अहमदाबाद: गुजरात के अहमदाबाद स्थित प्रसिद्ध सेठ वदीलाल सराभाई (वी.एस.) अस्पताल में गंभीर अनियमितताओं का मामला सामने आया है। आरोप है कि इस अस्पताल में 58 फार्मास्युटिकल कंपनियों ने लगभग 500 मरीजों पर बिना अनुमति और जानकारी के नैदानिक परीक्षण (क्लीनिकल ट्रायल) किए।
स्थानीय नगर निगम की शिकायत पर गठित जांच समिति की रिपोर्ट में पाया गया कि इन ट्रायल्स के लिए न तो अस्पताल की एथिक्स कमेटी से अनुमति ली गई थी और न ही मरीजों को इन परीक्षणों की जानकारी दी गई थी। रिपोर्ट सामने आने के बाद अस्पताल प्रशासन ने आठ डॉक्टरों को निलंबित कर दिया है।
इस मामले में स्वास्थ्य अधिकार मंच ने भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के सचिव और भारत के औषधि महानियंत्रक (DCGI) को पत्र लिखकर सख्त कार्रवाई की मांग की है। मंच ने गुजरात के मुख्य सचिव और स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रमुख सचिव को भी एक अलग पत्र भेजा है, जिसमें राज्य के अस्पतालों, एथिक्स कमेटियों और किए गए ट्रायल्स की जानकारी के साथ दोषियों के खिलाफ समयबद्ध जांच और कार्रवाई की मांग की गई है।
स्वास्थ्य अधिकार मंच के अमूल्य निधि ने कहा कि “माननीय सुप्रीम कोर्ट ने क्लीनिकल ट्रायल्स में मरीजों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए कई महत्वपूर्ण दिशानिर्देश जारी किए हैं। इसके बावजूद इस तरह की घटनाएं होना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। गुजरात के वी.एस. अस्पताल में बिना पंजीकृत एथिक्स कमेटी के ट्रायल्स कराना ड्रग्स एंड क्लीनिकल ट्रायल्स रूल्स, 2019 का सीधा उल्लंघन है। केवल डॉक्टरों को निलंबित कर देना पर्याप्त नहीं है।”
गौरतलब है कि स्वास्थ्य अधिकार मंच पिछले एक दशक से अवैध क्लीनिकल ट्रायल्स के खिलाफ सक्रिय है, और इस मुद्दे पर एक जनहित याचिका भी माननीय सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
जन स्वास्थ्य अभियान (गुजरात इकाई) के जगदीश पटेल ने गुजरात सरकार से मांग की है कि इस पूरे मामले की निष्पक्ष और समयबद्ध जांच कराई जाए। उन्होंने कहा, “सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि राज्य में किए जाने वाले सभी क्लीनिकल ट्रायल्स नियमों के अनुसार हों और ट्रायल में भाग लेने वाले मरीजों के अधिकारों की पूरी सुरक्षा की जाए।”
मुनाफाखोरी के लिए गरीब मरीजों को बनाया गया शिकार
करीब 500 गरीब मरीजों पर जोड़ों का दर्द, मधुमेह और अन्य दीर्घकालिक बीमारियों के लिए बिना स्वीकृति वाले ट्रायल किए गए। मरीजों से कहा गया कि सरकारी दवाएं उपलब्ध नहीं हैं और उन्हें “नई और उच्च गुणवत्ता वाली निजी दवाएं” दी जाएंगी।
ऐसे ही दो पीड़ित मरीज — काजलबेन (बदला हुआ नाम), जो एक निर्माण कार्य करने वाले मज़दूर हैं, और विनोदभाई (बदला हुआ नाम), जो जोड़ों के दर्द से पीड़ित हैं — ने बताया कि डॉक्टरों ने उन्हें ज़बरदस्ती ये दवाएं लेने के लिए उकसाया। ज़्यादातर मरीजों को यह तक नहीं बताया गया कि उन पर मेडिकल रिसर्च की जा रही है।
कौन-कौन शामिल है?
करीब 57 कंपनियों ने इस ट्रायल में भाग लिया, जिसकी मुख्य कंपनी एक कोरियन फर्म थी — हालांकि उस पर कोई अनियमितता सिद्ध नहीं हुई है।
घोटाले का खुलासा करने वाली महिला पार्षद
इस घोटाले का पर्दाफाश एक युवा नगरसेविका, राजश्री केसरी ने किया। उन्होंने कहा, “यह सिर्फ एक मेडिकल घोटाला नहीं है, बल्कि एक बड़ा राजनीतिक घोटाला है। मैंने एफआईआर की मांग की है और आज शाम अहमदाबाद महानगर पालिका की बैठक में यह मुद्दा उठाऊंगी। मैं उन 500 गरीब मरीजों के लिए न्याय चाहती हूं जिन्हें पता तक नहीं चला कि उनके साथ क्या किया गया।”
फर्जी नैतिकता समिति और डॉक्टरों की भूमिका
शिकायतों और व्हिसलब्लोइंग के बाद बनी जांच समिति ने पाया कि अस्पताल में एक अवैध ‘एथिक्स कमेटी’ बनाई गई थी, जिसने निजी फार्मा कंपनियों के लिए मरीजों पर ट्रायल किए और लाखों रुपये वसूले।
क्लिनिकल ट्रायल एग्रीमेंट (CTA) के अनुसार, अहमदाबाद की CBCC ग्लोबल रिसर्च और डॉ. धैवत शुक्ला (प्रमुख अन्वेषक) को मरीजों की सहमति लेने की जिम्मेदारी दी गई थी। इस अनुबंध में वीएस अस्पताल, एसएम कंपनी और निशांत कुमार सिंह शामिल थे, जो अकाउंट्स संभालते थे।
कोरियन कंपनी और एग्रीमेंट में क्या लिखा है?
यह कॉन्ट्रैक्ट Caregen Co. Ltd. नामक कोरियन कंपनी ने दिया था। दस्तावेजों के अनुसार, ट्रायल का उद्देश्य “टाइप-2 डायबिटिक मरीजों में फास्टिंग ग्लूकोज़ और कार्डियोमेटाबॉलिक जोखिमों पर Deglusterol के प्रभावों का आकलन” करना था।
CTA में स्पष्ट उल्लेख है कि सभी मरीजों को ट्रायल के बारे में पूरी जानकारी दी जानी चाहिए, इलाज, दवाएं, ठहरने और यात्रा की सुविधाएं मुफ्त दी जानी चाहिए और डॉक्टरों को सभी निर्देशों का पालन करना होगा।
फर्जी नैतिक समिति का खुलासा
एक दस्तावेज़ दिनांक 26 जून 2023, सँगिनी अस्पताल की एथिक्स कमेटी के लेटरहेड पर है, जिसमें नवंबर 2024 में साइन हुए समझौते को पहले ही मंजूरी दे दी गई थी। यह भी घोटाले का एक और प्रमाण है कि एथिक्स कमेटी फर्जी थी और मान्य मानकों के अनुसार गठित नहीं थी।
अस्पताल प्रशासन की भूमिका
डॉ. देवांग राणा, वीएस अस्पताल के डॉक्टर को बर्खास्त किया गया है। उन्होंने इस घोटाले से लाखों रुपये कमाए। VOI के पास 8.73 लाख रुपए का एक इनवॉइस भी है, जो उनके नाम पर जारी हुआ था।
पूर्व अधीक्षक मनीष शाह, जिनकी भूमिका संदेह के घेरे में है, रहस्यमयी तरीके से इस्तीफा देकर रियल एस्टेट में चले गए हैं। उन्होंने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की। जबकि अस्पताल के कम से कम 6 अन्य डॉक्टरों की संलिप्तता की पुष्टि हुई है, लेकिन उनके खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
इस घटना ने एक बार फिर देशभर में क्लीनिकल ट्रायल्स की निगरानी और मरीजों की सुरक्षा को लेकर बहस को तेज कर दिया है।
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