समलैंगिक विवाह को स्पेशल मैरिज एक्ट में शामिल करने पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब

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समलैंगिक विवाह को स्पेशल मैरिज एक्ट में शामिल करने पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब

| Updated: November 25, 2022 19:36

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को विशेष विवाह अधिनियम (Special Marriage Act) के तहत समलैंगिक (same-sex) विवाह की अनुमति देने की दलीलों पर सरकार से जवाब मांगा। 1954 का विशेष विवाह कानून उन जोड़ों के लिए विवाह की अनुमति देता है, जो अपने पर्सनल लॉ के तहत शादी नहीं कर सकते। सुप्रीम कोर्ट ने  अटार्नी जनरल को भी नोटिस देकर चार हफ्ते में जवाब मांगा है। इस तरह अब सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दी जा सकती है या फिर नहीं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसी याचिका दिल्ली हाईकोर्ट में पेंडिंग है। इस पर वकील एनके कौल ने कहा कि केंद्र सरकार ने केरल हाईकोर्ट को बताया है कि वह सुप्रीम कोर्ट में सारे मामलों को ट्रांसफर करने की अर्जी लगाएगी। मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने मामले पर दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई की।

समलैंगिंक युवकों के दो जोड़ों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल कर समलैंगिक लोगों की शादी को स्पेशल मैरिज एक्ट में शामिल करने की मांग की है। हैदराबाद में रहने वाले दोनों समलैंगिक पुरुषों ने स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग करते हुए जनहित याचिका दायर की है।

याचिकाकर्ता सुप्रियो चक्रवर्ती और अभय डांग करीब 10 साल से साथ हैं। उनके रिश्ते को माता-पिता, परिवार और दोस्तों ने भी मान लिया है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि विशेष विवाह कानून भारत के संविधान के खिलाफ है। यह समान लिंग के जोड़ों और विपरीत लिंग के जोड़ों के बीच भेदभाव करता है।

एक अन्य जोड़े ने भी सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर रखी है। इसमें एलजीटीबीक्यू (LGBTQ) समुदाय के सभी सदस्यों को मान्यता देने की मांग की गई है। याचिका में बताया गया है कि  पार्थ फिरोज मेहरोत्रा और उदय राज आनंद पिछले 17 सालों से रिलेशनशिप में हैं। उनका दावा है कि वे इस समय दो बच्चों की परवरिश एक साथ कर रहे हैं। चूंकि वे कानूनी रूप से अपनी शादी को नहीं दिखा सकते हैं, इसलिए विकट स्थिति पैदा हो गई है। इसलिए कि दोनों याचिकाकर्ता अपने दोनों बच्चों के साथ माता-पिता और बच्चे का कानूनी संबंध नहीं रख सकते हैं।

इस मामले में सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने कहा कि ये अर्जी नवतेज जौहर और पुत्तास्वामी मामले में दिए गए कोर्ट के फैसले को आगे बढ़ाती है। यह उत्तराधिकार के मुद्दे का महत्वपूर्ण मसला है. क्योंकि समलैंगिक संबंधों के आधार पर जी रहे लोग अब बुजुर्ग होते जा रहे हैं। उनके सामने भी अपने उत्तराधिकारी यानी विरासत सौंपने की चिंता है।

बेंच ने पूछा कि केरल हाई कोर्ट ने इस बारे में क्या कहा था? इस पर वकील एनके कौल ने कहा कि बैंक का साझा खाता, सरोगेसी के जरिए संतान, ग्रेच्युटी सहित सभी मुद्दों को ध्यान में रखे जाने की बात कही गई है।

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