यारा निर्वाचन क्षेत्र से दो दशकों के बाद एक ईसाई उम्मीदवार भी है- ने आखिरी बार 1998 में वागरा विधानसभा सीट से एक मुस्लिम उम्मीदवार उतारा था, जो असफल रहे। राज्य के लिए नई पार्टी  आम आदमी पार्टी ने तीन मुसलमानों को मैदान में उतारा है, जबकि ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने कुल 13 में से 11 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। वैसे समुदाय के कई निर्दलीय उम्मीदवार हैं, जिनसे मुख्य रूप से कांग्रेस पार्टी के वोट शेयर में ही सेंध लगने की उम्मीद है।

पारंपरिक रूप से कांग्रेस से जुड़े मुस्लिम वोटबैंक का गुजरात के विधानसभा चुनावों में महत्व कम होता जा रहा है। इस तरह विधानसभा में प्रतिनिधित्व भी घटता जा रहा है। 2017 में कांग्रेस द्वारा मैदान में उतारे गए छह उम्मीदवारों में से तीन ने गुजरात विधानसभा में जगह बनाई, जबकि 2012 में पांच में से केवल दो चुने गए।

कांग्रेस के एक सीनियर नेता कहते हैं, ”इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि मौजूदा राजनीतिक माहौल में कांग्रेस को बीजेपी की हिंदुत्व की राजनीति का मुकाबला करना है। कांग्रेस को हिंदू विरोधी पार्टी भी कहा जाने लगा है। जाहिर है, पार्टी अपनी छवि को लेकर सचेत और समझदार हो गई है।

वह आगे कहते हैं, “हालांकि, मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में नहीं उतारना इस सचेत छवि परिवर्तन का हिस्सा नहीं है। 1990 से ही मुस्लिम उम्मीदवारों की जीत की संभावना सवालों के घेरे में आ गई थी। दरअसल 1995 में कांग्रेस के सभी 10 मुस्लिम उम्मीदवार हार गए थे। 1998 में हमारे नौ उम्मीदवारों में से पांच जीते थे। इसलिए 2002 में केवल विजेताओं को ही दोहराया गया।”

इस साल की शुरुआत में कांग्रेस ने वांकानेर के विधायक मोहम्मद पीरजादा को पार्टी की गुजरात इकाई के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में तरक्की दी थी। फिर कांग्रेस अध्यक्ष जगदीश ठाकोर अल्पसंख्यकों तक कांग्रेस के इस नारे के साथ पहुंचे थे कि पार्टी देश के संसाधनों पर अल्पसंख्यकों का पहला अधिकार मानती है।

इधर अरविंद केजरीवाल की पार्टी आप ने अहमदाबाद के अल्पसंख्यक इलाकों में रोड शो भी किया है। उसने तीन मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, लेकिन समुदाय से “कनेक्शन” गायब दिख रहा है।

गोधरा के एक नेता कहते हैं, “किसी भी राजनीतिक नेता ने बिल्किस बानो से मिलने की कोशिश नहीं की। उसके 11 दोषी बलात्कारियों को छूट दिए जाने के बाद उसे नैतिक समर्थन या मार्गदर्शन देने के लिए कोई नहीं मिला। किसी भी पार्टी के गैर-मुस्लिम नेताओं में से भी किसी ने हाल ही में उंढेला कोड़े मारने के विवाद के खिलाफ नहीं बोला। दरअसल  सबसे अधिक मुस्लिम आबादी वाले इलाकों में भी  उम्मीदवारों को जीतने के लिए हिंदुओं के वोटों की आवश्यकता होती है।

सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता जुबेर गोपालानी का कहना है कि मुस्लिम मतदाता विधानसभा चुनावों से पहले “कोई उत्साह नहीं” दिखाते हैं। इसलिए कि राजनीतिक दल एक-दूसरे की नकल करते दिखाई देते हैं। वह कहते हैं, “समुदाय इस बार फैसला नहीं कर पा रहा है। शुरू में  AAP  ने एक विकल्प की उम्मीद जगाई थी, लेकिन स्पष्ट रूप से अरविंद केजरीवाल के धार्मिक प्रतीकों और धर्म-संबंधी टिप्पणियों पर जोर ने मुसलमानों को असमंजस में डाल दिया है। और एक कांग्रेस है, जो न तो कहीं नजर नहीं आती है और न ही उसने अल्पसंख्यकों के बीच खुद को लोकप्रिय बनाने के लिए कुछ खास किया है। दरअसल हर कोई जानता है कि उनके नेता पहले मिले मौके पर ही भाजपा में कूद जाते हैं।”

इस विधानसभा चुनाव में AIMIM खुद को मुसलमानों और दलितों के रक्षक के रूप में पेश कर रही है। यहां तक कि ‘जय भीम, जय मीम’ का नारा भी अपना रही है। उसके 11 मुस्लिम और दो दलित उम्मीदवार मैदान में हैं। AIMIM के अभियानों में  प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और उनके गुजरात प्रमुख साबिर काबलीवाला जहां बिल्किस बानो और जकिया जाफरी की अनदेखी का मसला उठा रहे हैं, वहीं समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) और अशांत क्षेत्र अधिनियम (Disturbed Areas Act) को लेकर विरोध भी जता रहे हैं। लेकिन, फरवरी 2021 में स्थानीय निकाय चुनावों में अपनी जीत के बाद से पार्टी ने लगातार निर्वाचित प्रतिनिधियों को खो दिया है। जिन लोगों ने पार्टी छोड़ दी है, वे गुजरात नेतृत्व की पारदर्शिता (transparency) और अनिर्णय (indecisiveness) की स्थिति को दोष देते हैं। इसके अलावा पार्टी के भीतर कुछ लोगों का यह भी मानना है कि केवल मुस्लिम या दलित मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने से जमीन पर काम नहीं होता है।

मुसलमानों के लिए AIMIM का भी कोई खास आकर्षण नहीं है। उन्होंने कहा, ‘पार्टी को स्थानीय मुद्दों की कोई समझ नहीं है। कुछ लोग विशुद्ध रूप से धार्मिक आधार पर अपने उम्मीदवारों को वोट दे सकते हैं, लेकिन इसमें प्रभाव डालने के लिए स्थिरता और उपस्थिति का अभाव है। वर्तमान में मुस्लिम मतदाता राज्य में समुदाय के उस मायावी नेता की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जो कहीं नहीं है।

Also Read: हाले बेरी ने आइकॉनिक बिकिनी सीन के साथ मनाई जेम्स बॉन्ड की सालगिरह

Your email address will not be published. Required fields are marked *

%d