कांग्रेस अपने पैरों पर कुल्हाड़ी कैसे मारती है - Vibes Of India

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कांग्रेस अपने पैरों पर कुल्हाड़ी कैसे मारती है

| Updated: October 6, 2022 19:58

संजय झा

कार्यशैली और उसके निर्णय देश की सबसे पुरानी पार्टी को चुनावी सफलता दें या नहीं, लेकिन उनसे मनोरंजन भरपूर होता है। पार्टी में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का मामला इसका सबसे बढ़िया उदाहरण है।

संभावित कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में कांग्रेस हाईकमान के पक्ष में चतुर गहलोत एक तीर से दो निशाना लगाना चाहते थे। माना जाता है कि वह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ-साथ राजस्थान में मुख्यमंत्री भी बने रहना चाहते थे। उन्हें सचिन पायलट के करिश्मे से डर लगता है। उन्हें लगता है कि पायलट का करिश्मा रेगिस्तानी राज्य में उनकी विरासत को मिटा देगा। लेकिन उनकी सोच के हिसाब से हो गया उलटा। सोनिया गांधी के कदम से राजस्थान में अपनी ही पार्टी में बगावत की स्थिति बन गई। गहलोत के दिल्ली जाने को लेकर रहस्य गहरा गया। तो फिर, अधिक आज्ञाकारी उम्मीदवार कौन हो सकता था? पार्टी में सुधार की वकालत करने वाले शशि थरूर ने सार्वजनिक रूप से राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के अपने इरादे को पहले ही जाहिर कर दिया था। ऐसे में मुकुल वासनिक, दिग्विजय सिंह जैसे नामों पर चर्चा के बाद मल्लिकार्जुन खड़गे पर फैसला ले लिया गया। दरअसल यह बड़े मौके को चूक जाना है।

दो दशकों से अधिक समय से संगठनात्मक अशांति (organisational torpor) में घिरे रहने के लिए कांग्रेस को सही फटकार लगाई गई है। यह बहुत लंबे समय से अटके संगठनात्मक परिवर्तन (organisational transformation) के लिए एक आदर्श मंच था, जिसके अभाव में पार्टी चुनावी रूप से लगातार हाशिये (humiliating side corner of the political ecosystem) पर चली गई। गांधी परिवार का कांग्रेस अध्यक्ष के लिए चुनाव नहीं लड़ना एक अच्छा संकेत था। लगा था कि पार्टी कम से कम देर से ही सही, अपने वंशवादी चरित्र (dynastic character) को छोड़ देगी और लोकतांत्रिक निर्णय लेने की शुरुआत करेगी। बेशक, हमेशा यह डर रहता है कि पिछले दरवाजे से बनाया गया उम्मीदवार कठपुतली साबित होगा, जिसका कमजोर धारा गौरवशाली दरबार में बंधा होगा। खड़गे एक अनुभवी बुजुर्ग नेता हो सकते हैं, लेकिन वह युवा भारत के जुझारू, प्रेरणादायक और दूरदर्शी नेता शायद ही हो सकते हैं, जो हमेशा बेचैन, अधिक से अधिक कर गुजरने वाला और चल रही घटनाओं के प्रति सतर्क रहे।

मुझे लगता है कि यह खोज राहुल गांधी ने ही अपनी 3,500 किलोमीटर लंबी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान की है, जो एक महत्वाकांक्षी कार्यक्रम है और उसकी तारीफ की जानी चाहिए। इसलिए खड़गे का चुनाव चौंकाने वाला है। यह एक और सीधा सवाल भी खड़ा करता है: शशि थरूर सर्वसम्मति के उम्मीदवार क्यों नहीं बन सके? यही कारण है कि कांग्रेस हमेशा भाजपा को हमला करने का मौका दे देती है; “रिमोट कंट्रोल।” दरअसल इसने कई वर्षों की देरी से शुरू हुई पूरी चुनाव प्रक्रिया को जर्जर बना दिया है।

कोई तर्क-वितर्क नहीं। थरूर बनाम खड़गे का आमना-सामना दरअसल कोई मुकाबला ही नहीं है। थरूर न केवल एक बहुत बढ़िया अंग्रेजी बोलने वाले लेखक और वक्ता हैं, जो अभिजात (elite) वर्ग को मोहित कर सकते हैं, बलिक वे युवाओं, शहरी मध्य-वर्ग और उद्योग जगत को भी आकर्षित कर सकते हैं। ये तीन ऐसे महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं, जिनसे कांग्रेस ने लंबे समय से दूरी बना ली है। इसके अलावा, आइडिया ऑफ इंडिया (जो कांग्रेस की विचारधारा को प्रतिबिम्बित करता है) के बारे में उनकी असाधारण समझ से पार्टी को बहुसंख्यक लोकलुभावनवाद(majoritarian populism) और भाजपा के अति-राष्ट्रवाद (hyper-nationalism) का मुकाबला करने में मदद मिलेगी। खड़गे, उचित सम्मान के बावजूद इन कसौटियों पर खरे नहीं उतरते हैं। इसलिए मैंने सार्वजनिक रूप से प्रस्ताव दिया है कि कांग्रेस को अपने गांधी परिवार के जुनून को लेकर शर्मिंदा नहीं होना चाहिए, बल्कि प्रियंका गांधी वाड्रा, सचिन पायलट और शशि थरूर को एक ट्राइफेक्टा बनाकर सत्ता का विकेंद्रीकरण करना चाहिए। इंद्रजाल (legerdemain) के जरिए पार्टी चलाना गलत है।

अंतिम बात यह कि कांग्रेस को एक अध्यक्ष की जरूरत है, जो 2024 के आम चुनाव और उससे पहले कई राज्यों में चुनाव जीतने में मदद कर सके। इसे जिस चीज की जरूरत नहीं है, वह है दरबारी संस्कृति का पालन करने वाला। तथ्य यह है कि जी-23 के कई सदस्य, जो कभी तत्काल आंतरिक सुधारों और राजनीतिक नेतृत्व में बदलाव की मांग करने के लिए मुखर थे, ने “आधिकारिक उम्मीदवार” के साथ नम्रतापूर्वक सहमति व्यक्त की। यकीन मानिए, यह कांग्रेस के सामने आने वाली विशाल समस्याओं का लक्षण है। पार्टी के भीतर के नेता कई वर्षों से एक आरामदायक स्थिति में रहने के आदी हो गए हैं। राजनीतिक रणनीति के हिसाब से जोखिम लेने की विशेषता गायब हो गई है।

बहरहाल, कांग्रेस को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि पुनर्निवेश (reinvention) कभी भी आसान किश्तों में नहीं किया जाता है। यह पुनर्निवेश (reinvention) शानदार होना चाहिए। एक महान राष्ट्र का भविष्य दांव पर है। इसे एक कठोर शासन द्वारा बेरहमी से कुचला जा रहा है, जिसने अपनी निरंकुश प्रवृत्तियों को बेलगाम छोड़ दिया है।

19 अक्टूबर 2022 को हम जान जाएंगे कि नेल्सन मंडेला और मार्टिन लूथर किंग जूनियर को प्रेरित करने वाली पार्टी ने अपनी पसंद आखिरकार क्या बनाई है।

(लेखक कांग्रेस के पूर्व प्रवक्ता हैं। उन्हें जून 2020 में उनके पद से बर्खास्त कर दिया गया था।)

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