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इसरो जासूसी केस: सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाई कोर्ट से मिली चारों आरोपियों की जमानत रद्द की

| Updated: December 3, 2022 11:23 am

कोर्ट ने इसरो के वैज्ञानिक नंबी नारायणन को जासूसी में फंसाने की साजिश के आरोपों का सामना कर रहे इंटेलिजेंस ब्यूरो और केरल पुलिस के पूर्व अधिकारियों को अग्रिम जमानत देने के केरल हाई कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया है। इसके साथ अदालत ने केरल हाईकोर्ट को आरोपियों की दलीलों पर नए सिरे से विचार करने को भी कहा है। जस्टिस एमआर शाह और सीटी रविकुमार की बेंच ने शुक्रवार को केरल हाई कोर्ट से उनकी दलीलों पर नए सिरे से विचार करने और 4 सप्ताह में फैसला करने को कहा है। शीर्ष अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि अभियुक्तों को 5 सप्ताह तक गिरफ्तार नहीं किया जाएगा। लेकिन उन्हें जांच में सहयोग करना होगा।

केरल के पूर्व पुलिस महानिदेशक सीबी मैथ्यूज, गुजरात के पूर्व एडीजीपी आरबी श्रीकुमार, पीएस जयप्रकाश, एस विजयन और थम्पी एस दुर्गादत्त को गिरफ्तारी से पहले जमानत देने के हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली सीबीआई की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को आदेश जारी किया। बता दें कि सितंबर 2018 में अदालत ने डॉ नंबी नारायणन को उनकी गलत गिरफ्तारी के लिए 50 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया था। इसके साथ ही पूर्व जस्टिस डीके जैन की अध्यक्षता में एक समिति बना दी थी। इस समिति को उन तरीकों और साधनों का पता लगाना था, जिनके जरिये पुलिस वालों ने नंबी नारायणन को फंसाया था। उस समय नारायणन इसरो में क्रायोजेनिक परियोजना का नेतृत्व करते थे।

क्या है पूरा मामलाः

अक्टूबर और नवंबर 1994 के बीच केरल पुलिस ने मालदीव की दो महिलाओं-मरियम रशीदा और फौजिया हसन को गिरफ्तार किया। इसके साथ दावा किया कि इसरो में एक जासूसी गिरोह है, जिसने महत्वपूर्ण दस्तावेजों को लीक किया है। इस मामले की जांच शुरुआत में एस विजयन ने की थी, जो तिरुवनंतपुरम की विशेष शाखा में इंस्पेक्टर थे। इसके बाद तत्कालीन डीआईजी (अपराध) सिबी मैथ्यूज के नेतृत्व में एक विशेष जांच दल ने इस मामले को अपने हाथ में ले लिया था।

नंबी नारायणन को इस मामले में 30 नवंबर 1994 को गिरफ्तार किया गया। इसके बाद जांच 4 दिसंबर 1994 को सीबीआई को सौंप दी गई। एर्नाकुलम के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को सौंपी रिपोर्ट में सीबीआई ने कहा था कि सबूतों से पता चला है इसरो में वैज्ञानिकों के खिलाफ जासूसी के आरोप गलत हैं। इस रिपोर्ट को अदालत ने मानकर सभी आरोपियों को 2 मई 1996 को रिहा कर दिया। लेकिन केंद्र और राज्य सरकार को एक अलग गुप्त रिपोर्ट में सीबीआई ने इस मामले में आईबी के अधिकारियों द्वारा निभाई गई भूमिका का ब्योरा दिया था।

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