बिना ठाकरे की हो गई शिवसेना, शिंदे गुट की हुई पार्टी, चुनाव चिह्न भी मिल गया

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बिना ठाकरे की हो गई शिवसेना, शिंदे गुट की हुई पार्टी, चुनाव चिह्न भी मिल गया

| Updated: February 18, 2023 11:24

बाल ठाकरे द्वारा 1966 में बनाई पार्टी बदल गई है। हो सकता है कि बाल ठाकरे के सबसे छोटे बेटे उद्धव राजनीति के मामले में अपने पिता जितने तेज न हों। इस क्रूर खेल में भाजपा-आरएसएस गठबंधन की क्रूर चाल ने शिवसेना को उद्धव के हाथों से छीन लिया है।

नागपुर के रेशिमबाग में आरएसएस के मुख्यालय के में शनिवार को एक समारोह है। इसमें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे भी शामिल होंगे। इस समारोह की पूर्व संध्या पर भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) ने शिवसेना के शिंदे गुट को ही असली पार्टी घोषित कर दिया। शिवसेना के चुनाव चिह्न धनुष और तीर भी शिंदे गुट को मिल गया ह। यानी शिंदे गुट ही अब “असली शिवसेना” है।

एकनाथ शिंदे दरअसल उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली और गैर-एनडीए राजनीतिक दलों के गठबंधन- महा विकास आघाड़ी (MVA)- सरकार में भाजपा के लिए वफादार बने रहे। वफादारी का आलम यह रहा कि शिंदे ने उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली एमवीए सरकार को हटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके कारण 29 जून, 2022 को उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद शिंदे मुख्यमंत्री बने, और भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस उनके डिप्टी।

यह नौ महीने की गहरी राजनीतिक और कानूनी लड़ाई रही है। अब शिवसेना बाल ठाकरे परिवार से बाहर हो गई है। भाजपा-शिवसेना गठबंधन के लिए जश्न मुंबई में नहीं होगा, जहां शिवसेना का जन्म हुआ था। जीत का यह जश्न आरएसएस के जन्मस्थान यानी नागपुर में होने की संभावना है।

पर्दे के पीछे से उद्धव ठाकरे के नेतृत्व के खिलाफ बगावत करने के लिए एकनाथ शिंदे और उनके 40 विधायकों को प्रभावी ढंग से संभालने और एमवीए सरकार को गिराने वाली भाजपा जाहिर तौर पर चुनाव आयोग के फैसले से खुश है। चुनाव आयोग  का फैसला पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के राजभवन से प्रस्थान के दिन भी आया। कोश्यारी ने महाराष्ट्र की राजनीति में उथल-पुथल वाले इन  महीनों में ऐसी भूमिका निभाई, जिसकी उनसे अपेक्षा की गई थी। मानो उन्होंने दीवार पर लिखी इबारत पढ़ ली हो। शिवसेना के अधिकतर विधायक, लोकसभा में सांसद और पूरे महाराष्ट्र के पदाधिकारियों ने जून 2022 के विद्रोह के तुरंत बाद ठाकरे गुट को छोड़ दिया था।

अब इसमें कोई संदेह नहीं है कि शिंदे गुट को असली शिवसेना के रूप में मान्यता देने के चुनाव आयोग के फैसले से उद्धव और उनके वफादारों को गहरा झटका लगा है। उन्हें अपने मनोबल को फिर से हासिल करने के लिए राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस सहित अपने सहयोगियों के साथ एक नई रणनीति पर काम करना होगा। साथ ही सुप्रीम कोर्ट में वापस जाकर पार्टी को फिर से हासिल करने की लड़ाई एक बार फिर शुरू करनी होगी।

इस बीच, शिंदे को इस महीने के अंत में पुणे जिले में कस्बा पेठ और पिंपरी चिंचवाड़ विधानसभा उपचुनाव में जनता का सामना करना पड़ेगा। बृहन्मुंबई नगर निगम चुनाव की सबसे अधिक संभावना है।

लोगों के मन में क्या है, इसका अंदाजा सभी को है।

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