गुजरात में 6 सरकारी मेडिकल कालेज हैं ,जहा सिविल अस्पताल कार्यरत है। लेकिन अहमदाबाद (Ahmedabad )की सरकारी सिविल अस्पताल ( Government Civil Hospital )के मेडीसीन विभाग (Department of Medicine )के ओपीडी की कतार में 26 वर्षीय युवक राजेश बुखार से पीड़ित होकर खड़े खड़े थक कर बैठ गया है , लेकिन अभी उसका नंबर नहीं लगा है। उसके आगे अभी कतार में 15 लोग हैं। वह दो घंटे से कतार में लग कर अपनी बारी आने का इंतजार कर रहा है , ताकि वह डॉक्टर तक पहुंच सके।
बीच बीच में सुरक्षा कर्मी आकर लाइन सीधी कराते हैं। रमेश वाडज से आया है। रिक्शा चलाता है। उसके लिए बुखार से ठीक होने से ज्यादा कीमती समय है , क्योकि ऑटो चलाएगा तो ही उसका घर चलेगा। लेकिन रमेश अकेला नहीं है। रमेश की तरह रोज हजारों मरीज और उनके रिश्तेदार सिविल अस्पताल में अपने नंबर का इंतज़ार करते है। मरीज इतने ज्यादा होते हैं की ज्यादातर को रेजिडेंट डॉक्टर देखते हैं। मरीजों की संख्या ज्यादा होने के कारण ठीक से काउंसलिंग भी नहीं हो पाती। डॉक्टर भी जानते है की उनके पास समय कम है और मरीज ज्यादा हैं।
गुजरात में 6 सरकारी मेडिकल कालेज हैं ,जहा सिविल अस्पताल कार्यरत है। मेडिकल कॉलेज में शिक्षा व्यवस्था से जुड़े प्राध्यापक ही चिकित्सा व्यवस्था से जुड़े होते हैं , इसका उद्देश्य यह था कि प्राध्यापक चिकत्सीय छात्रों को प्रायोगिक ज्ञान से अवगत करा सके। लेकिन रिक्त पद और मरीजों की बढ़ती संख्या ना केवल चिकित्स्कों के लिए बल्कि स्वस्थ्य व्यवस्था के लिए भी बढ़ी चुनौती बन गयी है।
गुजरात में 6 मेडिकल कालेज के लिए 3807 पद मंजूर हैं जिनमे से 1454 पद रिक्त है। भरे पदों में भी 271 करार आधारित और 180 निर्धारित वेतन से भरे हैं। कई पद तो वर्षो से रिक्त हैं इनमे विभागाध्यक्ष से लेकर वर्ग 3 तक के पदों का समावेश है। जिसकी कीमत रमेश जैसे हजारों मरीजों को चुकानी पड़ती है। अकेले अहमदाबाद सिविल अस्पताल में रोज 4000 से अधिक मरीज सामान्य दिनों में इलाज के लिए आते हैं।
बीजे मेडिकल कॉलेज अहमदाबाद (BJ Medical College Ahmedabad )में वर्ग 1 के 342 पद के सामने 279 पद ही भरे हैं जिनमे 33 कॉन्ट्रैक्ट पर हैं। 63 जगह खाली है। कुछ पद तो वर्षो से खाली हैं , वर्ग 2 में 105 पदों में 15 , और वर्ग तीन में 273 पद में महज 113 में ही नियुक्ति है उनमे से भी 54 कर्मचारी फिक्स वेतन पर काम कर रहे हैं।
अपनी विरासत के लिए गौरव लेने वाला सरकारी मेडिकल कालेज वड़ोदरा (Government Medical College Vadodara)प्रशासन की उपेक्षा का शिकार है। यहा वर्ग 1 में मंजूर 294 पद में 66 , वर्ग 2 में 110 में से 34 और वर्ग 3 में से मंजूर 303 में से 12 1 पद रिक्त है। ज्यदातर पदों पर वर्षों से नियुक्ति नहीं हुयी है।
दक्षिण गुजरात के सबसे स्वास्थ्य केंद्र मेडिकल कॉलेज सूरत (Medical College Surat ) की हालत और बुरी है। सूरत में वर्ग 1 के 76 , वर्ग 2 के 36 और वर्ग 3 के 74 पद रिक्त हैं।
सबसे ख़राब परिस्थिति में भावनगर का सरकारी मेडिकल कालेज( Government Medical College Bhavnagar ) है। भावनगर में हर वर्ग में आधे पद रिक्त हैं। भावनगर में क्रमशः तीनो वर्गों में रिक्त पदों की संख्या 109 ,39 और 136 है। जबकि मंजूर पद क्रमशः 233 ,80 और 276 हैं।
पीडीयू मेडिकल कॉलेज राजकोट (PDU Medical College Rajkot )में 669 पद के सामने 389 रिक्त पद शासन से नियुक्तियों का इंतजार कर रहे हैं। भरे पदों में भी 55 करार आधारित और 29 निर्धारित वेतन से भरे गए हैं.
गुजरात को बेहतरीन डॉक्टर देने वाले एमपी शाह मेडिकल कॉलेज जामनगर (MP Shah Medical College Jamnagar )की कहानी भी यही है। जामनगर में 243 प्राध्यापकों के सामने महज 146 मजूद हैं इनमे से भी 18 करार आधारित हैं। जबकि वर्ग 2 में 44 और वर्ग तीन में 105 पद खाली हैं।
रिक्त पदों के कारण मरीजों के बाद सबसे ज्यादा प्रभावित चिकित्सीय छात्र होते है , एक रेजिडेंट डॉक्टर( Resident Doctor )ने नाम ना छपने की शर्त पर वाइब्स आफ इंडिया (Vibes of India )से कहते है ,फेकल्टी और स्टाफ ना होने का खामियाजा हमें भुगतना पड़ता है , क्लास , ओपीडी (OPD) , फिर पढाई के कारण 18 घंटे हो जाते है , स्टायपेंड भी कम मिलता है। फिर सरकारी अस्पताल में कौन डॉक्टर आना चाहेगा जब उसे बाहर बेहतर अवसर मिल रहे है।
गुजरात मेडिकल काउन्सिल की सदस्य डॉ कल्पना देसाई (Dr. Kalpana Desai, Member, Gujarat Medical Council )वाइब्स आफ इंडिया से कहती है रिक्त पदों को भरने का काम सरकार है , सरकार को कई बार अवगत कराया है , अस्पताल प्रशासन अपनी तरह से अवगत कराता है , मेडीकल कालेज में पद भरने के लिए ही करार आधारित और निर्धारित का भी खास लाभ नहीं मिला है। जिसका कारण वेतन और सेवागत विसंगीतिया है। देसाई मानती है की स्टाफ कम होने का खामियाजा मरीज को विलम्ब के तौर पर भुगतना पड़ता है। लेकिन वह जोर देकर कहती है एक दिन में एक ओपीडी में 200 से ज्यादा मरीज देखे जाते है तो काम का बोझ तो है ही , उसी में पढ़ाना और आपरेशन भी शामिल है।
वाइब्स आफ इंडिया से नेता विरोध पक्ष सुखराम राठवा ( Leader of Opposition Sukhram Rathwa )कहते हैं गुजरात सरकार 20 साल उपलब्धी के मना रही है , लेकिन वह विफलता के साल है ,गरीब आदमी ही इलाज के लिए सिविल अस्पताल जाता है। आपके ही आकड़े स्वास्थ्य व्यवस्था किस तरह बिगड़ी है , अस्पताल में डॉक्टर नहीं है , पद खाली हैं , नर्स नहीं है , दवा नहीं है , गरीब आदमी कहा जाये ? राठवा जोर देकर कहते हैं यह निजी अस्पतालों को बढ़ाने का तरीका है। सरकार जानकर भर्ती नहीं कर रही है। डॉक्टरों की हड़ताल को भी हमने समर्थन दिया था। राठवा ने वाइब्स आफ इंडिया को भरोसा दिलाया की वह विधानसभा में भी इस मामले को रखेंगे।
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