नई दिल्ली: केंद्र सरकार द्वारा बुधवार (30 अप्रैल) को यह घोषणा किए जाने के कुछ ही घंटों बाद कि आगामी दशकीय जनगणना के साथ-साथ जाति आधारित जनगणना भी कराई जाएगी — लेकिन इसकी कोई समयसीमा नहीं बताई गई — लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने कहा कि उनकी पार्टी इस फैसले का स्वागत करती है क्योंकि यह उनकी लंबे समय से चली आ रही मांग रही है।
मोदी सरकार के इस कदम को आगामी बिहार विधानसभा चुनावों की रोशनी में देखा जा रहा है, लेकिन राहुल गांधी ने कहा कि “इससे फर्क नहीं पड़ता कि सरकार ने यह फैसला क्यों लिया है”, और उन्होंने सरकार से इसकी स्पष्ट समय-सीमा की मांग की।
विपक्षी दलों ने भी सरकार से जाति जनगणना की समय-सीमा तय करने की मांग की और इसे INDIA गठबंधन की जीत बताया। जातिगत जनगणना को 2024 के लोकसभा चुनाव में इस गठबंधन ने एक प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाया था — जिसे उस समय भाजपा ने समाज को बांटने का प्रयास बताया था।
राहुल गांधी ने नई दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “मुझे नहीं लगता कि बिहार चुनाव इस फैसले के पीछे वजह है। फर्क नहीं पड़ता कि उन्होंने यह फैसला क्यों लिया। हम लंबे समय से इसके लिए संघर्ष कर रहे हैं। हम खुश हैं, स्वागत करते हैं, लेकिन सरकार से जानना चाहते हैं कि यह प्रक्रिया कब पूरी होगी — हमें तारीख चाहिए।”
इससे पहले बुधवार को केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने एक बयान में कहा कि जाति आधारित गणना दशकीय जनगणना के साथ की जाएगी और कांग्रेस समेत विपक्ष पर आरोप लगाया कि वे जाति जनगणना को “राजनीतिक औजार” की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी कहा कि कांग्रेस और उसके सहयोगी “सत्ता में रहते हुए दशकों तक जातिगत जनगणना का विरोध करते रहे और विपक्ष में रहते हुए इस पर राजनीति करते रहे।”
राहुल गांधी ने कहा कि कांग्रेस लंबे समय से जाति जनगणना की मांग कर रही थी, जबकि मोदी सरकार इसका विरोध कर रही थी, लेकिन अब अचानक उन्होंने इसे लागू करने का फैसला ले लिया है।
उन्होंने कहा, “हमने काफी समय से जातिगत जनगणना की मांग की है। सरकार पहले इसका विरोध कर रही थी। हमें समझ नहीं आता कि वजह क्या थी, लेकिन अब अचानक उन्होंने इसे लाने का फैसला किया है — हम इसका स्वागत करते हैं।”
जाति जनगणना को “विकास का नया पैमाना” बताते हुए राहुल गांधी ने कहा कि कांग्रेस इसके आगे भी जाना चाहती है।
उन्होंने कहा, “हमने दो और मुद्दों पर चर्चा की है — पहला, 50% आरक्षण की सीमा, जो अब देश के विकास और पिछड़े वर्गों, दलितों और आदिवासियों की प्रगति में बाधा बनती जा रही है। हम चाहते हैं कि इस सीमा को हटाया जाए। दूसरा मुद्दा अनुच्छेद 15(5) के तहत निजी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण को लागू करना है, जिसकी हम तत्काल मांग करते हैं।”
उन्होंने आगे कहा, “हम जाति जनगणना को एक नई विकास दृष्टि का पहला कदम मानते हैं और इसे आगे बढ़ाना चाहते हैं। हम समझना चाहते हैं कि देश की सत्ता संरचना में 90% आबादी की भागीदारी क्या है — वे कहां प्रभावी रूप से भाग ले रहे हैं और कहां नहीं। हम उन्हें वास्तविक भागीदारी देना चाहते हैं।”
राहुल गांधी ने सुझाव दिया कि जाति गणना के लिए ‘तेलंगाना मॉडल’ को राष्ट्रीय मॉडल के रूप में अपनाया जा सकता है और कांग्रेस सरकार को ऐसा मॉडल विकसित करने में सहयोग देने को तैयार है।
गौरतलब है कि नवंबर 2023 में बिहार में जब जनता दल (यू) और राष्ट्रीय जनता दल की सरकार थी — और जदयू INDIA गठबंधन का हिस्सा थी — तब राज्य में जाति आधारित सर्वेक्षण कराया गया था। यह सर्वेक्षण बाद में राजनीति का बड़ा मुद्दा बन गया।
भाजपा और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उस समय इसे समाज को बांटने वाला कदम बताया था, जबकि राज्य की भाजपा इकाई ने इसका समर्थन किया था।
बुधवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल के फैसले के बाद बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कहा, “जिस मुद्दे पर हमें समाज को बांटने का आरोप दिया गया था, उस पर अब जवाब मिल गया है। यह सिर्फ एक घोषणा है, यह कब लागू होगा, कोई नहीं जानता। हमारी यह मांग विधानसभा और अदालत दोनों में उठती रही — सरकार को हमारी मांग के आगे झुकना पड़ा है। हम उम्मीद करते हैं कि जातिगत जनगणना परिसीमन से पहले पूरी हो।”
बिहार सरकार ने जातीय सर्वेक्षण के बाद विधानसभा में आरक्षण सीमा को 50% से ऊपर ले जाने के लिए विधेयक पारित किया था। सर्वेक्षण में सामने आया कि राज्य की 65% आबादी अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और अति पिछड़ा वर्ग से आती है, लेकिन इन वर्गों की सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में भागीदारी बेहद कम है।
हालांकि, जून 2024 में पटना हाईकोर्ट ने बिहार सरकार के इस फैसले को निरस्त कर दिया। मामला अब सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है।
समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने केंद्र के फैसले को “90% PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) की एकता की 100% जीत” बताया।
उन्होंने कहा, “जातीय जनगणना का फैसला 90% PDA की एकता की 100% जीत है। हम सभी के संयुक्त दबाव के कारण भाजपा सरकार को यह फैसला लेना पड़ा है। यह सामाजिक न्याय की लड़ाई में PDA की जीत का महत्वपूर्ण चरण है।”
2024 के लोकसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस गठबंधन ने उत्तर प्रदेश में भाजपा को करारी हार दी, और 80 में से 43 सीटें जीत लीं।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPI-M) ने अपने बयान में इस फैसले को विपक्ष की “सर्वसम्मत मांग पर लिया गया देर से लिया गया फैसला” बताया, लेकिन यह भी कहा कि “अब तक भी कोई समय-सीमा नहीं दी गई है। सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए जातीय सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण जरूरी है।”
AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने केंद्र के फैसले का स्वागत करते हुए तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी की भी तारीफ की, जिन्होंने राज्य में जातीय सर्वेक्षण कराया।
उन्होंने कहा, “यह स्वतंत्र भारत की पहली पहल थी, जिसमें सामने आया कि राज्य की 56.32% आबादी पिछड़ी जातियों की है। तेलंगाना ने 42% पिछड़ा वर्ग आरक्षण लागू करने का भी साहसिक निर्णय लिया। अब समय आ गया है कि मुसलमानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति और उनके भीतर मौजूद जातियों/समूहों की भी सही जानकारी जुटाई जाए।”
द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) प्रमुख और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने बुधवार को आए इस फैसले को अपनी सरकार और पार्टी की “कड़ी मेहनत की जीत” बताया, लेकिन साथ ही इसे “बिहार चुनाव से पहले लिया गया राजनीतिक रूप से प्रेरित फैसला” भी कहा।
उक्त लेख मूल रूप से द वायर वेबसाइट द्वारा प्रकाशित की जा चुकी है.
यह भी पढ़ें- अगर पाकिस्तान की एयरस्पेस एक साल बंद रही तो एयर इंडिया को होगा 5,081 करोड़ रुपये का नुकसान: रिपोर्ट