भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने मंगलवार को पूर्वानुमान जारी करते हुए कहा कि 2025 के मानसून सीज़न के दौरान देशभर में औसत वर्षा ‘सामान्य से अधिक’ रहने की संभावना है। इस अनुमान ने कृषि उत्पादन बेहतर रहने और महंगाई पर नियंत्रण की उम्मीदों को बल दिया है।
अगर यह पूर्वानुमान सटीक साबित होता है, तो यह 1953 के बाद चौथा मौका होगा जब देश में लगातार दो वर्षों तक ‘सामान्य’ या ‘सामान्य से अधिक’ मानसून दर्ज किया जाएगा। इससे पहले 2010 से 2013 के बीच ऐसा हुआ था, जब दो वर्ष ‘सामान्य से अधिक’ और उसके बाद ‘सामान्य’ वर्षा दर्ज की गई थी।
IMD के अनुसार, जब मानसून के दौरान वर्षा औसत दीर्घकालिक औसत (LPA) का 96% से 104% के बीच होती है, तो उसे ‘सामान्य’ माना जाता है। 104% से अधिक वर्षा को ‘सामान्य से अधिक’ की श्रेणी में रखा जाता है। वर्ष 2017 से 2020 के बीच जून से सितंबर तक की वर्षा का LPA औसतन 870 मिलीमीटर है।
हालांकि सामान्य या सामान्य से अधिक मानसून खाद्य उत्पादन में बढ़ोतरी और महंगाई को काबू में रखने में सहायक हो सकता है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि केवल वर्षा ही मुद्रास्फीति (महंगाई) को नियंत्रित करने का एकमात्र कारक नहीं है। स्थानीय मांग और आपूर्ति, परिवहन व्यवस्था और वैश्विक बाजार जैसे कई अन्य कारक भी महंगाई को प्रभावित करते हैं।
इसके अलावा, पूरे भारत में औसतन सामान्य से अधिक वर्षा होने के बावजूद, क्षेत्रीय स्तर पर असमान वितरण कृषि उत्पादन पर नकारात्मक असर डाल सकता है। IMD ने इस वर्ष बिहार और तमिलनाडु जैसे प्रमुख राज्यों में ‘सामान्य से कम’ वर्षा का अनुमान जताया है, जो वहां की खेती को प्रभावित कर सकता है।
अब जबकि देश मानसून के आगमन की प्रतीक्षा कर रहा है, नीति-निर्माता और किसान दोनों ही वर्षा के क्षेत्रीय वितरण और उसकी तीव्रता पर नजर बनाए हुए हैं।
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