जरा एक पल के लिए पलट कर देखिए: कुछ दिनों पहले असम पुलिस ने एक ट्वीट के कारण एक विधायक को गिरफ्तार करने के लिए अति उत्साह में दूसरे राज्य की उड़ान भरी। गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवाणी की गिरफ्तारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचनात्मक ट्वीट के आधार पर की गई। हालांकि सोमवार को कोकराझार की एक अदालत ने जमानत दे दी थी, लेकिन इसके तत्काल बाद उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। आईपीसी की गंभीर धाराओं के तहत। यह एक बार फिर पुलिस की ज्यादती और राजनीतिक आकाओं के प्रति उसकी घोर दासता पर गंभीर सवाल उठाता है। यह दोहराता है कि केंद्र और राज्यों में भाजपा सरकारें असंतुष्टों और राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ कठोर कानून को हथियार बनाने से बाज नहीं आ रही हैं। यह बताता है कि संवैधानिक रूप से संरक्षित मौलिक स्वतंत्रताएं जोखिम में मेवाणी पर जारी नाटक एक और कारण से भी चिंताजनक है। यह पूरा प्रकरण दर्शाता है कि विपक्ष कितना लापरवाह हो गया है।
इसे व्यापक रूप से देखने की आवश्यकता हो सकती है कि गैर-भाजपा दल राज्य द्वारा नागरिकों के अधिकारों और स्वतंत्रता के उल्लंघन के विरोध में इतने प्रभावशाली क्यों दिख रहे हैं। जब ये दल सत्ता में होते हैं, जहां उन्हें अवसर मिलता है, वे उसी कार्य में शामिल होते हैं, जिसके लिए वे भाजपा पर आरोप लगाते हैं। या, उनके पास एक सैद्धांतिक रुख अपनाने के लिए दृढ़ विश्वास की कमी है। कुछ दिन पहले सांप्रदायिक हिंसा से प्रभावित उत्तर पश्चिमी दिल्ली के जहांगीरपुरी में बुलडोजर चलने के बाद आप की प्रतिक्रिया इसका उदाहरण है। डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया और विधायक आतिशी दोनों ने दो समूहों- बांग्लादेशी नागरिकों और रोहिंग्या पर दोष मढ़ने की कोशिश की। यही बात भाजपा भी कहती रही है। आप नेताओं ने कहा कि भाजपा दंगों को अंजाम देने के लिए उन्हें पूरे भारत में बसा रही। शाहीन बाग से जहांगीरपुरी तक, आप या तो चुप रही, या दूर रही, या जैसा कि अब हो गया है, उसने भाजपा का सहारा लिया। ऐसा सिर्फ दिल्ली में ही नहीं है। आप दरअसल भाजपा के रास्ते पर ही है। पिछली दिनों पंजाब में उसकी नवनिर्वाचित सरकार ने राज्य पुलिस को आप संयोजक और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल के कम से कम तीन आलोचकों के दरवाजे पर भेज दिया था। ये तीन थे– आप के के पूर्व नेता कुमार विश्वास, कांग्रेस नेता (पूर्व में आप की विधायक) अलका लांबा, और दिल्ली भाजपा के नवीन जिंदल।
ऐसा सिर्फ आप के साथ ही नहीं है। महाराष्ट्र में शिवसेना के नेतृत्व वाली महाविकास अघाड़ी सरकार द्वारा शासित मुंबई पुलिस ने विधायक रवि राणा और उनकी सांसद पत्नी नवनीत राणा पर देशद्रोह का आरोप लगा दिया। जाहिर तौर पर यह हनुमान चालीसा-अजान विवाद में सीएम उद्धव ठाकरे पर हमले की कोशिश के प्रतिशोध के अलावा और कुछ नहीं। उधर छत्तीसगढ़ में सुप्रीम कोर्ट को पिछले साल कांग्रेस सरकार को देशद्रोह कानून के कथित दुरुपयोग के लिए फटकार लगाना पड़ा। उसने उन अधिकारियों के खिलाफ राजद्रोह के मामले दर्ज करने की “परेशान करने वाली प्रवृत्ति” की ओर इशारा किया, जिन्हें पूर्ववर्ती शासन के प्रति वफादार देखा गया था। गैर-भाजपा पार्टियां इस राजनीति की चुनावी कीमत चुकाएं या न चुकाएं, लेकिन वे कठघरे में हैं। ऐसा कर वे न सिर्फ वैकल्पिक राजनीति के लिए जगह कम कर रहे हैं, बल्कि इसकी संभावनाओं को भी सीमित कर रहे हैं।