सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम के “अनुचित और अत्यधिक” उपयोग को गंभीरता से लेते हुए, गुजरात सूचना आयोग (GIC) ने सूरत के एक ही परिवार के तीन सदस्यों को एक कैलेंडर वर्ष में केवल छह आरटीआई आवेदन दाखिल करने तक सीमित कर दिया है।
यह आदेश गुजरात के मुख्य सूचना आयुक्त (CIC) द्वारा 24 अप्रैल को महेंद्र ब्रह्मभट्ट, जशवंत ब्रह्मभट्ट और हर्ष ब्रह्मभट्ट के खिलाफ पारित किया गया। महेंद्र और जशवंत सूरत में एक गुजराती समाचार पत्र के संपादक हैं, जबकि हर्ष उनका भतीजा है। आयोग के अनुसार, वर्ष 2009 से अब तक इस परिवार ने कुल 2,741 अपीलें और शिकायतें दायर की हैं।
सीआईसी ने अपने आदेश में उल्लेख किया कि ये आवेदक बार-बार लंबे समयावधि की व्यापक जानकारी मांगते रहे हैं। उन्हें कई बार RTI अधिनियम की धारा 6(1) और गुजरात सरकार द्वारा निर्धारित प्रारूप के अनुसार आवेदन करने की सलाह दी गई, लेकिन उन्होंने इसका पालन नहीं किया।
RTI अधिनियम की धारा 6(1) के अनुसार, आवेदक को स्पष्ट रूप से वह जानकारी लिखित या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से निर्दिष्ट करनी होती है, जिसकी वह मांग कर रहा है, साथ में निर्धारित शुल्क भी देना होता है। गुजरात सरकार द्वारा तय किए गए प्रारूप में यह अनिवार्य है कि जानकारी संक्षिप्त और स्पष्ट रूप से तथा समयावधि सहित मांगी जाए।
आयोग ने यह भी नोट किया कि जब बार-बार स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई, तो संबंधित विभागों और प्रथम अपीलीय प्राधिकरणों ने उन्हें अभिलेखों का निरीक्षण करने की सलाह दी। इसके बाद भी यदि वे संतुष्ट नहीं हुए, तो उन्होंने बार-बार दूसरी अपीलें और शिकायतें दायर कीं, जिससे आयोग का कार्यभार बढ़ा और अन्य वैध आवेदकों की सुनवाई में देरी हुई।
इससे पहले 4 अप्रैल को आयोग की एक अन्य पीठ ने गुजरात सरकार को सिफारिश की थी कि पांडेसरा इंडस्ट्रियल कोऑपरेटिव सोसाइटी के सदस्यों को आरटीआई के जरिए जानकारी लेकर परेशान करने के आरोपों की जांच CID (क्राइम) से कराई जाए। महेंद्र के खिलाफ जबरन वसूली के दो प्राथमिकी दर्ज होने के चलते, आयोग ने उन्हें RTI आवेदन दाखिल करने से भी प्रतिबंधित कर दिया था — जब तक कि वे आपराधिक मामलों से बरी नहीं हो जाते।
सीआईसी ने अपने नवीनतम आदेश में कहा कि भले ही ये तीनों आपराधिक मामलों में बरी हो जाएं, आरटीआई अधिनियम का “अनुपातहीन और दुरुपयोगपूर्ण” उपयोग रोकना आवश्यक है। आदेश में कहा गया कि, इस प्रकार जानकारी मांगना अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप नहीं है। इस तरीके से जानकारी मांगने पर उन्हें वह जानकारी प्राप्त करने का अधिकार नहीं है।
आदेश में यह भी उल्लेख किया गया कि कई अपीलों में आवेदकों ने राज्य भर के अनेक जन सूचना अधिकारियों पर दंडात्मक कार्रवाई की मांग की थी — जिससे यह संकेत मिलता है कि अपीलों का उद्देश्य पूरी तरह निष्कलंक नहीं है।
आयोग ने कहा कि सूचना के अधिकार अधिनियम को पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है, न कि इसे अंधाधुंध तरीके से उपयोग कर सरकारी संसाधनों पर बोझ डाला जाए।
इसके मद्देनज़र, आयोग ने आदेश दिया कि ब्रह्मभट्ट परिवार एक कैलेंडर वर्ष में केवल छह आरटीआई आवेदन ही दाखिल कर सकेगा। प्रत्येक आवेदन के साथ उन्हें यह लिखित रूप में देना होगा कि वर्ष में अब तक उन्होंने कितने आवेदन किए हैं। यदि यह घोषणा नहीं दी जाती है या यदि छह से अधिक आवेदन हो चुके हैं, तो ऐसे आवेदन स्वतः निरस्त कर दिए जाएंगे।
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