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गुजरात में सामने आया अब तक का सबसे बड़ा क्लिनिकल ट्रायल घोटाला, 500 गरीब मरीज़ों पर गैरकानूनी दवाओं का परीक्षण

| Updated: April 22, 2025 09:48

25 वर्ष की परीक्षण अवधि में 500 गरीब मरीजों का शोषण किया गया।

गुजरात में नेताओं, फार्मा कंपनियों और एक सरकारी अस्पताल की मिलीभगत से एक बेहद चौंकाने वाला घोटाला सामने आया है। अहमदाबाद के वडीलाल साराभाई (वीएस) अस्पताल में 500 से अधिक गरीब मरीजों पर अवैध और अनधिकृत मेडिकल ट्रायल किए गए। इस पूरे घोटाले की जड़ में अहमदाबाद स्थित कंपनी एस4 रिसर्च प्राइवेट लिमिटेड है, जिसने वीएस अस्पताल के साथ 25 साल का समझौता किया।

बोगस MOU और फर्जी हस्ताक्षर

वाइब्स ऑफ इंडिया द्वारा प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार, एस4 रिसर्च प्राइवेट लिमिटेड — जो एक मरीज भर्ती करने वाली कंपनी है — ने 29 नवंबर 2024 से प्रभावी एक समझौता वीएस अस्पताल के साथ किया। इस कंपनी के निदेशकों में अली सज्जाद बोहरा, दीपाली स्वर्णकार और अक्षय शाह शामिल हैं।

कंपनी की एक वेबसाइट पर 11 कर्मचारियों का उल्लेख है, जबकि दूसरी वेबसाइट पर 47 कर्मचारियों की सूची है — इस विरोधाभास पर कंपनी ने कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया।

कंपनी का कहना है: “हम फार्मास्युटिकल कंपनियों और सीआरओ के लिए मरीजों और साइट्स की भर्ती में सहायता करते हैं, विशेष रूप से एशिया जैसे उभरते बाज़ारों में लागत कम करने और भर्ती की क्षमता बढ़ाने के मकसद से।”

लेकिन अस्पताल के अंदरूनी सूत्रों का दावा है कि यह समझौता पूरी तरह फर्जी था। कोई आधिकारिक अनुमति नहीं ली गई और अधिकारियों के फर्जी हस्ताक्षर कर दस्तावेज बनाए गए।

सीडीएससीओ और डीसीजीआई को नहीं दी गई कोई जानकारी

क्लिनिकल ट्रायल के लिए भारत में अनिवार्य केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) और औषधि नियंत्रक जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) को भी इस पूरे मामले की जानकारी नहीं दी गई — जो साफ तौर पर नियमों का उल्लंघन है।

मुनाफाखोरी के लिए गरीब मरीजों को बनाया गया शिकार

करीब 500 गरीब मरीजों पर जोड़ों का दर्द, मधुमेह और अन्य दीर्घकालिक बीमारियों के लिए बिना स्वीकृति वाले ट्रायल किए गए। मरीजों से कहा गया कि सरकारी दवाएं उपलब्ध नहीं हैं और उन्हें “नई और उच्च गुणवत्ता वाली निजी दवाएं” दी जाएंगी।

ऐसे ही दो पीड़ित मरीज — काजलबेन (बदला हुआ नाम), जो एक निर्माण कार्य करने वाले मज़दूर हैं, और विनोदभाई (बदला हुआ नाम), जो जोड़ों के दर्द से पीड़ित हैं — ने बताया कि डॉक्टरों ने उन्हें ज़बरदस्ती ये दवाएं लेने के लिए उकसाया। ज़्यादातर मरीजों को यह तक नहीं बताया गया कि उन पर मेडिकल रिसर्च की जा रही है।

कौन-कौन शामिल है?

करीब 57 कंपनियों ने इस ट्रायल में भाग लिया, जिसकी मुख्य कंपनी एक कोरियन फर्म थी — हालांकि उस पर कोई अनियमितता सिद्ध नहीं हुई है।

घोटाले का खुलासा करने वाली महिला पार्षद

इस घोटाले का पर्दाफाश एक युवा नगरसेविका, राजश्री केसरी ने किया। उन्होंने कहा, “यह सिर्फ एक मेडिकल घोटाला नहीं है, बल्कि एक बड़ा राजनीतिक घोटाला है। मैंने एफआईआर की मांग की है और आज शाम अहमदाबाद महानगर पालिका की बैठक में यह मुद्दा उठाऊंगी। मैं उन 500 गरीब मरीजों के लिए न्याय चाहती हूं जिन्हें पता तक नहीं चला कि उनके साथ क्या किया गया।”

फर्जी नैतिकता समिति और डॉक्टरों की भूमिका

शिकायतों और व्हिसलब्लोइंग के बाद बनी जांच समिति ने पाया कि अस्पताल में एक अवैध ‘एथिक्स कमेटी’ बनाई गई थी, जिसने निजी फार्मा कंपनियों के लिए मरीजों पर ट्रायल किए और लाखों रुपये वसूले।

क्लिनिकल ट्रायल एग्रीमेंट (CTA) के अनुसार, अहमदाबाद की CBCC ग्लोबल रिसर्च और डॉ. धैवत शुक्ला (प्रमुख अन्वेषक) को मरीजों की सहमति लेने की जिम्मेदारी दी गई थी। इस अनुबंध में वीएस अस्पताल, एसएम कंपनी और न‍िशांत कुमार सिंह शामिल थे, जो अकाउंट्स संभालते थे।

कोरियन कंपनी और एग्रीमेंट में क्या लिखा है?

यह कॉन्ट्रैक्ट Caregen Co. Ltd. नामक कोरियन कंपनी ने दिया था। दस्तावेजों के अनुसार, ट्रायल का उद्देश्य “टाइप-2 डायबिटिक मरीजों में फास्टिंग ग्लूकोज़ और कार्डियोमेटाबॉलिक जोखिमों पर Deglusterol के प्रभावों का आकलन” करना था।

CTA में स्पष्ट उल्लेख है कि सभी मरीजों को ट्रायल के बारे में पूरी जानकारी दी जानी चाहिए, इलाज, दवाएं, ठहरने और यात्रा की सुविधाएं मुफ्त दी जानी चाहिए और डॉक्टरों को सभी निर्देशों का पालन करना होगा।

फर्जी नैतिक समिति का खुलासा

एक दस्तावेज़ दिनांक 26 जून 2023, सँगिनी अस्पताल की एथिक्स कमेटी के लेटरहेड पर है, जिसमें नवंबर 2024 में साइन हुए समझौते को पहले ही मंजूरी दे दी गई थी। यह भी घोटाले का एक और प्रमाण है कि एथिक्स कमेटी फर्जी थी और मान्य मानकों के अनुसार गठित नहीं थी।

अस्पताल प्रशासन की भूमिका

डॉ. देवांग राणा, वीएस अस्पताल के डॉक्टर को बर्खास्त किया गया है। उन्होंने इस घोटाले से लाखों रुपये कमाए। VOI के पास 8.73 लाख रुपए का एक इनवॉइस भी है, जो उनके नाम पर जारी हुआ था।

पूर्व अधीक्षक मनीष शाह, जिनकी भूमिका संदेह के घेरे में है, रहस्यमयी तरीके से इस्तीफा देकर रियल एस्टेट में चले गए हैं। उन्होंने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की। जबकि अस्पताल के कम से कम 6 अन्य डॉक्टरों की संलिप्तता की पुष्टि हुई है, लेकिन उनके खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।

VOI की पहल और अपील

VOI (Vibes of India) ने सभी दस्तावेज़ सार्वजनिक करने का निर्णय लिया है और स्वास्थ्य नीति विशेषज्ञों, वकीलों और मानवतावादी संगठनों से अपील की है कि वे इस मेडिकल माफिया को बेनकाब करने में मदद करें।

अगर आपके पास इस मामले से संबंधित कोई जानकारी या सबूत हैं, तो आप info@vibesofindia.com पर VOI से संपर्क कर सकते हैं।

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