अहमदाबाद: हाल ही में लॉन्च हुई वज़न घटाने और डायबिटीज़ के इलाज में काम आने वाली दवा ‘टिरज़ेपेटाइड’ (Tirzepatide) ने भारतीय दवा उद्योग में तहलका मचा दिया है। यह दवा लॉन्च होने के महज़ छह महीनों के भीतर ही बिक्री के मामले में दूसरे स्थान पर पहुँच गई है।
फार्माट्रैक (Pharmarack) द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, यह दवा और इसी श्रेणी की चार अन्य दवाइयाँ गुजरात में भी मोटापे के इलाज के बढ़ते चलन को स्पष्ट रूप से दिखा रही हैं। सितंबर 2025 तक, गुजरात में इन दवाओं का कुल वार्षिक कारोबार (MAT) 61.2 करोड़ रुपये तक पहुँच गया है।
4 साल में 4.5 गुना बढ़ा बाज़ार
आँकड़े बताते हैं कि बाज़ार में आए नए और असरदार मॉलिक्यूल्स के कारण, मोटापा कम करने (एंटी-ओबेसिटी) वाली दवाओं की बिक्री पिछले केवल चार वर्षों में 4.5 गुना बढ़ गई है। सितंबर 2021 में जहाँ इस श्रेणी का कुल कारोबार 11.25 करोड़ रुपये था, वहीं सितंबर 2025 तक यह बढ़कर 61.2 करोड़ रुपये हो गया।
इस बड़े बदलाव में जनवरी 2022 में लॉन्च हुई ‘सेमाग्लूटाइड’ (Semaglutide) और इस साल मार्च (2025) में आई ‘टिरज़ेपेटाइड’ (Tirzepatide) का बड़ा हाथ माना जा रहा है।
“वज़न घटाने के लिए मेडिकल मदद अब स्वीकार्य”
फार्माट्रैक की वाइस प्रेसिडेंट (कमर्शियल) शीतल सपाले ने कहा, “पूरे भारत में मोटापा कम करने वाली दवाओं को ज़बरदस्त गति मिल रही है, जो बाज़ार में एक बड़े बदलाव का संकेत है। यह लोगों के स्वास्थ्य व्यवहार में आए बदलाव के कारण हो रहा है, जहाँ अब वज़न घटाने के लिए मेडिकल मदद लेना न केवल स्वीकार्य है, बल्कि लोग ऐसा करना चाहते भी हैं।”
उन्होंने आगे कहा, “यह तेज़ी पूरी तरह से मोटापे के मामलों में वृद्धि को नहीं दर्शाती, बल्कि यह दिखाती है कि लोग अब वज़न नियंत्रित करने के लिए सुधारात्मक कार्रवाई करने के ज़्यादा इच्छुक हैं।”
शीतल सपाले ने यह भी बताया कि कार्डियो-डायबिटिक स्थितियों की कम उम्र में शुरुआत इलाज की अवधि को बढ़ा रही है। भारतीय फार्मा कंपनियाँ जैसे डीआरएल, सिप्ला, सन और बायोकॉन इस अवसर का लाभ उठाने के लिए तेज़ी से आगे बढ़ रही हैं। उन्होंने कहा, “महत्वपूर्ण बात यह है कि इन दवाओं की लागत बहुत ज़्यादा नहीं है, और घरेलू कंपनियों के बाज़ार में आने से ये और भी सस्ती होती जा रही हैं।”
मरीज़ों के अनुभव और डॉक्टरों की राय
इसका एक उदाहरण अहमदाबाद निवासी मनीष उपाध्याय (बदला हुआ नाम) हैं। वह डायबिटीज़ के मरीज़ थे और इलाज के बावजूद उनका HbA1c स्तर लगातार बढ़ा हुआ था। उनके डॉक्टर ने इंसुलिन के विकल्प के तौर पर टिरज़ेपेटाइड लेने की सलाह दी। केवल दो महीने के भीतर, उन्होंने लगभग 10 किलो वज़न कम कर लिया। अब, डॉक्टरों की निगरानी में उनके कोर्स को दो और महीनों के लिए बढ़ा दिया गया है।
गुजरात भर के डॉक्टर इस बात की पुष्टि करते हैं कि मोटापा कम करने वाली दवाओं के लिए मरीज़ों की पूछताछ और प्रिस्क्रिप्शन (डॉक्टर के पर्चे) में स्पष्ट वृद्धि हुई है, खासकर शहरी केंद्रों में।
ज़ायडस हॉस्पिटल के एंडोक्रिनोलॉजिस्ट डॉ. ओम लखानी ने कहा, “इन दवाओं के बारे में जागरूकता निश्चित रूप से बढ़ी है, और मरीज़ अब खुद आकर इस कोर्स को शुरू करने का अनुरोध कर रहे हैं।”
उन्होंने स्पष्ट किया, “दिशानिर्देश बिलकुल साफ़ हैं: ये दवाएँ केवल उन व्यक्तियों को दी जा सकती हैं जिनका बीएमआई (BMI) 30 से ऊपर है, या 27 और 30 के बीच है, लेकिन उन्हें डायबिटीज़, हृदय रोग, ऑस्टियोआर्थराइटिस या स्लीप एपनिया जैसी अन्य बीमारियाँ भी हैं।”
डॉ. लखानी ने बताया कि अब उनके ओपीडी में आने वाले हर दस मरीज़ों में से दो सिर्फ वज़न घटाने के परामर्श के लिए आते हैं, जबकि दो अन्य मरीज़ मेटाबोलिक समस्याओं के साथ-साथ वज़न कम करने का इलाज चाहते हैं।
‘क्विक फिक्स’ मानसिकता के खिलाफ चेतावनी
हालाँकि, विशेषज्ञ सोशल मीडिया द्वारा फैलाई जा रही ‘क्विक फिक्स’ (यानी तुरंत समाधान) की मानसिकता के खिलाफ चेतावनी दे रहे हैं। शाल्बी हॉस्पिटल के पीडियाट्रिक एंडोक्रिनोलॉजिस्ट डॉ. मनोज अग्रवाल ने कहा कि शादी या अन्य सामाजिक अवसरों के लिए तुरंत पतला होने की चाह रखने वाले लोग अब ज़्यादा आम हो गए हैं।
डॉ. अग्रवाल ने आगाह किया, “लोगों को इसके दुष्प्रभावों को समझना चाहिए। अगर बिना डॉक्टरी सलाह के इन दवाओं को लिया जाता है, तो शरीर में पोषण की कमी के कारण ऑस्टियोपोरोसिस (हड्डियों का कमज़ोर होना) और किडनी डैमेज जैसी गंभीर और दीर्घकालिक समस्याएँ हो सकती हैं। वज़न प्रबंधन हमेशा डॉक्टर, डाइटीशियन और मरीज़ के बीच एक संयुक्त प्रयास होना चाहिए।”
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