देबरॉय ने की देश में सिंगल जीसटी रेट की वकालत, कहा- टैक्स में छूट बंद करनी चाहिए

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देबरॉय ने की देश में सिंगल जीसटी रेट की वकालत, कहा- टैक्स में छूट बंद करनी चाहिए

| Updated: November 9, 2022 13:19

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (PMEAC) के चेयरमैन बिबेक देबरॉय ने कहा है कि देश में सिंगल रेट जीएसटी ही होना चाहिए। इस समय केंद्र और राज्य सरकार की ओर से वसूला जाने वाला टैक्स जीडीपी का 15 प्रतिशत है, जबकि सरकार के द्वारा पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर पर किया जाने वाला खर्च इससे अधिक है।

सोमवार को एक समारोह में इस बात पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि वह सरकार के सलाहकार के बजाय एक आम आदमी और अर्थशास्त्री के रूप में ऐसा कह रहे हैं। देबरॉय ने कहा कि जीएसटी की दरें सभी वस्तुओं पर समान होनी चाहिए, क्योंकि ‘प्रगतिशील’ (progressive’) दरें प्रत्यक्ष करों के साथ सबसे अच्छा काम करती हैं, न कि अप्रत्यक्ष करें (indirect taxes)। उन्होंने व्यक्तिगत और कॉर्पोरेट आयकर दरों के बीच के अंतर को दूर करने और टैक्स से बचने की रणनीतियों (tax avoidance strategies) को जन्म देने  वाली छूट को समाप्त करने का भी प्रस्ताव रखा।

उन्होंने जीएसटी को ‘प्रगति के लिए ऐतिहासिक कदम’ कहा। बताया कि जब पहली बार इस टैक्स की घोषणा की गई थी, तो नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (NCAER) ने इससे जीडीपी में 1.5% से 2% की वृद्धि का अनुमान लगाया था।

देबरॉय ने कहा,”जब हम इस माइंडसेट को स्वीकार करते हैं तो हम भेदभाव के लिए मौके देते हैं। जब हम भेदभाव की इजाजत देते हैं तो हम सब्जेक्टिव इंटरप्रटेशन और लिटिगेशन की इजाजत देते है। इसलिए मेरा कहना यह है कि पॉलिसी के तौर पर हमें जीएसटी का सिंगल रेट रखने की जरूरत है, जो हर प्रोडक्ट के लिए एक समान होगा।”

उन्होंने बताया कि जीएसटी के कई रेट वाले स्ट्रक्चर को लेकर इसकी शुरुआत से ही चर्चा जारी है। जीएसटी को आए पांच साल हो गए हैं। इसमें टैक्स के चार स्लैब्स हैं। पहला 5 फीसदी, दूसरा 12 फीसदी, तीसरा 18 फीसदी और चौथा 28 फीसदी। 28 फीसदी के स्लैब में आने वाले कुछ प्रोडक्ट्स पर सेस लगता है। कुछ प्रोडक्ट्स नील कैटेगरी में भी आते हैं। उधर, सरकार का कहना है कि वह धीरे-धीरे जीएसटी स्लैब्स की संख्या में कमी करना चाहती है। टैक्ससिस्टम्स और प्रोग्रेसिवनेस पर टिप्पणी करते हुए देबरॉय ने कहा कि यह डायरेक्ट टैक्स है। इसमें हेवी लिफ्टिंग की जरूरत है। उन्होंने यह भी कहा कि टैक्स व्यवस्था में एग्जेम्पशंस (छूट) खत्म होनी चाहिए। खासकर डायरेक्ट टैक्स के मामले में यह खत्म होना चाहिए। लेकिन, ऐसा सिर्फ चीजों को आसान बनाने के मकसद से नहीं किया जाना चाहिए। उनके मुताबिक,”हमें ज्यादा टैक्स चुकाने के लिए तैयार होना चाहिए या हमें पब्लिक गुड्स और सर्विसेज की घटी हुई डिलीवरी के लिए तैयार होना चाहिए। हर साल बजट पेपर्स में एक स्टेटमेंट रेवेन्यू फॉरगोन पर होता है। साल के हिसाब से यह जीडीपी के 5 से 5.5 फीसदी तक पहुंच जाता है। ऐसे में सवाल यह है कि क्या ये सभी एग्जेम्प्शंस होने चाहिए?”

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