मोरबी पुल हादसा: हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर, मजिस्ट्रेट जांच की मांग

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मोरबी पुल हादसा: हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर, मजिस्ट्रेट जांच की मांग

| Updated: November 9, 2022 15:48

सूरत के एक सामाजिक कार्यकर्ता ने मोरबी में पुल टूट कर गिरने की घटना की मजिस्ट्रेट जांच की मांग की है। इसके लिए उन्होंने गुजरात हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की है। इस हादसे में 140 लोगों की मौत हो गई थी।

याचिकाकर्ता संजीव एझावा ने मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) जैसी स्वतंत्र एजेंसी और स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग (structural engineering) के एक्सपर्ट से जांच कराने की मांग की है।

याचिका हाई कोर्ट द्वारा भयावह घटना पर स्वत: संज्ञान (suo motu) लेने के एक दिन बाद वकील केआर कोष्टी के जरिये दायर की गई है। इसमें याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट से गुजरात सरकार द्वारा गठित पांच सदस्यीय समिति को भंग करने का अपील की है। याचिका में कहा गया है कि इस तरह के मामलों की जांच में कोई अनुभवी सदस्य शामिल नहीं है।

याचिका में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) या राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (NIT) के विशेषज्ञों को शामिल करते हुए एक विशेष जांच दल बनाने की मांग की गई है, जो संरचना (structure) की जांच कर सके। याचिकाकर्ता ने बताया है कि पिछली घटनाओं में, जैसे कि सूरत में अथवलाइन्स ब्रिज का गिरने की जांच एसवीएनआईटी (SVNIT) की आठ सदस्यीय तकनीकी विशेषज्ञ समिति ने की थी।

जिस फर्म को ब्रिटिश काल के पुल की मरम्मत का काम सौंपा गया था, उसे पुल की मरम्मत, नवीनीकरण (renovation) या रखरखाव (maintenance) के मामले में कोई विशेषज्ञता नहीं थी। उसने एक छोटे से अनजान ठेकेदार देवप्रकाश सॉल्यूशंस को 2 करोड़ रुपये में सब-कॉन्ट्रैक्ट दे दिया। ठेकेदार ने लकड़ी के डेक को एल्यूमीनियम डेक से बदल दिया। उन्होंने जंग लगे सस्पेंशन केबलों को नहीं बदला। पुल के गिरने से 30 अक्टूबर को 55 बच्चों सहित 140 लोगों की मौत हो गई।

मोरबी नगरपालिका और ओरेवा समूह ने पुल के संरचनात्मक डिजाइन (structural design) के संबंध में कोई सलाह या अनुमोदन (approval) नहीं लिया। इसे जनता के लिए फिर से खोलने से पहले कोई फिटनेस सर्टिफिकेट भी जारी नहीं किया गया था।

एझावा ने हाई कोर्ट से यह भी अपील की है कि वह सरकार द्वारा मृतक (deceased) के परिजनों को 25 लाख रुपये और घायलों को 5 लाख रुपये का मुआवजा दिलाए।

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